"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


11 August 2015

Megh Caste - मेघ जाति

इस साइट पर अधिकतर मेघ/मेघ वंश की बात की गई है और कहीं-कहीं उससे जुड़ी पौराणिक कहानियों का उल्लेख किया गया है. मेघ एक वंश (Race) है जिसमें से बहुत-सी जातियाँ निकली हैं जो भारत के लगभग सभी प्रदेशों में बसी हैं. उनके कई नाम ऐसे हैं जिन्हें भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में रहने वाले मेघ पहचान नहीं पाते. मेघ वंश (Race) अन्य देशों में भी बसा है. गूगल करने पर कुछ न कुछ जानकारी मिल जाती है. वैसे 'मेघ' शब्द का एक अर्थ 'कबीला (Tribe)' भी है.

भारत में बसे कई 'वंशों' का 'जातियों' में बँटवारा उस व्यवस्था की देन है जिसे मनुवादी व्यवस्था कह दिया जाता है. उसी मेघ वंश का एक हिस्सा वो 'मेघ जाति' है जो जम्मू और पंजाब में बसी है. हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल और यूपी तक इस जाति के लोग बसे हैं.

पंजाब और जम्मू-कश्मीर में बसी 'मेघ जाति' पर पहली विस्तृत और प्रामाणिक जानकारी मुझे डॉ. ध्यान सिंह के शोध ग्रंथ के रूप में उपलब्ध हुई जिसे आप इन लिंक्स पर क्लिक करके या गूगल सर्च में Kabirpanthis's of Punjab या Dr. Dhian Singh - History of Meghs/Bhagats टाइप करके देख पाएँगे. श्री एम.आर. भगत की लिखी पुस्तक मेघमाला Meghmala दूसरी पुस्तक है जिसमें मेघ जाति के बारे में काफी जानकारी मिल जाती है

श्री आर.एल. गोत्रा के लिखे लंबे आलेख Meghs of India में मेघ वंश के प्राचीन इतिहास के साथ-साथ पंजाब-जम्मू-कश्मीर की मेघ जाति का कुछ आधुनिक इतिहास आपको मिल जाएगा.
इस जाति के बारे में डॉ नवल वियोगी की पुस्तक 'मद्रों और मेघों का प्राचीन और आधुनिक इतिहास' बहुत महत्वपूर्ण है.
मूलतः इस पोस्ट के नीचे बहुत से लिंक लगाए गए थे ताकि विस्तृत जानकारी तत्काल देखी जा सके. अभी हाल ही में जानकारी में आया कि तकनीकी दृष्टि से एक ब्लॉग में बहुत अधिक लिंक्स नहीं लगाने चाहिएँ. इसलिए पहले की पूरी पोस्ट को लिंक्स सहित एक पेज के रूप में रख लिया गया है जिसे आप नीचे दिए लिंक पर ज़रूर देख लें.

06 August 2015

Simon Commission - साइमन कमिशन

Dr. Ambedkar with the members of Simon Commission. Sir.Simon is seen on the right of Dr. Ambedkar.
हमें स्कूलों में पढ़ाया जाता था कि साइमन कमिशन का विरोध इस लिए किया गया था कि इस कमिशन के सदस्यों में कोई भारतीय नहीं था. लेकिन यह उससे भी बड़ा सच है कि भारत के पिछड़ों और अछूतों को अंग्रेज़ों के प्रस्तावित संविधान के तहत उचित प्रतिनिधित्व देना उस कमिशन के विचाराधीन था. इसी लिए साइमन कमिशन के साथ-साथ डॉ. अंबेडकर के खिलाफ भी नारे लगे थे क्यों कि उनकी बात कमिशन ने सुनी थी. हमारे स्कूली पाठ्यक्रम में लाला लाजपत राय हीरो थे लेकिन अब नई तस्वीरें सामने आ रही हैं. लाजपतराय का नायकत्व पतला है और सवालों के घेरे में खड़ा है.
 
अंबेडकर पर बनी फिल्म का एक अंश नीचे दिया है. इसमें आए ऐतिहासिक तथ्यों को अभी तक किसी ने चुनौती नहीं दी है.

Link - Simon Commission

नीचे दी गई यह पोस्ट फेसबुक पर मिली है. इसके सारे नेरेशन की मैं पुष्टि नहीं करता लेकिन इसमें पाठ्यपुस्तकों में पढ़ाए जा रहे अधूरे सच की बात ध्यान खींचती है. -भूषण

(क्या था *साईमन कमीशन*?
जब बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर विदेश से पढकर भारत में बडौदा नरेश के यहां नौकरी करने लगे तो उनके साथ बहुत ज्यादा जातिगत भेदभाव हुआ। इस कारण उन्हें 11 वें दिन ही नौकरी छोड़कर बडौदा से वापस बम्बई जाना पड़ा। उन्होंने अपने समाज को अधिकार दिलाने की बात ठान ली।
उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को बार-बार पत्र लिखकर depressed class की स्थिति से अवगत करवाया और उन्हें अधिकार देने की माँग की।
बाबा साहेब के पत्रों में वर्णित छुआछूत व भेदभाव के बारे में पढकर अंग्रेज़ दंग रह गए कि क्या एक मानव दूसरे मानव के साथ ऐसे भी पेश आ सकता है। बाबा साहेब के तथ्यों से परिपूर्ण तर्कयुक्त पत्रों से अंग्रेज़ी हुकूमत अवाक् रह गई और 1927 में depressed class की स्थिति के अध्ययन के लिए मिस्टर साईमन की अध्यक्षता में एक कमीशन का गठन किया गया।
जब कांग्रेस व महत्मा गांधी को कमीशन के भारत आगमन की सूचना मिली तो उन्हें लगा कि यदि यह कमीशन भारत आकर depressed class की वास्तविक स्थिति का अध्ययन कर लेगा तो उसकी रिपोर्ट के आधार पर अंग्रेजी हुकूमत इस वर्ग के लोगों को अधिकार दे देगी। कांग्रेस व महत्मा गांधी ऐसा होने नहीं देने चाहते थे।
अतः 1927 में जब साईमन कमीशन अविभाजित भारत के लाहौर पहुंचा तो पूरे भारत में कांग्रेस की अगुवाई में जगह-जगह पर विरोध प्रदर्शन हुआ और लाहौर में मिस्टर साईमन को काले झंडे दिखा कर go back के नारे लगाए गए। बाबा साहेब स्वयं मिस्टर साईमन से मिलने लाहौर पहुंचे और उन्हें 400 पन्नों का प्रतिवेदन देकर depressed class की स्थिति से अवगत कराया। कांग्रेस ने मिस्टर साईमन की आँखों में धूल झोंकने के लिए उनके सामने ब्राह्मणों को depressed class के लोगों के साथ बैठ कर भोजन करवाया (बाद में ब्राह्मण अपने घर जाकर गोमूत्र पीकर उससे नहाये)। यह सब पाखण्ड देखकर बाबा साहेब मिस्टर साईमन को गांव के एक तालाब पर ले गये। उनके साथ एक कुत्ता भी था। वह कुत्ता अपने स्वभाव के मुताबिक सबके सामने उस तालाब में डुबकी लगाकर नहा कर बाहर आया। तब बाबा साहेब ने एक depressed class के व्यक्ति को तालाब का पानी पीने के लिए कहा। उस व्यक्ति ने घबराते हुए जैसे ही पानी पिया तो आसपास के ब्राह्मणों ने हमला बोल दिया। *आखिरकार बाबा साहेब सहित अन्य व्यक्तियों को पास की एक मुस्लिम बस्ती में शरण लेकर अपना बचाव करना पड़ा।*
मिस्टर साईमन को सब कुछ समझ में आ गया। उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को वस्तु स्थिति रिपोर्ट सौंप दी। बाबा साहेब भी बार-बार पत्राचार करते रहे और उन्होंने लंदन जाकर अंग्रेजी हुकूमत के वरिष्ठ अधिकारियों व राजनेताओं को बार-बार भारत की depressed class को अधिकार देने की मांग की।
बाबा साहेब के तर्कों को अंग्रेजी हुकूमत नकार नहीं सकी और उसने भारत की depressed class को अधिकार देने के लिए 1930 में communal award (संप्रदायिक पंचाट) पारित किया।
*हमें विद्यालय में यह पढाया गया था कि कांग्रेस ने साईमन कमीशन को काले झंडे दिखा कर go back के नारे लगाए। परंतु उसने वास्तव में ऐसा क्यों किया, यह नहीं पढाया गया।*
*जागते रहो! जगाते रहो!!*) - फेसबुक से प्रीतम सिंह के साभार