"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


02 August 2016

Deers of Chinua Achebe - चिनुआ अचीबी के हिरण


चिनुआ अचीबी ने कहा है - ''जब तक हिर अपना इतिहास खुद नहीं लिखेंगे तब तक हिरणों के इतिहास में शिकारियों की बहादुरी के किस्से गा जातेहेंगे''. : चिनुआ अचीबी (Chinua Achebe)

भारत में अभी तक पढ़ाया जा रहा इतिहास वही कड़ुवा सच है जिसकी बात चिनुआ अचीबी ने की है. कुछ देवताओं के नामों का गुनगान, कुछ पुराने ज़माने में हुए-अनहुए राजाओं की तारीफ़ या फिर उनकी लुभाने वाली और दिलचस्प बातों से इतिहास तो भरा हुआ है ही साथ ही साथ साहित्य में भी वो कहानियाँ-किस्से भ दिए गए हैं.तिहास बताए जाने वाले न पुराणों में जो लोग हारते हुए, मरते हुए या नरक जाते हुए दिखाए गए हैं वो वही लोग हैं जिनके वंश के लोग आज हिस्ट्री की क्लासों में बैठे हुए महसूस करते हैं कि उन्हें पढ़ाए जा रहे इतिहास में उनके पुरखों के बारे में तो कुछ है ही नहीं.

आज भारत का पढ़ा-लिखा लेकिन बिखरा हुआ वो वंचित समाज इस ओर ध्यान दे रहा है कि इतिहास कहे जाने वाले उन पुराने किस्सों और इतिहास में आम लोगों की बात तो है ही नहीं. हाथ से काम करने वाले मेहनतकश लोगों, मेहनती किसान-कमेरों और महिलाओं के सामाजिक हालात का बयान भी उसमें नहीं मिलता. ब्राह्मणों को खूब दान देने वाले राजाओँ-महाराजाओं की कहानियों में इतना ज़रूर कहा जाता है कि 'के राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी'. ग़ैर-ब्राह्मण प्रजा की माली हालत कैसी थी उसकी किसी प्रकार की डिटेल अकसर वहाँ नहीं मिलती. 

चलिए सबसे पहले इतिहासकारों की प्यारी जगह मुअनजोदाड़ो की बात करते चलते हैं. मुअनजोदाड़ो की खुदाई में तलवारें, भाले या लड़ाई में काम आने वाले हथियार नहीं मिले हैं. ज़ाहिर है वहाँ के रहने वाले अमनपसंद थे. काफी कुछ हिरनों जैसे. बाहर से आए हथियारबंद हमलावरों यानि आर्यों के मुकाबले उनकी हालत बेबस लोगों जैसी थी जो आर्यों के हथियारों का मुकाबला करना नहीं जानते थे. जीतने के बाद उन मलावरों ने लोगों को गुलाम बनाना शुरू किया. गुलामों के साथ जो हिंसा और अत्याचार हुआ उसके बारे में शिकारी क्यों कुछ कहने लगे? शिकारियों ने अपनी बहादुरी के किस्से बनाए, अपने नियम-कायदे लागू किए, धर्म और नीति पर ग्रंथ लिखे और लिखवाए, 'सुर-असुर संग्राम' को मशहूर किया, धर्म-अधर्म और नीति-अनीति की अपनी बातों को मनवाया. जो वो ख़ुद करते थे उस पर अच्छाई का ठप्पा लगाया और जो उस सभ्यता के लोग करते थे उस पर बुराई का लेबल चिपका दिया. गुलाम बनाए गए लोगों पर किए गए ज़ुल्मों को उनके धार्मिक ग्रंथ अभी तक न्याय कहते हैं. धार्मिक किताबें लिखने वाला वो पुरोहित वर्ग उन लगभग निहत्थे हिरनों की बात नहीं करता जो गुलामों के रूप में उनके खूँखार हाथों में आ गया था. आज तक भारत की अधिकतर राजनीति और बड़ी राजनीतिक पार्टियाँ उसी धार्मिक या कह लीजिए कि धार्मिक-राजनीतिक समझ को ले कर चल रही दिखती हैं. ये उस इतिहास की वही अक्ल है जो महिलाओं और मेहनतकशों की हालत सुधारने की बात आज भी नहीं करती. उसे तो बस धर्म और धर्म से जोड़ी गई चीज़ों के सहारे राजनीति करनी है. धर्म से उपजाया गया जातिवाद उसका बहुत बड़ा हथकंडा है.

उनके हथकंडों की झलक आपने पिछले दिनों सोशल और अन्य मीडिया पर देखी होगी. आपने देखा होगा कि जब आप अपना जीवन स्तर को सुधारने की बात करेंगे तो वो आपको सरहद पर खड़े आपके भाइयों की राष्ट्रभक्ति का आदर्श दिखाएगी और आपको चुनौती देगी कि बताओ - "असली राष्ट्रभक्त कौन है, वो फौजी, या आप?" आप बैंको से अपना पैसा निकलवाने के लिए लाइन में न लग कर, सारे सिविल कार्य छोड़ कर फौज में भर्ती होने के लिए लाइन में खड़े हो जाइए. चलेगा क्या? यदि आप उनके जुमलों की वजह से अपना आर्थिक-सामाजिक एजेंडा भूल जाएँगे तो यह आपकी कमज़ोरी है. आप अपना एजेंडा छोड़ने लगेंगे और अनजाने में उनकी गुलामी करने लगेंगे यानि उनके भक्त हो जाएँगे. इसके बाद आपको धर्म के नाम पर डराने का सिलसिला शुरू होगा. वे कहेंगे कि वो देखो आपको मुसलमानों और ईसाइयों से ख़तरा है. इसके बाद वो जातिवाद का हथकंडा अपनाएँगे. आपको बताने लगेंगे कि छुआछूत के लिए हिंदुत्व ज़िम्मेदार नहीं बल्कि इस्लाम ज़िम्मेदार है. लेकिन वो इस बात का जवाब नहीं दे पाते कि यदि जातपात मुग़लों ने फैलाई थी तो 'मनुस्मृति' क्या हज़रत मोहम्मद या हज़रत ईसा ने ने लिखी थी?

कुल मिला कर कह सकते हैं कि शिकारी अपने धर्म का एजेंडा कई प्रकार से आप पर थोपता है. आपको एक ऐसा हिरन बना कर रखना चाहता है जो शिकार के लायक हो. आपको अपना कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं बनाने देता. आपको धर्म, जाति और दंगों में उलझाए रखता है. अब आप देखिए कि आपका एजेंडा क्या होना चाहि, आपके परिवार के लिए रोज़गार, सेहत और चिकित्सा या कुछ और, ISIS या लग़ातार घटती आपकी ख़रीदने की ताक़त, गौ-माता है या महँगी होती शिक्षा या फिर हिंदुत्व या महँगी होती दवाइयाँ और डॉक्टर? जब आप उनके उनके बनाए हुए एजेंडा को अपना मानने लगेंगे तो आप अपना एजेंडा कैसे तय करेंगे?

हज़ार बातें छोड़ दीजिए, इस ज़ाहिर सच्चाई को समझ लीजिए कि आपकी माली (आर्थिक) हालत का भविष्य राजनीति और सत्ता में बैठे लोग लिखते हैं. डॉ. अंबेडकर का लिखा इतिहास जानिए. ख़ूब पढ़िए और ख़ुद भी लिखिए. इतना तो जान कर और मान कर चलिए कि हिर वो होते हैं जिनका अपना कोई एजेंडा का हथियार नहीं होता. जो अपना एजेंडा ले कर चल पड़ते हैं वो हिर नहीं रह जाते.