"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


15 August 2011

Aboriginal Tribes await freedom आज़ादी की बाट जोहते आदिवासी (मूलनिवासी)


आज सुबह से कई मित्रों को स्वतंत्रता दिवस की बधाई दे चुका हूँ. परंतु मन से एक विचार नहीं जाता था कि क्या भारत में सभी को आज़ादी मिल चुकी है?

भारत के आदिवासी इस भू-भाग के मूलनिवासी हैं. मध्य एशिया से आए अन्य कबीलों ने इन्हें खदेड़ा और इनके हरे-भरे, उपजाऊ इलाकों में बस गए जबकि उजाड़े गए ये मूलनिवासी कठिन परिस्थितियों वाले क्षेत्रों में चले गए. इन क्षेत्रों में दुर्गम पहाड़ी इलाके, घने जंगल, नदियों के बीच की ज़मीन, बाढ़ वाले इलाके, पठारी इलाके, रेगिस्तानी क्षेत्र आदि शामिल हैं. ज़ाहिर है इन क्षेत्रों तक सामाजिक विकास की बयार नहीं गई. अलबत्ता औद्योगीकरण के रूप में इन क्षेत्रों के प्राकृतिक संसाधनों की हानि हुई है. प्रशासन जब चाहे नियम दिखा कर इन्हें घरों से बेदखल कर देता है जबकि परियोजनाएँ लेकर इनके क्षेत्रों में घुस आए ठेकेदारों के साथ शासन, पुलिस, मीडिया आदि सब कुछ होता है.
इन्हें संगठित करने वाला इनका अपना कोई नेतृत्व नहीं है. नेतृत्व के नाम पर इन्हें नक्सलवाद ज़रूर मिला जिसका नेतृत्व ऊँची जातियों के पास है.
आम आदिवासी सरकारी अधिकारियों और पुलिसिया अत्याचारों का जितना शिकार हुआ है उतना और कोई नहीं. मार खाते-खाते ये सिमटते गए हैं. भौगोलिक कारणों से ये बँटे हुए हैं. इनका कोई संगठित वोट बैंक नहीं है.

इनसे मिलता जुलता हाल अनुसूचित जातियों और अन्य पिछड़े वर्गों का भी है. लेकिन आदिवासियों की स्थिति सब से खराब है. ये कठिन भौगोलिक परिस्थितियों, सामाजिक और अत्याचार, अशिक्षा, भुखमरी और कुपोषण का शिकार हैं और सरकारी विकास/राहत परियोजनाओं का बहुत सा पैसा भ्रष्ट सरकारी या गैर-सरकारी संगठनों के लोग खा जाते हैं.

आगे का रास्ता मूलनिवासियों को शिक्षा, संगठन, राजनीतिक एकता और अपने वोट बैंक के ज़रिए स्वयं बनाना होगा

A latest link from Hindustan Times dated 25th February, 2016.



जंगल चीता बन लौटेगा :  उज्जवला ज्योति तिग्गा

जंगल आखिर कब तक खामोश रहेगा
कब तक अपनी पीड़ा की आग में
झुलसते हुए भी
अपने बेबस आंसुओं से
हरियाली का स्वप्न सींचेगा
और अपने अंतस में बसे हुए
नन्हे से स्वर्ग में मगन रहेगा
....

पर जंगल के आंसू इस बार
व्यर्थ न बहेंगे
जंगल का दर्द अब
आग का दरिया बन फ़ूटेगा
और चैन की नींद सोने वालों पर
कहर बन टूटेगा
उसके आंसुओं की बाढ़
खदकती लावा बन जाएगी
और जहां लहराती थी हरियाली
वहां बयांवान बंजर नजर आएंगे
....

जंगल जो कि
एक खूबसूरत ख्वाब था हरियाली का
एक दिन किसी डरावने दु:स्वपन सा
रूप धरे लौटेगा
बरसों मिमियाता घिघियाता रहा है जंगल
एक दिन चीता बन लौटेगा
....

और बरसों के विलाप के बाद
गूंजेगी जंगल में फ़िर से
कोई नई मधुर मीठी तान
जो खींच लाएगी फ़िर से
जंगल के बाशिंदो को उस स्वर्ग से पनाहगाह में
........
........



28 comments:

  1. बहुत अच्छा आलेख......

    स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.

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  2. कुछ आगे बढ़ें। लेकिन इन लोगों को समझाना भी आसान नहीं होता, समस्या यही है।

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  3. वैसे आपने फिर आर्य वाला विवाद उठाने की ओर एक कदम उठा लिया है।

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  4. सुन्दर आलेख अपने पैरो पर तो खुद ही खड़ा होना होगा. स्वतंत्र दिवस की शुभकामनाये .

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  5. @ Dr Varsha Singh
    @ रेखा
    आप दोनों का आभार.
    @ चंदन कुमार मिश्र
    इन लोगों के बारे में जब भी कुछ लिखा जाता है तभी 'आर्य' शब्द उसकी पृष्ठभूमि में दिखने लगता है. आपको भी दिखा है यद्यपि मैंने उसका कहीं प्रयोग नहीं किया है. मिश्र जी मैं क्या करूँ.

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  6. शब्द न लिखने पर भी शुरु में ही यह कहना कि मूल निवासियों को भगा कर अपने समतल और अच्छी जमीन पर कोई रहने लगा, संकेत तो कर ही रहा है। लेकिन कोई बात नहीं है। मैं फिर कहता हूँ यह हजारों साल पहले हुआ भी तो कोई मतलब नहीं रखा जाय इससे। वैसे भी दस हजार साल पहले घटी बात को लेकर अब हम किसे दोषी ठहराएँ? लेकिन आज तो यह दिख रहा है कि कैसे लोग उनसे घृणा करते हैं या उन्हें नीच मानते हैं, यह भी एक जहर है। इसके लिए हमें कुछ करना चाहिए। आप इसका बुरा न मानें क्योंकि यह बात ध्यान से पढ़ते ही आर्यों का खयाल आना ही है। लेकिन अब हम इसको लेकर परेशान न हों।

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  7. @ चंदन कुमार मिश्र
    बात मेरी व्यकितगत परेशानी की नहीं है. देश के मानव संसाधनों को लेकर जितना मैं कभी परेशान होता हूँ उससे कहीं अधिक परेशानी मैंने आपके आलेखों में देखी है. जहाँ तक आदिवासी शब्द का प्रश्न है यह बहुत देर से प्रयोग हो रहा है. इसी का समानार्थी शब्द मूलनिवासी हाल ही में देखने में आया है. हाल ही में आदिवासियों के लिए वनवासी शब्द भी देखने में आया है जो उनके मूलनिवासी होने चुनौती देता प्रतीत होता है. कई लोगों की ऐसी चिंता है. खैर अधिक ज़रूरी है इन लोगों का विकास जिसके अभाव में पूरा देश गरीब और कुप्रबंधन का शिकार ही कहलाएगा.

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  8. बहुत सार्थक प्रस्तुति..मैंने अपने कार्यकाल के दौरान देश के विभिन्न क्षेत्रों में आदिवासियों की हालत देखी है. इतनी दयनीय हालत में होने पर भी लोग उनका शोषण करने से नहीं चूकते. आज़ादी का क्या मतलब है उनके लिए ?

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  9. @ Kailash C Sharma
    आपकी तत्विषयक चिंता महत्वपूर्ण है. आभार.

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  10. Those people are living in worst dilemma legally they are independent but when u look deep than u realize that their freedom is superficial and for them is just any other word in dictionary.

    Well said n timely post

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  11. सार्थक एवं सटीक लेखन के लिये आभार ।

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  12. आदिवासियों से ताल्लुक रखने वाला एक महत्वपूर्ण सन्दर्भ इतिहास के झरोखे से आपने उकेरा है भूषन जी ,कसावदार बढ़िया समीक्षा .बधाई यौमे आज़ादी किसके लिए ?
    Tuesday, August 16, 2011
    उठो नौजवानों सोने के दिन गए ......
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
    सोमवार, १५ अगस्त २०११
    संविधान जिन्होनें पढ़ लिया है (दूसरी किश्त ).

    http://veerubhai1947.blogspot.com/

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  13. आदिवासियों से ताल्लुक रखने वाला एक महत्वपूर्ण सन्दर्भ इतिहास के झरोखे से आपने उकेरा है भूषन जी ,कसावदार बढ़िया समीक्षा .बधाई .यौमे आज़ादी किसके लिए आखिर ?
    Tuesday, August 16, 2011
    उठो नौजवानों सोने के दिन गए ......
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
    सोमवार, १५ अगस्त २०११
    संविधान जिन्होनें पढ़ लिया है (दूसरी किश्त ).
    http://veerubhai1947.blogspot.com/
    मंगलवार, १६ अगस्त २०११
    त्रि -मूर्ती से तीन सवाल .

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  14. Good post .I share yr concern about Adivaseez.Thanks for yr kind visit and encouragements .

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  15. आपके दिए गए लिंक को देखा. काफ़ी अच्छा लगा. आपको बहुत बहुत बधाई. आभार..
    सादर,
    डोरोथी.

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  16. बहुत बढ़िया चिंतनशील प्रस्तुति के लिया बहुत बहुत आभार

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  17. 8५ प्रतिशत जनता आजाद नहीं है । हम तो एक दुसरे को बधाई देकर खुश हो लेते हैं । लेकिन आजादी सम्पूर्ण नहीं है। ह्रदय को विचलित करने वाली स्थितियां हैं हमारे देश में।

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  18. Dear Sirs/Madams,

    I have not seen a single TV Media Channel in India highlighting the issue of Tribal Mulnivasis of India. It is irony that Tribal people have no mass leader who can exclusively fight for their rights. Media has potential to transform the views of millions of people world wide but I fail to understand the biased attitude of Print/Electronic Media in India.

    We must not forget that Anna's struggle for corrupt-free India is gaining heights only due to Media, which instigates youngsters/intellectuals to form a common consensus. If Media takes up the above issue of Tribal people, their will be guaranteed revolution in India on this issue.

    Navin K. Bhoiya
    (Your friend in Mission)

    (Hello Bhushan Sir: You are always raising burning issues, which inspires all of us. Thanks).

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  19. आदिवासियों की स्थिति का बिल्कुल सही विश्लेशण किया है आपने।
    सरकार को आदिवासियों की याद केवल गणतंत्र दिवस के कुछ पहले आती है, ताकि वे परेड में सज-संवर कर दर्शकों का मनोरंजन कर सकें। उनके विकास के लिए जो धन सरकार द्वारा दिया जाता है उसका ज्यादातर हिस्सा अधिकारी और नेता डकार जाते हैं।

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  20. आज अन्ना के आंदोलन में ये कहीं खो से गए हैं.... पर बिसारे नहीं गए हैं...इनकी आवाज़ को किसी अन्ना की जरुरत नहीं रह गई है...ये आवाज बहरी सरकार के कान में गूंज रहे हैं...अन्ना की आंधी के ठीक पीछे इनका ही खासोश तूफान अपने नंबर का इंतजार कर रहा है..इस तूफान को रोकना बेहद जरुरी है...

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