जीवन में कई डॉक्टरों से वास्ता पड़ता है. दाँत वाले, एलोपैथी
वाले, होमियोपैथी वाले, आयुर्वैदिक और कभी यूनानी आदि. दाँतों के डॉक्टर के पास बैठे
मरीज़ गंभीर होते हैं. उनमें से कई अपने डर को दूर करने के लिए चहक रहे होते हैं. इन्होंने
अपने सबसे करीबी संबंधियों (दाँतों) को मेनटेन न करके नाराज़ कर लिया होता है.
एलोपैथों के यहाँ बैठे लोगों के चेहरे जब देखे तब उतरे देखे. चाहे
उसका कारण बीमारी हो, इंजेक्शन की सुई हो, डॉक्टर की फीस हो, दवाओं की कीमतें हों, महँगे
टेस्ट हों या संभावित ऑपरेशन. इन्हें दवाइयाँ फाँकने में सुरक्षा महसूस होने लगती
है. पर ऐसी ‘सुरक्षा’ दीर्घावधि में सुरक्षित है क्या?
होमियोपैथों, आयुर्वैदिक वैद्यों और यूनानी हक़ीमों के यहाँ
मरीज़ों को उतना तनाव में मैंने नहीं देखा. मुख्यतः इसलिए कि यहाँ इमरजेंसी केस न के बराबर आते हैं. अलबत्ता आयुर्वैदिक दवाओं की कीमतों का ज़ायका जीभ पर लगे 'स्वदेशी' के ज़ायके को ख़राब कर देता है. इतना महँगा है तो काहे का स्वदेशी जी!! निरी टेंशन है.
टेंशन से याद आया कि त्वचा विशेषज्ञों के यहाँ टेंशन का आगमन कम होता है, मरीज़ और डॉक्टर दोनों के लिए आपात स्थिति नहीं होती हालाँकि दुनिया में सब से
अधिक फैला हुआ मर्ज़ इन्हीं के यहाँ पहुँचता है- जिसे खुजली कहते हैं. इसके बारे में
कहा जाता है कि यह ईर्ष्या और द्वेष की उपज (psychosomatic disease) है. ज़ाहिर है कि ये लोग ईर्ष्या-द्वेष
को आपात स्थिति नहीं मानते. 🙂
कुछ महीने पहले Dr.
Dinesh Sahajpal के क्लीनिक में एक सोराइसिस के मरीज़ को देखा
था जिसकी आँखों में ऐसा भाव था जैसे हर किसी से कह रहा हो- ‘तू
मेरे से बेहतर दिख रहा है, साले’. कल फिर उसे क्लीनिक में
देखा. ठीक लग रहा था. उसने मुझ से प्रेम से बात की.
चिकित्सकीय चेहरों का बहुत ही सार्थक विश्लेषण किया है आपने ...
ReplyDeleteसादर आभार इस प्रस्तुति के लिए
आपका आभार.
Deleteसार्थक विश्लेषण किया है इन चिकित्सकीय चेहरों के बहुत बढ़िया..आभार..भूषण जी..
ReplyDeleteचिकित्सकीय विश्लेषण बहुत बढ़िया
ReplyDeleteवाह! बहुत ही अच्छी ट्यून में बातों को कहना कोई आपसे सीखे..
ReplyDeleteयाद नहीं पड़ रहा कि यह ट्यून मैंने किससे सीखी थी :))
Deleteकल 05/10/2012 को आपकी यह खूबसूरत पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
आभार.
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