"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


10 May 2011

From Megh -Mala - मेघ-माला से


पाकिस्तान में हमारे गाँव के पास एक ढल्लेवाली गाँव था. वहाँ के ब्राह्मणोंहिन्दु जाटों और महाजनों ने चमारों और हरिजनों या सफाई करने वालों को तंग कियाऔर गाँव से निकल जाने के लिए कहा. उन्होंने स्यालकोट शहर में जाकर जिला के डिप्टी कमिश्नर को निवेदन किया. उसने अंग्रेज़ एस. पी. और पुलिस भेजी. वे गाँव से न निकले मगर अपना काम बन्द कर दिया. विवश होकर उन बड़ी जाति वालों को अपने मरे हुए पशु स्वयं उठाने पड़े और अपने घरों की सफाई आप ही करनी पड़ीं. यह काम करने पर भी वे बड़ी जातियों के बने रहे. कोई नीच या अछूत नहीं बन गए. ये सब स्वार्थ के झगड़े हैं. दूसरों को, दूसरी जातियों को आर्थिक या सामाजिक दशा का संस्कार दे देना और उनको दबाए रखनाअपने काम निकालना यह समय के मुताबिक रीति-रिवाज़ बना रहा. अब अपना राज्य हैप्रजातन्त्र है. हर एक व्यक्ति जातिसमाज या देशवासी को यथासम्भव उन्नति करने का अधिकार है. रहने का अच्छा स्तररोटीकपड़ा और मकान प्राप्त करना सब के लिए ज़रूरी है. अभिप्राय यह है कि अपना जीवन अच्छा बनाने के लिए रोटीकपड़े और मकान के लिएआर्थिक दशा सुधारने के लिएअनुसूचित जाति में आने के लिए कई जातियाँ मजबूर थीं. जो लोग उनको नीच या अछूत कहते हैं यह उनकी अज्ञानता है. सबको प्रेमभाव से रहना चाहिए.



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