"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


06 November 2012

Manuvadi hate Lord Macaulay – मनुवादी मैकाले से घृणा करते हैं



Here is an article namely Macaulay v/s Manu-


मनुवादी लॉर्ड मैकाले से नफरत करते हैं और उनके पास इसका बहुत अच्छा कारण है. यह एक तथ्य यह है कि मैकाले द्वारा 1837 में तैयार किया गया भारत दंड संहिता (आईपीसी) का मसौदा भारतीय नहीं है और इसी ने दलितों को सुमति भार्गव की मनुस्मृति के दमनकारी कानून से बचाया था. आईपीसी के साथ ही तैयार शिक्षा का कार्यवृत्त (1835)’ ने निश्चित ही भारत को ऐसे रास्ते पर ला खड़ा किया जहाँ से हम पृथ्वी पर महानतम देश बनने राह पर निकल पड़े हैं. फिर भी, सच्चाई यह है कि आईपीसी हिंदू संस्कृति के लिए पराया है. यही कारण है कि यह अभी भी बहुत अच्छी तरह से काम नहीं पा रहा है. यह सिर्फ समय की बात है कि हम कई ऐसे नियम बना लें कि मैकाले की दंड संहिता बुरी तरह उलझ कर रह जाए और फालतू का बोझ लगने लगे.

क्या आईपीसी को हटाना भारत के लिए दुखद होगा या अच्छा होगा? जब हम इस माह 06अक्तूबर, 1860 को शुरू भारतीय दंड संहिता के औपचारिक रूप से लागू होने और मैकाले के जन्मदिन (25 अक्टूबर, 1800) का जश्न मनाएँ तब इस प्रश्न पर अवश्य विचार करना चाहिए.

लॉर्ड थॉमस बैबिंगटन मैकाले, गवर्नर जनरल काउंसिल ऑफ इंडिया (1834-38) के पहले कानूनी सदस्य थे. उन्होंने स्वीकार किया है कि उन्होंने आईपीसी का निर्माण आम भारतीयों के लिए किया है ताकि भारत को बर्बाद करने वाली मनुस्मृति और उन ब्रिटिश शासकों के अहंकार से उनकी रक्षा की जा सके जो ख़ुद को नए ब्राह्मण मानते थे और समझते थे कि वे शोषण करने के लिए प्राधिकृत हैं.

आईपीसी का मसौदा प्रस्तुत करते हुए मैकाले ने अपने कवर पत्र में स्पष्ट रूप से अपनी पुस्तक सूची पर आधारित वैश्विक नजरिया दिया था जिसने मनुवाद और ब्रिटिश नस्लवाद दोनों को खारिज कर दिया था.

October - A festival of memories




1 comment:

  1. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति।

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