"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


03 February 2021

The Unknowing Sage - अनजान वो फकीर-3

 The Unknowing Sage (अनजान वो फकीर) के अनुवाद के बारे में जो कुछ मैंने अभी तक कहा है वह तब तक अधूरा रहेगा जब तक मैं यह ना बता दूं कि इसके अनुवाद की प्रक्रिया के दौरान मेरे मन पर क्या-क्या बीती. मैं किन-किन स्मृतियों के बीच से गुजरा.

 फ़कीर से मेरा पहला परिचय संभवतः 1962 में हुआ था जब पिताजी होशियारपुर से उनकी फोटो लाए थे उसके बाद 1968 में मेरे बड़े भाई मुझे पहली बार होशियारपुर में मानवता मंदिर ले गए थे जो फ़कीर का कर्मक्षेत्र था. फ़कीर का ज़ाहिरा रूप एकदम साधारण था लेकिन प्रेम से भरा था. वे बिना माइक के ऊंची आवाज़ में सत्संग कराते थे. अंदाज़ ऐसा जैसे कोई कह रहा हो ‘मैंने सच्चाई बता दी; मुझे क्या परवाह.’ उनका सबसे अधिक रेखांकित वाक्य रहता - ‘सत्संगियों के अंतर में या बाहर मेरा रूप प्रकट होता है लेकिन मुझे पता नहीं होता’.

मैंने कई लोगों को देखा जो उनके पास आकर कहते थे कि ‘महाराज जी, आपका रूप प्रकट हुआ’ और ‘मेरा यह काम हो गया’, ‘मुझे यह हिदायत दे गया जिससे मुझे फायदा हुआ’, 'आपने मुझे बचा लिया', वगैरा.

मेरा होशियारपुर आना-जाना रहा और मैंने विद्यार्थी जीवन में गर्मियों की लगभग सारी छुट्टियां मंदिर में बिताईं. उनके सत्संग सुने. उन्होंने बहुत सारी सीख दी. बहुत सी सीख मेरे जीवन में उतर गई. बहुत सी सीख नहीं भी उतरी. यह बात मुझे याद आती है कि उन्होंने मुझे त्रिकुटी पर उंगली रखकर कहा था कि यहां सुमिरन किया करो. मेरे रूप का ध्यान किया करो. वह मैंने याद रखा. आदत के रूप में वह आज भी जीवन में है.

उन्होंने मुझे ऊंचे साधन से मना किया था. उसके बाद मेरे पिताजी ने भी मुझे ऊंचे साधन करने से मना किया. क्यों किया वही जाने. लेकिन फ़कीर द्वारा किया गया ऊंची अवस्थाओं का वर्णन मेरे मन पर गहरा बैठा हुआ है. उसने उक्त पुस्तक के अनुवाद में बहुत सहायता की.

विशेष बात यह है कि अनुवाद की प्रक्रिया में मैं उन अवस्थाओं के आसपास घूमता रहा जिनका वर्णन फकीर ने जीवन भर किया.


2 comments:

  1. अनुभव जनित आंतरिक मनोभावों को जानने की उत्सुकता अधिक बढ़ रही है । अगली कड़ी की प्रतीक्षा में ....

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  2. Wow this is fantastic article. I love it and I have also bookmark this page to read again and again. Also check tension quotes

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