"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


27 September 2014

Dr. B.R. Ambedkar was a Meghvanshi and also a Kabirpanthi - डॉ. भीमराव अंबेडकर मेघवंशी हैं और कबीरपंथी भी

डॉ. अंबेडकर महार समुदाय से थे. आमतौर पर शाम के समय अपनी मस्ती में कबीर के शब्द गाया करते थे.

महार बुनकर (जुलाहों) की जमात योद्धा और जुझारू रही है जिसे क्षत्रिय भी कहा गया है. बहुत कम 'मेघ भगत' जानते होंगे कि अंबेडकर कबीरपंथी थे और महार समुदाय का मुख्य व्यवसाय कपड़ा बुनना रहा है. इसके अलावा मेघों के लिए आज की तारीख में विश्वास कर पाना कठिन है कि 'महार' समाज वास्तव में 'मेघ' समाज ही है. मेरे ऐसा कहने का आधार नीचे दिए संदर्भित लिंक्स हैं जिससे मालूम पड़ेगा कि मेघ और महार एक ही जाति समूह है और कि डॉ. अंबेडकर कबीरपंथी परिवार से थे.

हमारे बुद्धिजीवी इस बात पर भी गर्व कर सकते हैं कि भारतीय संविधान पर मानवधर्म के जिन सिद्धांतों की छाप है उसके मूल में कहीं बुद्ध, कबीर, राष्ट्रपिता फुले, अंबेडकर और मेघ परंपराओं का प्रखर दर्शन है. दूसरे शब्दों में इसी का नाम ''नमो बुद्धाय'', ''जय कबीर'', ''जय भीम'' और ''जय मेघ'' है. सत्यशोधक समाज के संस्थापक ज्योतिराव फुले ने विशेषकर महार या मेघ समाज को संगठित करने का कार्य किया और 1903 में इनका पहला सम्मेलन मुंबई में कराया.

अब प्रश्न है कि पंजाब और जम्मू-कश्मीर का 'मेघ भगत' समाज समय के अनुसार अंबेडकर को क्यों नहीं समझ पाया. अशिक्षा एक कारण रहा. दूसरे, आर्यसमाज ने जहाँ एक ओर इस समाज को शिक्षा के क्षेत्र में दाखिल होने का मौका दिया वहीं आर्यसमाजी विचारधारा ने इनके लिए ऐसी ब्राह्मणवादी वैचारिक अड़चनें भी पैदा कर दीं जिससे न तो ये मुग्गोवालिया के आदधर्म आंदोलन से जुड़ पाए न ही अंबेडकर की विचारधारा से. श्री रतन गोत्रा, जो विद्वान और काफी वरिष्ठ नागरिक हैं, ने अपना अनुभव बताया कि जब भी वे अपने मेघ समाज में अंबेडकर की बात करते थे तो लोगों की पहली प्रतिक्रिया होती थी कि अंबेडकर तो चमार समाज से थे. कई अन्य वरिष्ठ नागरिकों के साथ भी यही अनुभव हुआ जिनमें मैं भी एक हूँ. धार्मिक संस्थाओं के प्रोपेगंडा से प्रभावित लोगों ने मेघ और चमार के बीच में ऊँच-नीच का सवाल बनाया हुआ है. शिक्षा के प्रसार के साथ अब स्थिति बदल रही है और पढ़ा-लिखा मेघ समाज वास्तविकता को समझने लगा है.

इसी जानकार वर्ग के लिए शुभकामनाएँ.

संदर्भित लिंक्स


(उक्त सभी लिंक 27-09-2014 को देखे गए हैं.)

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