"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


11 August 2014

Sir Alexander Cunningham and Megh – सर एलेग्ज़ांडर कन्निंघम और मेघ

कुछ वर्ष पूर्व मैंने एक प्रहसन के रूप में मेघों का इतिहास लिखते हुए कल्पना की थी कि मेघों ने ही सिकंदर का रास्ता रोका था. मेरी कल्पना का आधार यह था कि उस क्षेत्र में तब मेघ बहुतायत से बसे थे. कुछ लोगों ने शायद पढ़ा हो, पता नहीं. लेकिन जिनसे मैंने इस बारे में बात की या प्रश्न पूछा उन्होंने कोई उत्साह नहीं दिखाया. लेकिन मुझे प्रहसन लिख कर संतोष हुआ.

कहते हैं कि इतिहास, इतिहासकार और कथाकार हमेशा रहते हैं. इस बीच राजस्थान से मेघवंश के इतिहासकार श्री ताराराम ने "मेघवंश:इतिहासऔर संस्कृति" नामक पुस्तक लिखी जो मेरी दृष्टि से मेघों का एक प्रामाणिक इतिहास प्रस्तुत करती है. उनसे एक दिन फोन पर बात करते हुए मैंने पूछा कि क्या जम्मू के पास झेलम, सतलुज के बीच के क्षेत्र में मेघों का सिकंदर से कोई सामना नहीं हुआ? उन्होंने कहा कि सर एलैग्ज़ांडर कन्निंघम ने ऐसे संकेत दिए हैं. मैंने बहुत कोशिश की लेकिन मुझे कन्निंघम की पुस्तक नहीं मिली. श्री आर.एल. गोत्रा (R.L. Gottra) जी से भी बात हुई. इतना मालूम पड़ा कि सर कन्निंघम की पुस्तक में मेघों का उल्लेख है.

कुछ दिन पूर्व ताराराम जी ने कन्निंघम की पुस्तक का वह अंश फेसबुक पर शेयर किया और मुझे भी अग्रेषित कर दिया. एक लिंक भी भेजा. पहली बार मुझे वे अंश पढ़ने को मिले और मैं अपनी खुशी को रोक नहीं पाया. सबसे पहले मैंने उसे www.meghnet.blogspot.com पर बनाए पृष्ठ HistoriansTell-2 पर शामिल किया और अलग से एक ब्लॉग लिखने की तैयारी शुरू कर दी. मेरी कल्पना के घोड़े बहुत जंगली हैं और जब वे हिनहिनाते हैं तो मैं दौड़ने लगता हूँ. घोड़ों पर मेरा वश नहीं लेकिन दौड़ने पर है.

कन्निंघम ने जो लिखा है वह ज़रा पुरानी अंग्रेज़ी में लिखा है और उस विद्वान ने ग्रीक और अन्य भाषाओं के ऐसे कई शब्द भी प्रयोग किए हैं जिन्हें सही प्रतिनिधि ध्वनि के साथ देवनागरी में लिखना मेरे लिए कठिन था इसलिए उनके आगे (कोष्ठकों में) उनकी अंग्रेज़ी वर्तनी (spellings) दे दी है. कन्निंघम ने क्या कहा है उसका एक लगभग स्वतंत्र अनुवाद नीचे दिया है. अंगरेज़ी के मूल पाठ का लिंक यहाँ है.

Sir Alexander Cunningham (23 January 1814 – 28 November 1893)
"मेघ
सामाजिक स्थिति में समान कमतरी (similar inferiority) वाले टकों (Takkas) से जुड़ा एक कबीला मेघों का है जो रियासी, जम्मू और अख़नूर की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा है. जम्मू के राजाओं के अभिलेखों और रिकार्ड (annals) के अनुसार गुलाब सिंह के पूर्वज दो राजपूत भाई थे जो पृथ्वीराज की पराजय के बाद टोही या टोहवी (संभवतः तवी के लिए प्रयुक्त शब्द) नदी (Tohi or Tohvi river) के किनारे मेघ कहलाने वाले गरीब काश्तकार (cultivators) वंश में बस गए. मिस्टर गार्डनर ने उन्हें निम्न जाति का निर्धन वंश कहा है, लेकिन वे टकों के मुकाबले संख्या में अधिक हैं. एक अन्य जगह वे उन्हें बहिष्कृतों की निम्नतम जमात में रखते हैं; लेकिन यह मेरी सूचना के विपरीत है, इसके अलावा यह उसके उस वर्णन से भी मेल नहीं खाता जिसमें उसने उन्हें "काश्तकार" कहा है. यदि वे टकों के समान नहीं हैं तो उनसे बहुत कमतर (inferior) भी नहीं हैं. मैं उनका मध्ययुगीन नाम ढूँढने में असफल रहा हूँ, लेकिन मुझे यकीन है कि हम विश्वसनीय रूप से उन्हें आर्यों के मेकी (Mekei) के तौर पर पहचान सकते हैं, जो सारंगीज़ (Saranges) नदी के किनारे उसके हाइड्राओटीज़ (Hydraotes) के संगम के पास रहते थे. इस नदी की अभी पक्की पहचान नहीं हुई है, लेकिन क्योंकि इसका उल्लेख हाइफेसिस (Hyphasis) या ब्यास के तुरत बाद में हुआ है, इसे सतलुज होना चाहिए. संस्कृत में सतलुज को शतद्रु (Satadru), या "शतधारा)" (hundred channeled) वाली, कहा गया है. यह ऐसा नाम है जो टोलेमी के ज़राड्रस (Ptolemy's Zaradrus) और प्लिनी के हेज़ीड्रस (Pliny's Hesidrus) को ठीक-ठाक तरीके से दर्शाता है क्योंकि संस्कृत का 'शत' कई पश्चिमी बोलियों में 'हत' बन जाता है. इसके ऊपरी मार्ग में इसका नाम शत्रुद्र या शतुद्र (Satrudr or Satudr) है जो संस्कृत के 'शतद्रु' का ही बिगड़ा हुआ और सामान्यतः बोला जाने वाला रूप है. तथापि कई ब्राह्मण शतुद्र को सही मानते हैं यद्यपि वे इसे "सौ उदर" (पेट) (hundred-bellied) वाले अर्थ से जानते हैं, तब इसका नाम 'शतोदर' होना चाहिए था. अब एर्रियन का सारंगीज़ (Arrian's Saranges) प्रत्यक्षतः इन विभिन्न शब्दों के साथ जुड़ा है जैसे शतांग (hundred divisions), शतांग (hundred parts) जिसका अर्थ है सौ विभाजन या सौ अंग, जो सतलुज के पर्वतीय क्षेत्र छोड़ने के बाद कई धाराओं में बँटने का संकेत देता है. इस पहचान के अनुसार मेकी, या प्राचीन मेघ, सिकंदर के आक्रमण के समय ज़रूर सतलुज के किनारों पर बस चुके थे. इस स्थिति की पुष्टि में, मैं मेगारसस (Megarsus) का नाम ले सकता हूँ एक नाम जो डियोनाइसिअस पेरीगिटीज़ (Dionysius Periegetes) ने सतलुज को महान और तीव्र के विशेषणों के साथ दिया था.* ऑइनस (Aoienus) ने नाम को बदल कर सिमेंडर (Cymander) कर दिया, लेकिन क्योंकि प्रिसियन (Priscian) ने बिना बदलाव के इसे सुरक्षित रखा, इससे लगता है कि हमें माइकेंडर (Mycander) को पढ़ना चाहिए, जिसने इसे मूल नाम डियोनाइसियस (Dionysius) के साथ समावेशित किया. अवीनस (Avienus) ने जो भी लिखा हो, इसकी संभावना सबसे अधिक है कि हमारे पास मेघ कबीले का नाम डियोनाइसियस (Dionysius) के मेगारसस (Megarsus) नदी में सुरक्षित है. दोनों नामों की आपस में तुलना करने पर, मेरे अनुसार संभव है कि मूल शब्द मेगान्ड्रोस (Megandros) हो जो संस्कृत के शब्द मेगाद्रु, या मेघों का दरिया, के समतुल्य होगा. अब सतलुज के इसी भाग में, जहाँ यह दरिया पर्वतों से बाहर आता है, हम मखोवाल (Makhowal) शहर पाते हैं, मख या मघ कबीले (Makh or Magh tribe) का शहर, कमतर स्थिति वाले किसानों की जमात, जो खुद को राजा मुख-तेसर (Mukh-tesar), एक सरसुती ब्राह्मण और मक्का का राजा (Sarsuti Brahman and King of Mecca), का परवर्ती मानते हैं. उसी से सहारिया (Sahariya) निकला, जिसे अपने बेटे साल (Sal) के साथ अरब (Arabia) से निकाल दिया गया था और वह पुंड्री द्वीप (Island of Pundri) में आ गए थे; अंततः वे बरारा, जो भठिंडा के पश्चिम में है, में महमूदसर में आए और वहाँ सत्रह गाँव बसा लिए. उसके बाद वे और आगे आए और छुटपुट आव्रजन (immigraion) के बाद अब वे पटियाला, शाहबाद, थानेसर, मुस्तफाबाद, सधौरा और मुज़फ़्फ़रनगर में बस गए हैं.* इस वर्णन से हमें ज्ञात होता है कि मेघों की पूर्वतम स्थिति बठिंडा के पश्चिम की ओर, अर्थात सतलुज के किनारे पर थी. किस काल में वे इस स्थान से गए वे नहीं जानते; लेकिन यदि, जैसा कि बहुत संभव लगता है, मगियास (Magiaus) जिनका यमुना और गंगा के किनारे तैमूर (Timur) से सामना हुआ वे मघ ही थे, सतलुज के किनारों से उनका जाना तुलनात्मक रूप से उससे पूर्व ही हुआ होगा. चिनाब के मेघों की परंपरा के अनुसार उन्हें पहले पहल आए मुहम्मदनों (Muhammadans) ने मैदानी इलाकों से खदेड़ा था, एक ऐसा बयान जिसका संदर्भ हम ग्यारहवीं शताब्दी के शुरू में महमूद के अतिक्रमण से या उसके क़रीबी उत्तराधिकारियों के लाहौर पर अंतिम कब्ज़े से ले सकते हैं.

(मूल पाठ में कन्निंघम ने निम्नलिखित से संदर्भ दिए हैं)

* Orljis DcsLTi1itio, V. 1145.
• Smith's Rcv1ning Family of Lahor, p. 232, and Appendix p. xxix. In the text he m.'iti* the " Tukkers" Hindus, but in the Appendix he calls the " Tuk" a " brahman caste." The two names are, however, most probably not the same. t Ibid, pp. 232, 201, and Appendix p. Xxix."

जम्मू,  राजस्थान, गुजरात के मेघ, मेघवाल, मेघवार

मेरे नोट्स

1. मैंने इस ब्लॉग में नेट पर के जो लिंक दिए हैं उनकी रचना कन्निंघम के बहुत बाद में की गई है. (all links retreived on 7-08-2014 and 09-08-2014)

2. मेघ, मेघवाल, मेघवार, मेग, मेगी, मेंग, मेंगवाल, मेघवंशी(बंसी), मींग, मेख, मेक, मेकी, मेखो, मखु, मल, मल्ल, मल्ली, मल्लो, मेगोस, मेगस (Magus), मघ, मागस, मेगारसस, मेदिया, मेदीज़ या मेडी, मद्र, मल्लोई, मालव आदि एक ही शब्द की विभिन्न क्षेत्रों और भाषाओं में की गई यात्राओं के इतिहास की संभावनाओं से युक्त हैं. इन शब्दों के अनेक स्थानीय या परंपरागत स्वरूप होंगे जो इतने अलग स्वरूप के हो सकते हैं जो शायद इनसे मिलते जुलते भी न दिखें जैसे भांबी, भगत, कबीरपंथी, रिखिया, आदि. इनके अंतर्संबंधों की खोज हमेशा होनी चाहिए. कन्निंघम ने उसी का प्रयास किया है, ताराराम जी ने किया है, आर एल गोत्रा जी ने किया है.

3. कन्निंघम ने जिस 'Muhammadans' शब्द का प्रयोग किया है उसका अनुवाद करते हुए एक बार मैं 'मुसलमान' लिख गया. बाद में ग़लती का अहसास हुआ. अब यह काफी स्पष्ट हो चुका है कि भारत की दलित जातियों के जिन लोगों ने इस्लाम स्वीकार किया अधिकतर वे ही मुसलमान कहलाए. अन्य बहुत कम हैं.

4. कन्निंघम ने पृथ्वीराज के समय के मेघों को काश्तकार (cultivators) कहा है. लेकिन उसके वर्णन में यह नहीं आया कि वे भूमि के मालिक थे. वहाँ स्पष्ट नहीं होता कि उस समय उनके पास भूमि खरीदने और रखने का अधिकार था या नहीं. संभवतः उनके भूमि स्वामित्व का अधिकार बाद के समय में छीना गया था जो स्वतंत्रता के बाद पुनः दिया गया.

5. कन्निंघम ने अपने अध्ययन के बल पर विश्वास के साथ इस बात को कहा है कि मेघों को आर्यों के मेकी के तौर पर पहचाना जा सकता है. थोड़ा आगे चल कर उसने मेघों को सुरसती (सारस्वत) ब्राह्मण भी कहा है. उल्लेखनीय है कि सारस्वत ब्राह्मण, ब्राह्मणों की कई अन्य शाखाओं से निम्नतर माने जाते हैं. दक्षिण भारत में गौड़ सारस्वत ब्राह्मण भी हैं लेकिन उत्तर भारत के गौड़ ब्राह्मण उन्हें अपने समान नहीं मानते. लेकिन आश्चर्य नहीं कि मेघों के अल्पजानकारी वाले और अत्यल्प मौखिक इतिहास में और अन्य के द्वारा भी यह कहा गया है कि मेघों के रीति रिवाज़ ब्राह्मणों से मिलते-जुलते हैं हालाँकि अन्य ने ऐसा तभी कहा जब मेघों को सरकारी सहायता से वंचित कराने की नीयत थी. कोई उन्हें ब्राह्मण जाति का मान कर पेश नहीं आता था बल्कि उनके साथ अमानवीय व्यवहार होता था.

6. कन्निंघम ने कहा है कि मेघ सतलुज के किनारों से हो कर जमुना-गंगा के किनारों पर कब बसे, मेघ/मेद यह नहीं जानते. प्राप्त जानकारी के अनुसार तैमूर से उनका सामना सन् 1398 के आसपास हुआ होगा जब उसने दिल्ली पर आक्रमण किया था. कन्निंघम ने विचार प्रकट किया है कि मेघों का यह पलायन तैमूर के आने से काफी पहले हो चुका था. यह सही लगता है. यहाँ उल्लेखनीय है कि मेदों और जाटों का एक संघर्ष सिंध/बलोचिस्तान के क्षेत्र में हुआ था जिसे आप इस लिंक पर देख सकते हैं- Meds. यह लिंक 'जाटलैंड विकि' का है. यद्यपि आँख मूँद कर इसे अंतिम तथ्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि, इसके नाम से ज़ाहिर है इसके कई या कुछ अंश 'आत्मगौरव (self pride)' के लिए भी लिखे हो सकते हैं जिसमें अन्य को तथ्यात्मक प्रतिनिधित्व देने का प्रयास हो यह ज़रूरी नहीं. मोटे तौर पर यह मेघ-जाट संघर्ष सन् 1026 से पहले ही हुआ होगा क्योंकि इसे रिकार्ड करने वाली संदर्भित पुस्तक का पर्शियन अनुवाद 1026 में हुआ था. अतः स्पष्ट है कि मेघ-जाट संघर्ष तैमूर के आगमन से पूर्व की घटना है और संभावना बनती है कि उसके बाद ही मेघ दिल्ली-मेरठ के पास जमुना-गंगा के क्षेत्र में गए होंगे.

7. जाँच करने की आवश्यकता है कि "मेगांद्रोज़ (Megandros)'  शब्द के 'मेघेंद्र' शब्द से से बने होने की कितनी संभावना है. 'मेघेंद्र' शब्द बुद्ध के लिए प्रयोग हुआ है जिसका अर्थ है 'मेघों का राजा'. कहीं इसका संबंध उस घटना से तो नहीं है जब बुद्ध सागल (आज का स्यालकोट) में आए थे?

8. एक बात और ध्यान देने योग्य है कि कन्निंघम ने यदि जानकारियाँ प्राप्त करने के लिए पढ़े-लिखे स्थानीय लोगों की सहायता ली होगी तो उसके आसपास मुख्यतः ब्राह्मण ही उपलब्ध होंगे जिन्होंने एकतरफा इतिहास की सही-ग़लत जानकारी और सूचनाएँ उसे दी होंगी. शिक्षा का अधिकार न होने के कारण मेघों के अशिक्षित होने, उनका अपना लोक साहित्य लगभग न होने, इतिहास की कोई पुष्ट मौखिक परंपरा न होने के कारण कन्निंघम द्वारा रिकार्ड की गई जानकारी का विस्तृत, संतुलित और समुचित तथ्यों से युक्त होना संभव नहीं था. कन्निंघम की जानकारी के स्रोतों में मेघों की लोक-स्मृति की भी कुछ भूमिका रही यह पता नहीं चलता. 

9. कन्निंघम ने सतलुज के पास मेघों के बठिंडा के पश्चिम (पंजाबी में इसे 'लहिंदे पासे' कहा जाता है जहाँ आमतौर पर वंचितों की बस्तियों का होना माना जाता है) में बसे होने की बात कही है. संभावना है कि मेघ यहाँ से होते हुए राजस्थान में भी गए होंगे. फिरोज़पुर सहित इस क्षेत्र में मेघवाल के नाम से भी जाना जाता है जिनका पेशा कपड़ा बुनना रहा. संभव है बहुत से 'मेघवाल' राजस्थान के मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत के 'मेघवाल' शब्द के बारे में लिए गए एक फ़ैसले से भी बहुत पहले से इस क्षेत्र में आ कर सदियों पूर्व बस चुके हों जिनका पेशा कपड़ा बुनना था. मेघवाल शब्द कश्मीर के राजा महामेघवाहन या मखोवाल से भी संबंधित सकता है. ताराराम जी मानते हैं कि मेघवाल शब्द महामेघवाहन से निकला हो सकता है.

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