"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


10 May 2011

Religious Unity- Baba Faqir Chand


"What for there are religious conflicts? What for you have divided human race on the basis of religions and sects? It is ignorance. Government may take million of measures, it is very difficult to bring about unity, and we can say that it is impossible. In 1921 Hindus and Muslims drank water in a shared cup at a function held at Delhi's Jama Masjid and then same Hindus and Muslims beheaded each other in 1947. Unity is not unity if there is greed or fear at its base. This is a temporary unity. When it was matter of forming self government Hindus and Muslims made a unity but after getting it they divided it into pieces.  They made it split into Pakistan and India. Mankind immersed in the ignorance. The only remedy to it is teaching of Santmat, the teaching of our sages. People opine that religion should not be mingled with politics. I say that if there is no religion in the politics of governing body, it will not be possible to administer governance." (from Sat Sanatan Dharm: by Baba Faqir Chand)

"किस लिये धार्मिक जगत में आकर झगड़ा मचाया हुआ है? तुमने किस लिये मानवजाति को विभिन्न धर्म-सम्प्रदायों में बाँट दिया है? यह सब अज्ञान है. गवर्नमैंट लाख प्रयत्न करे, बिना इस अज्ञान के मिटाये एकता लाना महाकठिन है या यूँ कह लो असम्भव है. 1921 में हिन्दू-मुसलमानों ने दिल्ली की जामा मस्जिद में एक प्याले में पानी पिया और फिर उन्हीं हिन्दू-मुसलमानों ने 1947 में एक-दूसरे के सिर काटे. जो एकता लालच देकर की जाती है या डरा कर की जाती है, वह एकता नहीं है. यह अस्थाई एकता है. जब स्वराज लेना था तो हिन्दू-मुसलमान इकट्ठे हो गये और जब मिल गया तो टुकड़ों की तरह बाँट लिया. कहीं पाकिस्तान बना. कहीं कुछ बना. मानव जाति इस अज्ञान में डूब गयी. इसका एक मात्र इलाज है सन्तमत की शिक्षा, हमारे ऋषियों की शिक्षा. लोग कहते हैं राजनीति (Politics) को धर्म से अलग रखो. मैं कहता हूँ कि जब शासन की राजनीति में धर्म नहीं रहेगा, शासन नहीं चलेगा.(बाबा फकीर चंद, पुस्तक सत सनातन धर्मसे.)

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9 comments:


संजय भास्कर said...
bahut bahut aabhar bhushan ji.. hume to baba fakir chand ji ke bare me pata hi nahi tha
Bhushan said...
@ संजय जी, अब आप जान जाएँगे. समय आ रहा है.
ZEAL said...
इसका एक मात्र इलाज है सन्तमत की शिक्षा, हमारे ऋषियों की शिक्षा... I agree ! .
प्रवीण पाण्डेय said...
लड़ाई मन में होती है, हम धर्म का आधार दे देते हैं।
Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...
आदरणीय भूषण जी प्रणाम ~ जब शासन की राजनीति में धर्म नहीं रहेगा, शासन नहीं चलेगा। बाबा फकीर चंद ने सही कहा । … और उनसे परिचय के लिए आपका आभार ! ~*~नव वर्ष २०११ के लिए हार्दिक मंगलकामनाएं !~*~ शुभकामनाओं सहित - राजेन्द्र स्वर्णकार
वीना said...
अज्ञान के मिटाये एकता लाना महाकठिन है या यूँ कह लो असम्भव है.... सच कहा है
Dorothy said...
संतो की निर्मल वाणी ही हमारे मनों में बसे असहिष्णुता और वैमनस्य के कलुष को धो उसमें एकता और मेल मिलाप की धारा प्रवाहित कर सकती है जिससे हमारे मन आपस में सदैव मिले रहें एवं एकता के सूत्र में बंधे रहें.बाबा फ़कीर चंद जी के अति उत्तम विचार बांटने के लिए आभार. सादर डोरोथी.
boletobindas said...
सर दरअसल जब से धर्मदंड कमजोर हो गया तब से ही राजदंड उनमुक्त होकर शासन कर रहा है। विवेकानंद को पढ़ने के बाद लगा कि राजदंड अभी और नीच लोगो के हाथ में जाना शेष है। उसके बाद पुन धर्मदंड अपनी तपस्या की ताकत को जीवित करेगा। वैसे भी आज धर्मदंड जाने कहां छुपा हुआ है। धर्म के नाम पर पाखंड के अलावा कुछ नहीं रह गया है। बस चंद सच्चे सनातनी लोग अलग-अलग मत. चाहे सनातन धर्म हो, इस्लाम हो या ईसाई मत या कोई औऱ को मानने वाले.....ये सब मिलकर धर्म की ज्योति को मंद नहीं होने दे रहे। जबतक की राजदंड को अनुशाषित करने वाला धर्मदंड फिर से उज्जव चरित्र के लोगो के हाथ में न आ जाए। पर अभी समय शेष है।
Bhushan said...
दिव्या, प्रवीण, राजेंद्र,वीणा, डोरोथी और रोहित जी, आपका आना और टिप्पणी करना अच्छा लगा. आप सभी के विचारों का मैं हृदय से सम्मान करता हूँ.

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