"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


22 June 2011

Gotras of Megh Bhagats - मेघ भगतों के गोत्र

डॉ. ध्यान सिंह, पीएचडी

डॉ. ध्यान सिंह का शोधग्रंथ कई मायनों में उपयोगी है. इसमें मेघ भगतों के गोत्रों को भी समेकित किया गया है. इस विषय में मुझे कुछ जानकारी तो थी लेकिन डॉ. सिंह द्वारा तैयार गोत्रों की सूची से बहुत कुछ नया भी मिला. गोत्रों की सूची इस मायने में महत्वपूर्ण है कि इससे संकेत मिलते हैं कि हम कौन हैं, कहाँ से आए थे और हमारे पूर्वज क्या करते थे. इस सूची में दिए नाम सिद्ध करते हैं कि हमारे कुछ पूर्वज अस्सीरिया से संबंधित थे. इस दृष्टि से अस्सरिया और एरियन शब्द अपनी कहानी कहते हैं. इसी प्रकार इस सूची में केशप (कश्यप) और प्राशर (पराशर) ऋषियों के नाम से गोत्र होना और विवाहों आदि में हमारा ऋषि गोत्र के रूप में भारद्वाज, अत्रि आदि ऋषियों का नाम बताना एक शोध का विषय हो सकता है क्योंकि कुछ अन्य ऋषियों के नाम हमारे समुदाय से जुड़े नहीं हैं.

सूची से स्पष्ट है कि गोत्रों का नामकरण कई प्रकार से हुआ है. गोत्र के मूल में गाँव, रेस, ऋषि, व्यवसाय, किसी नई जाति विशेष से संपर्क में आने के बाद नया नाम, रंग और छवि, विशेष आदत, गुण विशेष, क्षेत्र विशेष, पशु-पक्षी (व्यवसाय के रूप में भी), इष्ट, शारीरिक बनावट, महँगे पत्थरों आदि के नाम हैं. बहुत से गोत्रों के नाम ऐसे हैं जो संभवतः कभी शुद्ध रूप में तत्सम् (संस्कृत स्पैलिंग के अनुसार) रहे हैं और बाद में अन्य जातियों ने उनका रूप ज़बरदस्ती बिगाड़ दिया है या वे घिसते हुए इस तद्भव रूप को प्राप्त हुए हैं.

अंत में एक बात जोड़ना चाहूँगा कि गोत्रों की सूची को मैंने शब्दकोश विज्ञान (Lexicography) के नियम के अनुसार वर्णक्रम में लगा दिया है. आने वाले समय में शोधकर्ता इसका वैज्ञानिक तरीके से प्रयोग कर सकेंगे.

भारत भूषण, चंडीगढ़
ईमेल- bhagat.bb@gmail.com


मेघ भगतों के गोत्रों की सूची
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अगर, अस्सरिया,
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एरियन,
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कंगोत्रा, ककड़, कतियाल, कड़थोल, कपाहे, कम्होत्रे, कलसोंत्रा, कलमुंडा, करालियाँ, कांचरे, कांडल, काटिल, काले, किलकमार, कूदे, केशप, कैले, कोकड़िया, कोण,
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खंगोतरे, खंडोत्रे, खड़िया, खढ़ने, खबरटाँगिया, खरखड़े, खलड़े, खलोत्रा, खोखर, खोरड़िये,
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गंगोत्रा, गाँधी, गुटकर, गड़गाला, गड़वाले, गिद्धड़, गोत्रा, गौरिये,
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घई, घराई, घराटिया, घराल, घुम्मन,
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चखाड़िये, चगोत्रा, चगैथिया, चबांते, चलगौर, चलोआनियाँ, चितरे, चोकड़े, चोपड़ा, चोहड़े, चोहाड़िए, चौदेचुहान, चौहान,
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छापड़िया, छोंके,
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जजूआं, जल्लन, जल्लू,
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टंभ, टनीना, टुंडर, टुस्स, टेकर, टोंडल,
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डंडिये, डंबडकाले, डग्गर, डांडिये, डोगरा, डोगे,
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ढम, ढींगरिये,
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तरपाथी, तराहल, तरियल, तित्तर,
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थंदीरा, थिंदीआलिया, थापर,
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दत्त, दमाथियां, दलवैड, दरापते,
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धूरबारे,
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नजोआरे, नजोंतरे, नमोत्रा,
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पंजगोत्रे, पंजवाथिए, पंजाथिया, पकाहे, पटोआथ, पडेयर, पराने, परालिये, पलाथियाँ, पवार, पहाड़ियाँ, पाड़हा, पानोत्रा, पाहवा, पूंबें, पौनगोत्रा, प्राशर (पराशर),
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बकरवाल, बजगोत्रे, बजाले, बदोरू, बक्शी, बग्गन, बाखड़ू, बादल, बटैहड़े, बरेह, बिल्ले, बैहलमें,
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भगोत्रा, भलथिये, भसूले, भिंडर, भिड्डू,
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मंगलीक, मंगोच, मंगोतरा, मंजोतरे, मड़ोच, मनवार, मन्हास, ममोआलिया, मल्लाके, मांडे, मुसले, मैतले,
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रतन, रत्ते, रमोत्रा, रूज़म,
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लंगोतरा, लंबदार, लालोतरा, लचाला, लचुंबे, लसकोतरा, लातोतरा, लासोतरा, लीखी, लुड्डन, लेखी, लोंचारे,
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शौंके,
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संगलिया, संगवाल, संगोत्रे, सकोलिया, सपोलिया, समोत्रा, सलगोत्रे, सलगोत्रा, सलहान, सलैड, सांगड़ा, साठी, सिरहान, सीकल, सीहाला, सोहला, सुंबरिये, सेह्,
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हरबैठा, हितैषी.
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(गोत्रों की यह सूची डॉ. ध्यान सिंह के पीएचडी के लिए स्वीकृत शोधग्रंथ पंजाब में कबीरपंथ का उद्भव और विकाससे ली गई है.)

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