"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


10 February 2019

There is a lot in the name - नाम में बहुत कुछ रखा है

सोचने लगो तो कई बार हमारे अपने नाम भी बहुत उलझन में डालने वाले होते हैं, मसलन मेरे दादा जी का नाम. मेरे दादा जी का नाम था श्री महंगाराम. बचपन से मैं इसे महंगाई से जोड़कर देखता रहा और खुद से पूछता रहा कि क्या कोई अपना या किसी का नाम 'महंगाई' पर रख सकता है. अक्ल नहीं मानती थी.

राजस्थान से एक पत्रिका आती है- हक़दार. उसमें एक नाम पढ़ कर मेरा माथा ठनका. उसमें एक आदमी का नाम लिखा था- महींगराम. तब अचानक मेघों के लिए प्रयुक्त कुछ नाम मन में कौंधे जैसे- मेद, मेध, मेधो, मेग, मेगल, मेगला, मेघ, मींह्ग, मेंग, मेन आदि. इन सभी नामों ने मेरे मन में अर्थ की एक नई नज़र पैदा कर दी कि महंगाराम शब्द में बात महंगाई की नहीं होगी बल्कि अपने कबीले या जाति का नाम रहा होगा जिसे नाम की तरह प्रयोग किया गया था. मींह्ग और मेंग शब्दों का उच्चारण महंगा या मेंहगा के उच्चारण के बहुत नज़दीक था. हक़दार में प्रकाशित नाम के स्पैलिंग थे - महींगराम. अब बात साफ़ नज़र आने लगी है कि महंगाराम शब्द का महँगाई से कोई लेना-देना नहीं था बल्कि यह मींह्ग, मेंग जैसे जातिनाम से विकसित शब्द है.

अब रह गया 'राम' शब्द. इस शब्द की उत्पत्ति को लेकर विद्वानों में काफी मतभेद है. कुछ विद्वान इसे ‘आराम’ से निकला हुआ शब्द बताते हैं और कोई रम् धातु से निकला हुआ कहते हैं. इसे फारसी भाषा का भी कहा जाता है और संस्कृत का भी. इस स्थिति में देखना चाहिए कि भारत भर में पूर्ववैदिक काल से ही गांवों के जो नाम चले आ रहे हैं उनमें से किसी भी गांव का नाम संस्कृत वाला नहीं है. इसी से लगता है चिरकाल से प्रयुक्त हो रहा यह शब्द किसी अर्थ विशेष का वहन ज़रूर करता होगा. आराम के अर्थ में इसका अर्थ सुख,चैन, बाग, बगीचा आदि कुछ भी हो सकता है लेकिन स्वर संधि के रूप में प्रयुक्त शब्द संघाराम विशेष ध्यान खींचता है जिसका संबंध बौद्ध कालीन स्तूपों (पैगोडा) से था जहाँ भिक्कु और श्रमण विश्राम करते थे. हमारे यहाँ प्रयोग में आए हुए शब्द गंडाराम, थोड़ूराम, महंगाराम आदि किसी परंपरा का तो वहन कर ही रहे हैं. ये संस्कृत मूल के शब्द तो हरगिज़ नहीं है. संभव है प्राकृत या पाली भाषा में इनका कोई समाधान मिल जाए.

वैसे इस बात का कोई निश्चित और मनभावन अर्थ निकल ही आए ज़रूरी नहीं. नाम हमारी सभ्यता और संस्कृति का वहन करते हैं यह निश्चित है.

03-07-2019

इस बीच डॉ. राजेंद्र प्रसाद सिंह की एक फेसबुक पोस्ट मिली जिसने आराम शब्द को बहुत स्पष्टता के साथ खोल कर रख दिया. उसे नीचे एंबेड कर दिया है.



एक पोस्ट कौशल कुमार पाठक की भी है जिसे एंबेड कर रहा हूँ.

3 comments:

  1. सहमे हूँ आपकी बात से ... तभी बहुत से नाम लगातार चलते आते हैं ...
    सदियों तक रहते हैं समाज में ... और पहचान देते हैं उस समाज को ...

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 51वीं पुण्यतिथि - पंडित दीनदयाल उपाध्याय और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  3. Necessory in english language to better understand

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