मुश्किल तो है पर ऐसी मुश्किल भी नहीं जिसका अनुमान न लग सके या उसे जीया ना जा सके. शरीर एक तरफा (वन वे) टिकट लेकर आया हुआ है उसी दिशा में उसे बढ़ना है. लौटने का रास्ता बना नहीं.
मैंने इंटरनेट पर काफी यात्रा की है. थका हुआ भी महसूस करता हूं लेकिन जो मिशन लेकर चला था उस पर कुछ कार्य किया है, कुछ और कार्य करने का विचार अभी बाकी है. यह एक यायावरी है. सामने रास्ता है तो चलने को दिल करता है. कुछ और आगे दिखता है तो उस ओर बढ़ जाता हूँ. लगता है यह लक्षण ठीक ही है. आने वाले दिनों में आँख का ऑपरेशन है. कुछ दिन चिट्ठाकारिता (ब्लॉगिंग) से दूर रहना होगा. डॉक्टर ऐसी सलाह देते हैं. पहले एक ऑपरेशन करवाया था तो आँख की सीमाओं का पता चला था लेकिन चलने का जुनून खींचता रहा.
आशा है सीमाओं का वो भरम भी मिटता रहेगा. ब्लॉगिंग की यात्रा में मेरे पुराने सहयात्रियों अमृता तन्मय, दिगंबर नासवा और महेंद्र वर्मा जी के लिए शुभकामनाएँ. मुझे ब्लॉगिंग सिखाने वाले श्री राजकुमार ‘प्रोफेसर’ का आभार व्यक्त करता हूँ. ब्लॉगिंग की राह अभी बाकी है. जल्दी ही मिलेंगे.
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