"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


27 July 2018

Menander (Milind) - मिनांडर (मिलिंद)

श्री रतनलाल गोत्रा जी समय-समय पर संकेत देते रहे हैं कि मेघों का प्राचीन इतिहास मुख्यतः अन्य देशों के इतिहास में कहीं छुपा हुआ हो सकता है. भारत के इतिहास से तो वो लगभग गुम है. गोत्रा जी का भेजा हुआ नया लिंक इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका से है. यह रुचिकर है.

लॉर्ड कनिंघम द्वारा दिए गए संकेतों के आधार पर गोत्रा जी ने यह जानने की कोशिश की कि क्या मेघ मेडिटेरेनियन क्षेत्र से संबंधित हैं. यह विषय लंबा है और इस पर पहले भी कुछ न कुछ लिखा जा चुका है. लॉर्ड कनिंघम की लिखतों से यह संकेत भी मिलता है कि मेघ मध्य एशिया से सप्तसिंधु क्षेत्र और चीन के रास्ते उत्तर पूर्वी भारतीय क्षेत्र से कभी दाखिल हुए थे. यह भी रिकॉर्ड मिलता है कि मध्य एशिया में मेघ शब्द का अर्थ ट्राइब या कबीला होता है. इस बात की जांच बहुत जरूरी है कि उत्तर पूर्वी राज्यों से आए मेघों और मेडिटेरेनियन क्षेत्र से आए मेघों का क्या कोई खून का रिश्ता था, क्या इसके बारे में DNA की रिपोर्ट कुछ कहती है?

इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के मिनांडर (मिलिंद) पर दिए संदर्भ को देखने पर मेरी पहली प्रतिक्रिया यह थी कि बौध राजा बृहद्रथ की हत्या करने वाले पुष्यमित्र शुंग को युद्ध में हराने वाले राजा मिलिंद के बारे में हमें इतिहास में क्यों नहीं पढ़ाया गया? मिलिंद यूनानी था और मेडिटेरेनियन क्षेत्र का शासक था. माना जाता है कि उसने बौध धम्म ग्रहण कर लिया था. जब पुष्यमित्र शुंग ने बौधों की हत्याएँ कराना शुरू किया तब मिलिंद ने पुष्यमित्र शुंग पर चढाई कर दी और युद्ध में उसे हरा दिया. कहा जाता है कि उसने स्यालकोट सहित कुछ क्षेत्र उससे छुड़वा लिए थे. सिकंदर के मुकाबले मिलिंद ने अधिक कबीलों पर जीत हासिल की थी. ब्रिटेनिका का उक्त आलेख बताता है कि अपोलोडोटस और मिलिंद का प्रभाव गुजरात तक था. यूनानियों ने अयोध्या और पाटलीपुत्र तक जीत हासिल की थी (यहाँ सिकंदर नहीं पहुँच पाया था). बौध साहित्य में मिलिंद की सैन्यशक्ति, ऊर्जा और बुद्धिमत्ता की बहुत तारीफ़ की गई है. मिलिंद और सर्वास्तीवदन बुद्धिस्ट नागसेना के बीच हुए संवाद को Milind Panho के नाम से सुरक्षित रखा गया है. 

श्री आर.एल. गोत्रा के द्वारा जोड़ी गई कड़ियों को अब फिर से देखें तो यूनान और मेडिटेरेनियन क्षेत्र से हो कर आए सिकंदर और उसके वारिसों ने मध्य एशिया से वाया ईरान आए लोगों का पक्ष नहीं लिया बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप के बौधों का पक्ष लिया. सप्तसिंधु का क्षेत्र उस समय बौध सभ्यता और श्रमण संस्कृति के प्रभाव में था. यहाँ मुझे रांझाराम की याद हो आती है. क्या मेघों का यूनानी सेना के साथ कोई संबंध था?

है कोई जंगली घोड़ा, जो अतीत में जा कर इसका पता लगा कर आए और ज़ोर से हिनहिना कर बताए कि हाँ मैं सच्चाई जानता हूँ.

11 July 2018

Straight line of Atheism - नास्तिकता की सरल रेखा

एक पत्रकार जेल के कैदियों का इन्टरव्यू लेने जेल में पहुंचा और एक ‘नास्तिक’ नाम वाले कैदी से पूछा - "तुम्हारा नाम नास्तिक कैसे पड़ा?"
उसने बताया कि मैं पहाड़ी इलाके में एक बार यात्रियों को ले कर जा रहा था कि अचानक ब्रेक लगभग खराब हो गया. अपनी जिन्दगी का पूरा तजुर्बा लगा कर मैंनें बड़ी मुश्किल से खाई के मुंह के पास बस रोक ली.
मैने पीछे मुड़ कर देखा तो सारे यात्री प्रार्थना कर रहे थे, “आज तो ईश्वर ने हमें बचा लिया."
मैं बोला - "अरे भाई मैंने बचाया है". यह सुनकर सब यात्री मुझ पर चिल्लाने लगे, "अबे तू नास्तिक है."
मैने कहा - "ठीक है सालों, अब ईश्वर ही तुम्हें बचाएगा.” और सावधानी से बची खुची ब्रेक छोड़ते हुए मैं बस से कूद गया. बस सीधी खाई में और मैं जेल में. तब से जेलर ने मेरा नाम नास्तिक रख दिया है. (प्रकाश गोविंद की एक पोस्ट पर आधारित)

आप जो सोच रहे हैं कि आस्तिक का अर्थ ईश्वर में विश्वास करना और नास्तिक का अर्थ ईश्वर में विश्वास नहीं करना है तो आप भ्रम में हैं.
हिंदू दर्शन में जो वेदों पर विश्वास करे, वह आस्तिक है और जो वेदों पर विश्वास नहीं करे, वह नास्तिक है.
मीमांसा और साख्य दर्शन ईश्वर में विश्वास नहीं करते हैं, मगर वे वेदों में करते हैं. इसीलिए उन्हें आस्तिक दर्शन माना गया है.
वेदों में विश्वास का मतलब क्या? वही वर्ण-व्यवस्था में विश्वास. इसीलिए जो वर्ण-व्यवस्था में विश्वास करे, वह आस्तिक है और जो वर्ण-व्यवस्था में विश्वास नहीं करे, वह नास्तिक है.
इस अर्थ में भी धम्म और धर्म एक-दूसरे के उलट हैं. (डॉ. राजेंद्र प्रसाद सिंह)


जो लोग वेदों में और जातिवाद की मां वर्ण-व्यवस्था में विश्वास नहीं रखते थे वे कभी हिंदुओं से मुसलमान हो गए थे. आज भी उन लोगों को मुसलमान कह दिया जाता है जो वेदों में और जातिवाद की मां वर्ण-व्यवस्था में अविश्वास ज़ाहिर करते हैं. फिर, जो वर्ण व्यवस्था और जातिवाद या उसका समर्थन करने वालों के साथ खड़ा नहीं दिखता उसे भी मुसलमान कह दिया जाता है. (राकेश सांगवान की एक पोस्ट पर मेरी टिप्पणी)