"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


11 July 2018

Straight line of Atheism - नास्तिकता की सरल रेखा

एक पत्रकार जेल के कैदियों का इन्टरव्यू लेने जेल में पहुंचा और एक ‘नास्तिक’ नाम वाले कैदी से पूछा - "तुम्हारा नाम नास्तिक कैसे पड़ा?"
उसने बताया कि मैं पहाड़ी इलाके में एक बार यात्रियों को ले कर जा रहा था कि अचानक ब्रेक लगभग खराब हो गया. अपनी जिन्दगी का पूरा तजुर्बा लगा कर मैंनें बड़ी मुश्किल से खाई के मुंह के पास बस रोक ली.
मैने पीछे मुड़ कर देखा तो सारे यात्री प्रार्थना कर रहे थे, “आज तो ईश्वर ने हमें बचा लिया."
मैं बोला - "अरे भाई मैंने बचाया है". यह सुनकर सब यात्री मुझ पर चिल्लाने लगे, "अबे तू नास्तिक है."
मैने कहा - "ठीक है सालों, अब ईश्वर ही तुम्हें बचाएगा.” और सावधानी से बची खुची ब्रेक छोड़ते हुए मैं बस से कूद गया. बस सीधी खाई में और मैं जेल में. तब से जेलर ने मेरा नाम नास्तिक रख दिया है. (प्रकाश गोविंद की एक पोस्ट पर आधारित)

आप जो सोच रहे हैं कि आस्तिक का अर्थ ईश्वर में विश्वास करना और नास्तिक का अर्थ ईश्वर में विश्वास नहीं करना है तो आप भ्रम में हैं.
हिंदू दर्शन में जो वेदों पर विश्वास करे, वह आस्तिक है और जो वेदों पर विश्वास नहीं करे, वह नास्तिक है.
मीमांसा और साख्य दर्शन ईश्वर में विश्वास नहीं करते हैं, मगर वे वेदों में करते हैं. इसीलिए उन्हें आस्तिक दर्शन माना गया है.
वेदों में विश्वास का मतलब क्या? वही वर्ण-व्यवस्था में विश्वास. इसीलिए जो वर्ण-व्यवस्था में विश्वास करे, वह आस्तिक है और जो वर्ण-व्यवस्था में विश्वास नहीं करे, वह नास्तिक है.
इस अर्थ में भी धम्म और धर्म एक-दूसरे के उलट हैं. (डॉ. राजेंद्र प्रसाद सिंह)


जो लोग वेदों में और जातिवाद की मां वर्ण-व्यवस्था में विश्वास नहीं रखते थे वे कभी हिंदुओं से मुसलमान हो गए थे. आज भी उन लोगों को मुसलमान कह दिया जाता है जो वेदों में और जातिवाद की मां वर्ण-व्यवस्था में अविश्वास ज़ाहिर करते हैं. फिर, जो वर्ण व्यवस्था और जातिवाद या उसका समर्थन करने वालों के साथ खड़ा नहीं दिखता उसे भी मुसलमान कह दिया जाता है. (राकेश सांगवान की एक पोस्ट पर मेरी टिप्पणी)

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