"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


18 February 2021

Ladder of Caste - जाति की सीढ़ी

पिछले तीन वर्ष से मेरे एक परिचित हैं, श्री जतिंदर सिंह, हरियाणा से हैं. उनके नज़रिए से (मेरे भी) एक महत्वपूर्ण विषय को लेकर वे तीन बार चर्चा के लिए मेरे यहां आए हैं. वे जानना चाहते हैं कि क्या मेघ जाति को ओबीसी की सूची में रखने के लिए कुछ किया जा सकता है. विषय मेरी पसंद का है इस लिए चर्चा भी ख़ूब हुई.

उन्होंने मुझे इस बारे में ब्लॉग लिखने और कुछ लोगों से संपर्क करने के लिए कहा. मैंने किया ताकि इस विषय में कोई रास्ता दिखे. मैंने कुछ जानकारों से बात की. लोगों से शेयर किया, फ़ोन किए. अब इस विषय पर अपनी लगभग आखिरी बात रिकॉर्ड कर रहा हूं. 

आज किसी जाति को एक सूची से निकाल कर दूसरी में डलवाना आसान प्रक्रिया नहीं है. ओबीसी जातियों की पहचान का कार्य राज्य सरकारें करती हैं और अनुसूचित जातियों की पहचान का कार्य केंद्र सरकार का है. केंद्र में इनसे संबंधित विभिन्न आयोग भी बने हुए हैं. यदि कोई जाति समाज में बनी जातियों की सीढ़ी पर चढ़ना या उतरना चाहती है तो इस बाबत संसद में सवाल उठते हैं. श्री जतिंदर सिंह अक्सर यह पूछते हैं कि क्या हमारे आईएएस अधिकारी इस बारे में सहायता कर सकते हैं? शायद कुछ मदद कर सकें. लेकिन निर्णय राजनीतिक स्तर पर होता है.

विशेषकर उत्तरी पंजाब में बसी मेघ जाति के पास राजनीतिक प्रतिनिधित्व लगभग है ही नहीं. राजनीति में उनके कुछ सितारे लगता है जल्दी उभरेंगे. इसलिए वर्तमान सामाजिक स्थिति में फिलहाल रहना होगा. आगे क्या होगा वह राजनीति तय करेगी. बाकी सब अनुमान या हमारे परेशान मन के विषय हैं. व्यक्तिगत रूप से मेरा मानना है कि ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के आधार पर मेघ समुदाय उच्चतर सामाजिक स्टेटस का हक़दार है.

सॉरी जितेंद्र सिंह जी, राजनीति में मैं कमज़ोर बच्चा हूँ.


4 comments:

  1. मानने के लिए आत्मिक आधार भी है तो शाश्वत सत्य है सम अथवा उच्चतर होने का । एक कहानी याद आ रही है । एक सिंह का बच्चा भेड़ों के बीच पला-बढ़ा और जब दूसरा सिंह उसको दहाड़ कर खुद से ही पहचान कराया तब उसे पता चला कि वो कौन है ।

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    1. बहुत सही कहा आपने. हम जिस नज़र से ख़ुद को देखते हैं दरअसल वही हमारी पहचान होती है.

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  2. जो समानता का युद्ध आरक्षण से नहीं जीता जा सकता है उसे कलम से किया जा सकता है । शिक्षा का महत्व सबको समझाना और कठिन परिश्रम करने को प्रेरित किया जा सकता है । अनुकूल बदलाव अवश्य होगा ।

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    1. बिलकुल सही कहा आपने. शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण है. शिक्षा हज़ार उलझने पल में सुलझा देती है.

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