"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


24 March 2015

Sudarshan Muni - सुदर्शन मुनि



कालेज के दिनों में सुदर्शन मुनि जी से सैक्टर-18, चंडीगढ़ की एक धर्मशाला में मिलने का मौका मिला था. मुझे मेरे जीजा जी श्री सत्यव्रत शास्त्री जी उनसे मिलवाने ले गए थे. उसके बाद वे एक बार मेरे पिता भगत मुंशीराम जी से मिलने के लिए हमारे घर आए थे तब मैं चंडीगढ़ से बाहर नौकरी कर रहा था. मैंने अपने जीवन में केवल एक ही मेघ भगत को जैन मुनि के रूप में देखा है.

जानने की उत्सुकता थी. कई वर्ष बाद पता चला कि वे ऊधमपुर, जम्मू में केंद्र बना कर कार्य कर रहे थे. फिर पता चला कि वे लुधियाना में भी रहे और वहाँ उनके शिष्यों ने उनके लिये एक आश्रम बनवा दिया था. कुछ दिन पूर्व श्री इंद्रजीत मेघ से बात की तो उन्होंने कुछ और संकेत दिए. समय पाकर मैंने उनसे वीडियो के रूप में जानकारी देने के लिए कहा जिससे मालूम पड़ा कि उन्होंने आर.एस. पुरा, जम्मू में एक जैन स्कूल भी बनवाया था जो उनके व्यक्तित्व की उपलब्धि है. इसी प्रकार पठानकोट, पंजाब भी उनकी कर्मभूमि रही. उस बातचीत को आप नीचे दिए वीडियो के लिंक में देख सकते हैं. 

( इस जैनमुनि के बारे में मेघ समाज बहुत कम जानता है. दर्शन मुनि जी की कोई फोटो या उनके जीवन के बारे में कोई जानकारी आपके पास हो तो कृपया bhagat.bb@gmail.com पर अवश्य भिजवाएँ.)



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22 March 2015

Reservation - आरक्षण

जाट आरक्षण खत्म कर दिया गया. काफी बहस छिड़ी है. इस मुद्दे को कोई नहीं देख रहा कि आरक्षण संबंधी कमज़ोर प्रावधान करके सरकार ने दलित-पिछड़े लोगों को जम कर अपमानित किया है. कभी लाभ दिया कभी वापस ले लिया. इस बारे में कोर्ट को सरकार का ही हिस्सा मानें. आरक्षण के संबंध में नियम नहीं बनाए गए. केवल अनुदेशों से काम चलाया गया. कानूनी तौर पर यह बहुत उलझाया गया मामला है. इस मामले में सुझाव बहुत आते हैं, आते रहेंगे. आरक्षण के खिलाफ और हक में बहुत दलीलें दी जाती रहेंगी. लेकिन प्राइवेट क्षेत्र में (जहाँ सबसे अधिक रोज़गार है और आगे भी होगा) वहाँ विभिन्न वर्गों के जाति विचार से मुक्त प्रतिनिधित्व पर गंभीरता से कार्य करने की बात कोई नहीं करता.

आरक्षण ख़त्म होने में अब हरियाणा का जाट इसमें अपना छीना गया हक देखता है और हरियाणा का यादव इसी में अपनी खुशी ढूँढ रहा है. ओबीसी में यदि एकता की समझ पैदा हो गई होती तो रोना किस बात का था और यदि ओबीसी और एससी/एसटी सामाजिक न सही राजनीतिक रूप से थोड़े भी जागृत हो गए होते तो उनके लिए बेहतर वातावरण बना होता. जो लोग फूलन देवी को आज भी डाकू मानते हैं उन्हें समझना चाहिए कि ओबीसी के वोटरों की एकता और ओबीसी सरकार ने उसे सांसद बनाया और उस वीरांगना ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर ओबीसी, खासकर महिलाओं, की स्थिति पर जागरूकता फैलाने वाले भाषण दिए. ज़रूरी है कि ओबीसी और वंचित जमातें आपस में एकता लाएँ ताकि सरकार से अपने हित की नीतियाँ बनवा सकें.

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20 March 2015

Sanskrit - संस्कृत


भाषा का विद्यार्थी रहा हूँ. कभी हिंदी या संस्कृत के बारे में कुछ नया पढ़ने को मिल जाता है तो उसे दिल में बिठाता हूँ. फेसबुक पर संस्कृत के बारे में एक पोस्ट देखी उसे यहाँ सहेज रहा हूँ. इसमें मेरे लिए जानकारी भी है और आश्चर्य भी.



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Here's your dose of happy for the day.
Posted by The Huffington Post on Thursday, 5 March 2015

14 March 2015

Scythian Jat Median Megh - सिदियन जाट मेदियन मेघ

भारत के जाट सिदियन (Scythian) हैं और मेघ मेदियन (Median) हैं. प्राचीनकाल से इनका परस्पर सहयोग रहा है क्योंकि अस्तित्व और व्यवसाय की दृष्टि से वे परस्पर संबद्ध रहे. ख़ैर यहाँ उनकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में जाने की मंशा नहीं है (न ही बाएँ हाथ लगे चित्र वाली पुस्तक यहाँ संदर्भित है). यहाँ उनकी दो व्यावहारिक समस्याओें का उल्लेख करना चाहता हूँ.
1. हिंदू धर्म में आने से बनी इनकी सामाजिक स्थिति
2. समुदाय के रूप में दोनों की साझा शिकायत कि इनके समुदायों के भीतर और परस्पर एकता क्यों नहीं होती. (अभिप्रायः राजनीतिक एकता से अधिक है).

12.03.2015 को मित्र राकेश सांगवान जी का आलेख पढ़ा जिसमें जाट (जट्ट) समुदाय के पक्ष का रेखांकन है. इसमें आप जाटों की समस्याएँ देख पाएँगे जो मेघों की समस्याओं जैसी ही हैं. आपने महसूस किया होगा कि मेघों के मुकाबले जाटों में आत्मविश्वास अधिक है. इसके कई सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक या जेनेटिक कारण होंगे. लेकिन ये दोनों मुख्यतः मनुवादी व्यवस्था की मार से प्रभावित हैं और उससे बचने के लिए एकता का हथियार ढूँढ रहे हैं. दोनों समुदायों में एक प्रश्न प्रतिदिन पूछा जाता है कि समुदाय में एकता क्यों नहीं होती. इस आलेख को आप भी पढें और देखें कि सुझाए गए सरल हल पर कैसे कार्य हो सकता है. मैं उनके इस आलेख को एक उत्तम analytical (विश्लेषणात्मक) और diagnostic remedy (निवारणात्मक उपाय) के रूप में देखता हूँ जो राजनीति के क्षेत्र में सकारात्मक तरीके से असरदार हो सकता है. मैंने कहीं पूछा था कि मेघों ने समय-समय पर अलग-अलग मरने का रास्ता क्यों पकड़ा था. अब सांगवान जी का आलेख पढ़ लीजिए­-

मिल कर जीने की तदबीर - राकेश सांगवान

"हुस्न--तदवीर से जाग उठता है नसीब कौम का,
कभी बदलती नहीं तकदीर अरमानों से"

जब भी दो-चार जाट इकट्ठा बैठते हैं तो उनमें पहला सवाल यही होता है कि जाटों मे एकता क्यों नहीं होती? जाटड़ा और काटड़ा अपने को ही क्यों मारता है? वैसे पहली बात तो जाट एक मस्त मौला और दबंग कौम मानी जाती है और दबंग मस्त मौले लोग बिना बात बिना मुद्दे के इकट्ठा नहीं हुआ करते. एकता किसी मुद्दे को लेकर होती है, कौम हित के साझा मुद्दे तय करो फिर देखो एकता कैसे नहीं होती है. कई लोग कहते हैं कि सर छोटूराम ने सभी धर्मों के जाटों को एक कैसे किया था? सर छोटूराम ने कौम को उनके हितों के प्रति जागरूक किया, किसान कौम के सांझा मुद्दे तय किए जिस से पूरी जाट कौम में एकता कायम हुई. जब तक कौम के पास मुद्दे नहीं होंगे तब तक लोग ऐसे ही धर्मों के ठेकेदारों की बातों में बहक कर बँटते रहेंगे.
Sir Chhotu Ram जिन्होंने आज़ादी से पूर्व यूनियनिस्ट पार्टी बनाई थी
यूनियनिस्ट मिशन (Unionist Mission) जिससे राकेश सांगवान जुड़े हैं.
लोग बँटने के बहाने खोज रहे हैं, कोई कहता है कि जो हिन्दू धर्म को छोड़ गया वो जाट नहीं, कोई कहता है कि इस्लाम, ईसाई, सिक्ख आदि में जाति नहीं होती इसलिए वे लोग अब जा नहीं रहे! आजकल कुछ भाइयों ने एक नया ही तर्क खोजा है कि जिन जाटों ने धर्म बदला वह डर या लालच में बदला है. असल में उन्होंने तो क्या खोजा है, उनके तो कान में धर्म के ठेकेदारों ने फूँक मारी है और अब वे भाई उनके शंखों की तरह बज रहे हैं. अगर कोई इनसे पूछे कि हमारे जो बुजुर्ग हिन्दू हुए क्या वे भी डर या लालच के कारण हुए थे? इतिहास गवाह है कि जाट हिन्दू धर्म में आने से पहले बौद्ध थे. तो क्या जो बौद्ध से हिन्दू हुए वे भी डर या लालच के कारण हिन्दू हुए? जैसा कि सर छोटूराम कहते थे कि धर्म इंसान का निजी मामला है, एक इंसान चाहे तो दिन में तीन बार अपना धर्म अपनी आस्था बदल सकता है. इसलिए हमें धर्म पर व्यर्थ की बहस कर अपना समय ज़ाया नहीं करना चाहिए. पर जो भाई यह कहते हैं कि जो जाट इस्लाम, ईसाई या सिक्ख हो गए उनकी कोई जाति नहीं है ऐसे बहके हुए भाइयों की जानकारी के लिए बता दूँ कि अखबारों में जितने भी विवाह संबंधी इश्तिहार आते हैं, किसी भी धर्म के, सभी में बकायदा जाति लिखी होती हैं. जैसे कि जट्ट सिक्ख, या सुन्नी जाट मुस्लिम के लिए वर या वधू चाहिए. कोई एक आध ही ऐसा इश्तिहार होता है जिसमें ''कास्ट नो बार'' लिखा होता है नहीं तो अखबार में हर धर्म में सभी की जाति के साथ इश्तेहार मिलते हैं. हाँ वो अलग बात है किन्ही कारणों से अलग अलग धर्मों को मनाने वाले जाटों ने आपस में रिश्ते बंद कर दिये, सिर्फ अपने-अपने धर्म में ही रिश्ते करते हैं, परंतु अपने-अपने धर्म में भी सिर्फ अपनी ही जाति में रिश्ते करते हैं, जाति वहाँ भी नहीं छोड़ी.

दुनिया का कोई धर्म या पंथ हो सभी में जाट ज़रूर मिलेंगे. जाट कर्म में विश्वास करने वाली कौम है और यही कारण है कि जब भी किसी धर्म में पाखंड बढ़ता है तो जाट नए धर्म या पंथ की तरफ पलायन शुरू कर देते हैं. यही कारण है कि जाट सभी धर्मों में हैं, ना कि किसी डर या लालच की वजह से जाटों ने धर्म बदला. वैसे जाट कहीं भी हो वह सिर्फ अपने पूर्वजों की पूजा में ही यकीन रखता है ना कि बनावटी भगवानों में. कैप्टन जून साहब, श्री बी. एस. ढिल्लों आदि जाट इतिहासकारों ने लिखा है कि जाट सिर्फ भैया पूजते हैं, जिसे पंजाबी में जठेरे कहते हैं. जो भाई गाँव में रहते हैं उन्हें इसके बारे में अच्छे से पता होगा कि बारात चढ़ने से पहले भैया पर माथा टेका जाता है और ब्याह के आने के बाद गठजोड़े समेत भैया पर माथा टेकने जाते हैं व नव विवाहित जोड़ा भैया पर छड़ी मारने वाला खेल खेलता है.

मैं ज़्यादातर पंजाबी जाटों में रहा हूँ और उन लोगों में मुझे कभी भी यह महसूस नहीं हुआ है कि मैं दूसरों में हूँ. 1984 के बाद से सिक्ख व आर्यसमाजी जाटों में यह दरार जरूर बढ़ गई. जब मैंने हरियाणा में रहना शुरू किया तो यहाँ लोगों की बात सुनकर एक बार तो मेरे मन में भी शक हो गया कि क्या हम लोग वाक़ई में अलग हैं? 1999-2000 की बात है, मैं भिवानी अपने मकान पर कुछ साथियों के साथ बैठा था, वहाँ गली में एक सरदारों का लड़का चावल बेचने आ गया. मैंने उसे बुला लिया और पूछा कि कहाँ से है? उसने बताया कि पटियाला से हूँ. मैंने उसकी जाति पूछी तो उसने बताया कि 'भाई, जट्ट हाँ'. वहाँ बैठे औरों की तसल्ली के लिए मैंने उससे पूछा जाट नहीं हैं? उसने कहा कि भाई एक ही बात है सिर्फ बोलने का फर्क हैं, मैं चौहान गोत्र का जाट हूँ. उस वक़्त हमारी गली में अधिकतर मकान अरोड़ा-खत्री पंजाबियों के थे, जाटों का सिर्फ हमारा ही मकान था. गली में सभी औरतें चावल लेने के लिए इकट्ठा हो गईं, सभी उस भाई से पंजाबी में मोल-तोल की बातें कर रही थीं, मुझे भी पंजाबी पढ़नी लिखनी आती है परंतु मैं उस भाई से अपनी ही बोली में बात कर रहा था. चावल लेने के बाद जब मैंने उस भाई से पूछा कि कितने रुपए दूँ? तो उस भाई ने कहा कि वीर जी आपाँ बाद में कर लेंगे पहले इन सबको निपटा दूँ. उसने सबके 22 रुपया किलो के हिसाब से भाव लगाया और आखिर में मुझे कहा कि भाई आप 19 के हिसाब से दे दो. तो वहाँ हमारे पड़ोस की ही एक महिला खड़ी थी वो यह भाव सुनकर पंजाबी में बोली 'साढ़े 22 ते इसदे 19 क्यों? वो भाई बोला 'बीबी, साढ़ी गल और है'. यह मिसाल उन भाइयों के लिए है जो सुनी सुनाई बातों में अपनों को अलग मान बैठे हैं. सर छोटूराम वाली बात है इंसान कितने ही धर्म बदली कर सकता है परंतु खून नहीं. खून का रिश्ता सबसे गाढ़ा माना गया है. देशी में कहावत है कि 'अपना मारे छाया में गेरे'.

हमें सर छोटूराम से ही कुछ सीख ले लेनी चाहिए उनसे बड़ा हमारा कोई रहबर नहीं हो सकता. बहाने नहीं खोजने चाहिएँ कि दूसरे धर्म वाले हमें अपना नहीं मानते तो हम क्यों मानें? शुरुआत 'मैं' से ही होती है. यदि वो हमें अपना नहीं मानते होते तो सर छोटूराम सर छोटूराम नहीं बनते. सर छोटूराम को मुस्लिम कितना मानते थे इसका एक किस्सा बता देता हूँ. सर छोटूराम ने रोहतक के एक लड़के को राजस्व महकमे में नौकरी लगवा दिया और उसकी पहली पोस्टिंग झेलम शहर में आ गई. झेलम शहर जाने के लिए नाव से नदी पार करनी पड़ती थी. जब वह नाव से नदी पार कर रहा था तो मल्लाह ने पूछ लिया 'जनाब, कित्थों आए हो?', वह बोला कि रोहतक से आया हूँ. मल्लाह बोला अच्छा छोटूखान के इलाके तो हो? उसने कहा छोटूखान नहीं भाई उनका नाम छोटूराम है. मल्लाह ने कहा नहीं भाई छोटूखान है. उसने फिर कहा कि भाई छोटूखान नहीं छोटूराम है और मुझे उन्हीं ने नौकरी पर लगवाया है. यह सुन मल्लाह हैरान सा हो कर बोला 'अच्छा! एना चंगा बंदा हिन्दू सी!" ऐसा जलवा था सर छोटूराम का जो हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख सबके लिए एक जैसे थे, सब उनको अपना मानते थे. किसी भी धर्म वाले को कभी यह एहसास नहीं होने दिया कि सर छोटूराम उनसे अलग है. यदि दूसरों के मन में फर्क होता तो सर छोटूराम इतने बड़े नेता नहीं बनते और ना ही वो जो हमारे लिए कर गए वो सब कर पाते. सर छोटूराम के इस जलवे का कारण था कि उसने सबके पेट की बात की, किसान कमेरे वर्ग को धर्म के ठेकेदारों की लूट खसोट से बचाया. इसलिए इन धर्म मजहब के ठेकेदारों की बातों में बहकना बंद कर दो. यदि किसी धर्म या मज़हब को ख़तरा होगा तो उसे उस धर्म के भगवान या खुदा अपने आप संभाल लेंगे, हमसे ज्यादा फिक्र तो उन भगवान या ख़ुदा को होनी चाहिए कि यदि उनकी यह धर्म मज़हब नाम की दुकान बंद हो गई तो फिर उन्हें कौन पूजेगा. हम चाहे जिस किसी धर्म को मानते हों पर हमारा सबका पेशा एक ही है. इसलिए कौम हित के सांझा मुद्दे तय करो फिर देखो कैसे सभी जाट एक नहीं होते हैं. कौम हित की सही तदवीर होगी तो हमारी कौम का नसीब भी जागेगा, नहीं तो हम ऐसे ही लुटते पिटते रहेंगे.

'जय योद्धेय'
Rakesh Sangwan
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12 March 2015

Fore ordeal - अग्निपरीक्षा

पुरातन काल में अग्निपरीक्षा में केवल स्त्रियों को ही बैठने की अनुमति होती थी. यदि वो पास हो जाती तो भी कई बार राजा उसे सज़ा देता और राज्य से निकाल देता था. तब राजा के अति बुद्धिमान संकटमोचक सेवक हमेशा के लिए मौनव्रत धारण कर लेते थे. How sweet!

अब आधुनिक काल में जिन बच्चों को होलिका जलाने की खुशी भरी आदत है उनकी ''दहेज हत्या'' नामक नाटक की रिहर्सल बचपन में ही हो जाती है. How sweet!


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11 March 2015

Meghvanshis of Chamba (HP) - चंबा (हि.प्र) के मेघवंशी

जम्मू से मेरे मित्र श्री ताराचंद भगत ने एक वीडियो मुझे भेजा था जिसे देख कर कई सवाल मन में खड़े हुए. वीडियो का लिंक नीचे लगा दिया है.
श्री ताराचंद भगत
चंबा (हि.प्र) के इस सिप्पी समूह के जिन लोगों से बातचीत ताराचंद भगत जी ने की है वे जम्मू के बसोहली (Basohli) ज़िला के भूँड (Bhoond) गाँव में बसे हुए हैं. इसमें जिन कमलूराम जी से बात की गई है वे बताते हैं कि वे ठाकुरों और ब्राह्मणों के घर का खा लेते हैं. ताराचंद जी ने फोन पर बताया है कि इसका अर्थ यह न निकाला जाए कि उस गाँव के ठाकुर और ब्राह्मण इनके हाथ का खा लेते हैं. हालाँकि चंबा की रियासत में मेघों को छोटे ठाकुर कह कर भी पुकारा जाता था और इस जाति ने अपने भीतर से पुरोहित पैदा किए हैं अतः देखना पड़ेगा कि कमलू जी का अभिप्रायः कहीं उन्हीं ठाकुरों और पुरोहितों से तो नहीं है. कमलूराम जी का कहना है कि महाशय, मेघ, चमार जैसी जातियाँ सिप्पयों से नीचे मानी जाती हैं. वे स्वीकार करते हैं कि उन्हीं की जाति के लोग साथ लगते राज्यों में एससी हैं लेकिन ख़ुद इनका समुदाय हिमाचल प्रदेश की एससी सूची में नहीं है. (यह स्पष्टतः राजनीतिक मामला है.)

बयान की गई सिप्पी लोगों की स्थिति, भाषा, व्यवसाय, आर्थिक हालत और चेहरों की बनावट से लगता है कि वे मेघवंशी हैं साथ ही अपने संवैधानिक अधिकारों से वंचित भी हैं.

https://www.youtube.com/watch?v=pJjBxH0LlP4&spfreload=10



08 March 2015

Holi, Diwali - होली, दीपावली

मित्रता और भाइचारे के नाम पर मनाया जाने वाला बत्तमीज़ियों भरा होली का त्योहार आने वाला है. होलिका दहन की कथा आजतक मुझे कभी हज़म नहीं हुई कि होलिका ने अपने भाई राजा हिरण्यकशिपु के कहने पर फायरप्रूफ सूट पहना और अपने भतीजे बालक प्रह्लाद को जलाने के लिए आग में कूद गई क्योंकि वह भक्ति करता था. पूछो तो सही कि होलिका को आग लगाने वाले कौन लोग थे, राजा हिरण्यकशिपु के सेवक थे या उसके शत्रु थे जो उसका राज्य हड़पना चाहते थे? आगे चल कर हिरण्यकशिपु की धोखे से हत्या कर दी जाती है. 

इसी सीरियल का पार्ट टू है कि पिता की हत्या के बाद प्रह्लाद राजा बनता है और काफी समय तक होलिका पर खलनायिका का लेबल लगा कर उसे जला डालने वाले लोग कहानी में दो पीढ़ी तक नज़र नहीं आते. फिर वे प्रह्लाद के पोते और न्यायप्रिय राजा महाबली (स्पैलिंग चैक कर लें - बली या बलि) के समय फिर प्रकट होते हैं और उसके ही दरबार में उसकी हत्या हो जाती है. (कोई ब्राह्मण/वामन उसका राज्य छीन कर उसे पाताल में दफ़्ना देता है). सीरियल के विज़ुअल देखें तो होलिका, हिरण्यकशिपु और राजा महाबली की हत्या धोखे से की गई है. फिर उसके बाद महाबली की महालक्ष्मी (सम्राट का खज़ाना), शिक्षा, राजपाट, धर्म आदि जैसी सारी व्यवस्थाएँ ब्राह्मणों के हाथ में चली जाती हैं. यह कथा दीपावली पर लक्ष्मी के विष्णु नामक ब्राह्मण देवता के घर आगमन के साथ समाप्त होती है.


हे मेघनेट के पाठको अगली होली और दीवाली से पहले ब्राह्मणों के लिखे इस सीरियल की कहानी को क्लीयर कर लो यारो कि यह देश आख़िर गरीबों का देश कैसे बन गया?