"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


25 December 2017

The World of Kelly Lane - कैली लेन का संसार

   
Kelly Lane is 11 years old and he has a passion for reading and writing. I  came to know about him through his father Dr. David C. Lane. I have never met them but I have been familiar with the work of Dr. Lane regarding Indian Sage Baba Faqir Chand for the past few decades.
Kelly is an example which explains the importance of scientific attitude in education. He has been provided opportunities by his parents to read and write and develop in various dimensions of life. Both parents are professors of philosophy. You might think why I chose an American child to underline the importance of education. Keep reading, you will understand. Kelly has visited India and seen Agra, Amritsar etc.
Here in India we are taught religious, mythological and devotional literature which settles in the mind of the children and it is done in the name of literature, history and moral education. We all know that a child's brain is like raw material which becomes manufactured product for the society and finally makes the society itself. If we do not develop scientific temperament in children then you can imagine what  would be the finished product.
We have here a complete arrangement to keep the scientific thinking undeveloped, though Indian constitution resolves to develop scientific temperament. We are quite behind in the race of scientific inventions and knowledge. Science has created new areas of employment opportunities and our young generation is not much aware of it. One of those new areas pertains to ​​Artificial Intelligence (A.I., Artificial Intelligence) (including robotics and automation), that has changed the role of humans in production and services.
During British regime, Lord Macaulay's education policy ensured actual spread of education in India. As  a result a large number of youngsters from different levels of society got an opportunity to get basic education and India, thereafter, got better connected with rest of the world. Many reforms took place. A class with scientific knowledge emerged and that resulted in change in people's traditional thinking about religion and society. To be precise, human rights were introduced. Still many changes are awaited before common man can understand the new developments in science, specially Artificial Intelligence.
11-year-old Kelly has known about this artificial intelligence and has completed a project on it - ‘WHEN COMPUTERS BECOME HUMAN: A KID'S GUIDE TO THE FUTURE OF ARTIFICIAL INTELLIGENCE’. It is in many formats - completely colorful paperback, kindle e-book and a film (embedded below). His teachers and parents must have played their role in the project. However, for me, what important is that Kelly is being prepared to know various aspects of artificial intelligence and also philosophical thought related to it. Kelly is fond of reading and writing. But that does not mean that Kelly has become a child engaged only in books. A family friend of Lanes’, Glenda Fields, told me via Facebook, "Have you met Kelly? I met him a few months ago. He is a very delightful, happy young man! Huge, huge, smile!" That tells about the family atmosphere in which Kelly is growing up.
Recently, Dr. David C. Lane told about a recent proposal from a Chinese publisher to publish the above mentioned book in Chinese language and distribute it in China. Congratulations to Kelly and his parents.
Watch the video below. You will find that this book raises a question in your mind as to how long artificial intelligence and human consciousness would continue to dwell separately? Will artificial intelligence envelop or overshadow human consciousness? Hopefully these questions will be answered by Kelly and children like him when they grow up.

कैली (Kelly Lane) 11 साल का है और पढ़ने-लिखने वाला बच्चा है. मैंने उसे उसके पिता डॉ. डेविड सी. लेन के माध्यम से जाना है. दोनों से मैं कभी नहीं मिला लेकिन डॉ. लेन के कार्य से मैं कई दशकों से परिचित हूँ. उन्नत शिक्षा के महत्व का एक अच्छा उदाहरण मिडल स्कूल में पढ़ने वाला कैली है. उसे पढ़ने-लिखने और जीवन के कई आयामों को विकसित करने का अवसर उसे माता-पिता ने उपलब्ध कराया है. वे दोनों दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर हैं. आप सोचते होंगे कि मैंने शिक्षा के महत्व को रेखांकित करने के लिए एक अमेरिकन बच्चे को ही क्यों चुना. पढ़ते रहिए, समझ जाएँगे. कैली भारत में आगरा, अमृतसर घूम चुका है. हमारे यहाँ साहित्य, इतिहास, नैतिक शिक्षा के नाम पर धार्मिक, मिथिकल और भक्ति साहित्य बच्चे के दिमाग़ में ठूँस दिया जाता है. बच्चे का दिमाग़ एक तरह का कच्चा माल होता है जिससे समाज के लिए तैयार माल बनता है और ख़ुद समाज भी बनता है. जब वैज्ञानिक समझ नहीं बनेगी तो समझ लीजिए कि हमारे तैयार माल और समाज का स्वरूप कैसा होगा या है. हमारे यहाँ वैज्ञानिक सोच को अविकसित रखने का पूरा इंतज़ाम रहा है बावजूद इसके कि संविधान वैज्ञानिक सोच विकसित करने की बात करता है. हम वैज्ञानिक खोजों की रेस में काफी पीछे हैं. विज्ञान ने रोज़गार के ऐसे कई नए क्षेत्र विकसित किए हैं जिनके बारे में हमारा एक बड़ा युवा वर्ग कम जानता है. उन क्षेत्रों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (A.I., कृत्रिम बुद्धिमत्ता) (इसमें रोबोटिक्स और ऑटोमेशन शामिल है) का नया और विस्तृत क्षेत्र है जिसने उत्पादन और सेवाओं में मानव की भूमिका को बदल दिया है. लॉर्ड मैकॉले (Lord Macaulay) की शिक्षा नीति ने भारत में शिक्षा का प्रसार किया. आगे चल कर एक बड़ा पढ़ा-लिखा वर्ग पैदा हुआ. कुछ सुधार हुए वैज्ञानिक सोच वाला एक वर्ग बना और धर्म के बारे में लोगों की परंपरागत सोच में परिवर्तन हुआ. अभी भी बहुत से परिवर्तन अपेक्षित हैं ताकि हम विज्ञान के अद्यतन स्वरूप को समझ सकें जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक है. 
कैली अपनी पसंदीदा जगह पर

11 वर्षीय कैली ने इसी कृत्रिम बुद्धिमत्ता के विषय में जाना है और उस पर एक प्रोजेक्ट पूरा किया है - WHEN COMPUTERS BECOME HUMAN: A KID'S GUIDE TO THE FUTURE OF ARTIFICIAL INTELLIGENCE (यानि - जब कंप्यूटर इंसान बन जाते हैं: आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के भविष्य के बारे में एक बच्चे की मार्गदर्शिका). यह कई फार्मेट्स में है- पूरी तरह रंगीन पेपर बैक, किंडल ई-बुक और फिल्म के रूप में जिसे मैंने नीचे एंबेड कर दिया है. इस प्रोजेक्ट में उसके अध्यापकों और माता-पिता की भूमिका रही है. लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि 11 साल का कैली कृत्रिम बुद्धिमत्ता से संबंधित दर्शन (फिलासफी) के बारे में कार्य करने के लिए तैयार हो रहा है. कैली बहुत पढ़ता और लिखता है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह कंप्यूटर जैसा हो गया है. नहीं. उनकी पारिवारिक मित्र ग्लैंडा फील्ड्स (Glenda Fields) ने फेसबुक पर मुझे कहा, “Have you met Kelly? I met him a few months ago. He is a very delightful, happy young man! Huge, huge, smile!” मतलब कि वो मनोहर और ख़ुश दिल बच्चा है. ग्लैंडा उनके पारिवारिक माहौल की बहुत प्रशंसा करती है जिसमें Kelly पला-बढ़ा है. हाल ही में डॉ. डेविड लेन ने बताया कि उन्हें एक ख़बर मिली कि चीन के एक प्रकाशक ने उक्त पुस्तक को चीनी भाषा में छापने और चीन में वितरित करने की अनुमति मांगी है. कैली और उसके माता-पिता को बधाई नीचे का वीडियो देखिए. आप जान जाएँगे कि यह पुस्तक एक सवाल आपके दिमाग़ में छोड़ जाती है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता और इंसानी चेतना आखिर कहाँ तक अलग-अलग चलेंगी? क्या कृत्रिम बुद्धिमत्ता इंसानी चेतना को आच्छादित कर लेगी? उम्मीद है कि इन सवालों के जवाब कैली और उसके जैसे बच्चों से मिलेगा जब वे बड़े हो जाएँगे.


नासा के वर्तमान छह AI प्रोजेक्ट्स

08-02-2018



15 December 2017

Self Pride and Self Respect - आत्म-गौरव और आत्म-सम्मान


आत्मगौरव और स्वाभिमान एक दूसरे पर निर्भर हैं लेकिन स्वाभिमान से पहले आत्मगौरव का स्थान है जिसका निर्माण करना पड़ता है. आगे चलकर उसी पर स्वाभिमान का मज़बूत ढांचा खड़ा होता है.
गरीब समुदाय अपने आत्मगौरव की निशानियां वहाँ भी ढूंढते हैं जहाँ उसके मिलने की उम्मीद बहुत कम होती है. लेकिन आत्मगौरव के पायदान चढ़ने के लिए जरूरी नहीं है कि बड़े-बड़े युद्ध जीतने ज़रूरी हों. बुद्ध ने कोई युद्ध नहीं जीता लेकिन दुनिया भर के सभी धर्मों के मूल में कहीं ना कहीं बुद्ध की विचारधारा स्थापित है. जहाँ धर्म और आस्तिकता नहीं भी है वहाँ भी व्यक्ति के विकास के लिए बुद्ध के विचारों का ख़ज़ाना मौजूद है. इससे सिद्ध हो जाता है कि जिन विचारों और विचार-युक्तियों से हम इंसानी जीवन को खूबसूरत बना सकें वो विचार हमारे लिए गर्व की बात हो सकती है. और जब वो गर्व की बात बन जाती है तब वो हमारे आत्मगौरव का आधार बन जाती है. आत्मगौरव एक विचार है और इसके तल में कई अन्य विचारों की अदृष्य धारा बहती रहती है.
कभी किसी समुदाय पर ऐसी परिस्थितियां आ सकती हैं जिससे उसके आत्मगौरव की निशानियां किसी कारण से गुम हो जाएं, उनके शांतिपूर्ण अहं को कुचल दिया जाए, उनकी सभ्यता को नेस्तनाबूद कर दिया जाए या उनकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को मिटा दिया जाए. यदि उस समुदाय का जहाज़ समय के थपेड़े खाता हुआ अपने जर्जर मस्तूल और फटे हुए पाल के साथ अपनी यात्रा करता रहता है तो मानना चाहिए कि उस समुदाय में कोई ना कोई ऐसा आत्मगौरव और स्वाभिमान है जो उसे चलने की शक्ति देता आ रहा है. यह पाल और मस्तूल और कुछ नहीं, उस समाज या समुदाय के अंदर रचे-बसे ऐसे मानवीय मूल्य (human values) हैं जो जिंदगी नाम की चीज़ को हर हाल में बचाए रखते हैं और उसे खूबसूरत अहसासों से भरते रहते हैं.
आत्मगौरव एक भावात्मक धौंकनी है जो हमारी जीवनी शक्ति को प्राणवान बनाए रखती है. आत्मगौरव स्वाभिमानी मानसिकता का एक स्ट्रक्चर है जिसका निर्माण करना पड़ता है. निर्माण के बाद उसका रखरखाव करना होता है और उसकी रक्षा तो ज़रूरी है ही. देखा गया है कि जो समुदाय आत्मगौरव से ओतप्रोत होते हैं वे स्वतः ही अपने भीतर आत्मविश्वास से भरे हुए जन-समूहों की सृष्टि करते हैं.
अपनी निंदा आप करना बुरी बात है. अपने समुदाय की निंदा करना तो बहुत ही बुरी बात है. यह दूसरों को आपके ख़िलाफ़ बोलने का भरपूर मौका देती है. तुलसीदास ब्राह्मण थे. उन्होंने अपने समुदाय के लोगों की प्रशंसा करते हुए लिखा है- “पूजिए विप्र जदपि गुण हीना, ना पूजिए अन्य गुण ज्ञान प्रवीना”- अर्थात ब्राह्मण में यदि कोई गुण ना भी हो तो भी वह पूजनीय है. दूसरा कोई गुण और ज्ञान में बहुत प्रवीण हो भी तो भी वो पूजनीय नहीं है. ध्यान रहे कि यह बात तुलसीदास ने अपने समुदाय के लिए कही थी. किसके मुँह से कहलवाई इसका भी कोई महत्व नहीं. तुलसीदास अपने समुदाय की प्रशंसा करना जानते थे और उसी सिलसिले में वे अपने समुदाय के लिए ‘राम-चरित-मानस’ जैसी रचना दे गए. आज की स्थिति यह है कि उनका समुदाय ‘राम-चरित-मानस’ को और तुलसी बाबा को अपने सिर पर उठाए-उठाए फिरता है. ये आत्मगौरव की सीढ़ियाँ हैं. गर्व किसका? जो आपका है, अपना है.
गौरव 'गर्व' से जुड़ा शब्द है. गर्व यदि ज़रूरत से अधिक हो जाए, तर्क से परे हो जाए, कारण-परिणाम की सीमाएँ लाँघ जाए या कह लीजिए कि उजड्ड हो जाए तो उसे अहंकार या दुरहंकार मान लिया जाता है. इसलिए यह जानना ज़रूरी है कि आत्मगौरव दरअसल एक तरह का अपने प्रति, अपनों के प्रति और अपने जीवन मूल्यों के प्रति आदर है जो साधारण भाषा में आत्मसम्मान कहलाता है. इसे अहंकार नहीं कहा जाता. इस आत्मसम्मान में आदमी की अपनी हैसियत, योग्यताएँ, माल-असबाब, पुरखों की शिक्षा, उसके अपने समुदाय और उसके क्षेत्र की परंपराएँ, प्रणालियाँ, त्योहार, नैतिक मूल्य यहाँ तक कि उसके निजी और उसके समुदाय से संबंधित उत्पाद, कलाएँ, पूजा-स्थल, कारीगर, लोक-गीत, लोक-कलाकार, साहित्य, साहित्यकार, रंगकर्मी, भाषा-बोली, बुद्धिजीवी, राजनेता, नौकरशाह, समाज-सेवी  आदि बहुत कुछ होता है. इनका विकास कीजिए, इनको समर्थन दीजिए.
आपका आत्मसम्मान कोई यूँ-ही-सी चीज़ नहीं और यूँ ही नहीं बन जाती. यह प्रेम से सजाई गई उस मूर्ति की तरह है जिसे सजाते-सजाते आप अनजाने में उसकी पूजा करने लगने लगते हैं.