"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


27 April 2017

Ghosts and God - भूत और ईश्वर

मनोविज्ञान इस बात को मानता है कि भूत एक काल्पनिक शत्रु है और ईश्वर एक काल्पनिक मित्र है. जो लोग इच्छाशक्ति के साथ अपने कार्य में लगे रहते हैं उनके बारे में देखा है कि वे आमतौर पर भूत-प्रेत से ग्रसित नहीं होते. इसका उलटा भी आप समझ लीजिए. किसी के प्रति घृणा या अतृप्त वासना भी भूत-आत्मा जैसी चीज़ को जन्म देती हैं. लेकिन है वो मन का खेल (प्रोजेक्शंस) ही जिसका सीधा रिश्ता हारमोंस और दिमाग़ की न्यूरल एक्टिविटी से होता है.


भूत और भगवान को लेकर एक बड़ा आर्थिक क्रियाकलाप समाज में है. किसी इमारत को ‘भुतहा इमारत’ मशहूर कर के प्रापर्टी डीलर खरीददारों को डरा देते हैं और इमारत की कीमत गिर जाती है. बाद में उसे ख़ुद प्रापर्टी डीलर या कोई और तिकड़मबाज़ खरीद लेता है. उसे बस हवन-यज्ञ, जगराता आदि कराना होता है और गृहप्रवेश का रास्ता साफ़. गिरी कीमत पर बड़ी जायदाद बुरी नहीं हो सकती. कहीं-कहीं देवीमाँ प्रकट हो जाती है.


हवन-यज्ञ, जगराता क्या है? यह एक काल्पनिक मित्र को याद करना है जो डर पर काबू पाने में सहायता करता है. भूत का इस्तेमाल प्रापर्टी डीलर या प्रापर्टी में हिस्सेदार लोग करते हैं या फिर ईश्वर-भगवान नामक काल्पनिक मित्र का बिज़नेस करने वाले. एक धूर्त काल्पनिक दुश्मन खड़ा करता है तो दूसरा एक काल्पनिक मित्र खड़ा करके अपना बिज़नेस चलाता है. दोनों में आपसी अंडरस्टैंडिंग होती है.🙂


आपने अपनी ज़िंदगी में महसूस किया होगा कि भूत और ईश्वर दोनों कभी किसी से डायरेक्टली पंगा नहीं लेते. पंगा धूर्त ही लेते हैं.

मेघों की देरियों पर जो चौकी दी जाती है वह भी भय और मित्रता का अद्भुत मिश्रण है. इसका स्वरूप ट्राइबल परंपरा जैसा है. बेहतर है कि सच्चाई को समझा जाए.


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