"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


23 April 2017

Your vote determines your fate - आपका वोट आपके नसीब को तय करता है

2014 का चुनाव भारत की राजनीति के इतिहास में एक दुर्घटना के तौर पर भी जाना जाएगा जिसमें विपक्ष अपंग हो गया. उसके बाद की स्थितियां ऐसी हैं कि हिंदू-मुसलमान, गौमाता, लव-जिहाद, घर वापसी जैसे मुद्दे जोर पकड़ते नजर आए जिसे आम नागरिक गौर से देख रहा है. जाहिर है हिंसक ब्यानबाज़ी इसलिए की जाती है ताकि आम पब्लिक की नसें सर्द पड़ जाएँ. जिस जातपात के अंधेरे ने देश की बहुसंख्य आबादी को आज़ादी की रोशनी से दूर रखा है उसे हटाने की बात कोई नहीं करता. इन हालात में भी कुछ अनुभवी आवाजें और ख़्याल बुलंद होते रहते हैं.

105 लाख करोड़ रुपया कितना होता है मैं नहीं जानता. राजनीति के प्रखर दार्शनिक और राजनीतिज्ञ शरद यादव ने कहा है कि हर वोट की कीमत 105 लाख करोड़ रुपए होती है. हर वोट सरकार को इतना पैसा खर्च करने की शक्तियाँ प्रदान करता है.

देश में अनपढ़ता और गरीबी इतनी है कि चुनाव में लोग सौ रुपए, पाँच सौ रुपए में या दारू की बोतल के बदले अपना वोट बेचते हैं और फिर उन्हें शिकायत भी रहती है कि उनके जीवन में कोई सुधार नहीं हुआ. होता कैसे? वे अपना वोट ऐसे व्यक्ति को नहीं देते जो उनके सामाजिक हालात सुधारने और देश के आर्थिक स्रोतों में उनके हिस्से को सुनिश्चित करने के लिए काम करे. प्रत्यक्षतः इसमें बड़ी बाधा जातपात है और नेता जातपात के चलते रहने में अपनी भलाई देखते हैं. इस लिए अपना वोट दान में या उपहार में न दें. इसे अपनी व्यक्तिगत ज़िंदगी और व्यवस्था परिवर्तन के औज़ार के तौर पर इस्तेमाल करें.

इस बात को समझना बहुत जरूरी है कि भारत में गरीबी का इंडेक्स जाति के इंडेक्स के समरूप है. नीचे की सभी (श्रमिक) जातियां गरीब हैं क्योंकि वे मात्र श्रमजीवी हैं और ऊपर की जातियां अमीर क्योंकि देश के सभी स्रोतों का प्रबंधन उनके हाथ में है. तिस पर भ्रष्टाचार गरीबों को अधिक गरीब बनाए रखने का एक ज़रिया बन गया है. 'गरीबी हटाओ' का नारा लगा कर इंदिरा गांधी ने चुनाव जीता. हाल ही में गरीबों का नाम लेकर केंद्र में नई सरकार बनी. लेकिन गरीबों को अपने जीवन स्तर में कोई सुधार होता नजर नहीं आता. ज़ाहिरा तौर पर इसकी बड़ी वजह जातपात है. जातिवाद सुनिश्चित करता है कि सस्ते मज़दूरों की सप्लाई न रुके और निशाने पर श्रमिक जातियाँ यानि निम्न जातियाँ होती है. महँगी शिक्षा और महँगी चिकित्सा ग़रीबी को और भी बढ़ा देती है.

(“याद रखना कि जातिव्यवस्था के कूड़े पर....कचरे पर हर तरह का कीड़ा पलता है -करप्शन का....भ्रष्टाचार का....अन्याय का....सब तरह का. जात है तो न्याय नहीं मिल सकता. इंसाफ धरती पर सब जगह आ जाएगा लेकिन हिंदुस्तान में नहीं आ सकता. -शरद यादव”)

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