tag:blogger.com,1999:blog-7324833772250432260.post5352479398073466087..comments2024-03-23T13:05:25.067+05:30Comments on MEGHnet: Santram BA, Commitment against casteism - संतराम बीए, जातिवाद के खिलाफ प्रतिबद्धता Bharat Bhushanhttp://www.blogger.com/profile/10407764714563263985noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-7324833772250432260.post-77136232662332142662020-05-15T02:04:50.656+05:302020-05-15T02:04:50.656+05:30आपको बहुत बहुत नमन!
सन्तराम बी ए जिस सामाजिक व्यव...आपको बहुत बहुत नमन!<br /><br />सन्तराम बी ए जिस सामाजिक व्यवस्था का स्वप्न देखते हुए निर्वाण को प्राप्त हुए उसमें जाति का तो सन्दर्भ ही नहीं है। सन्तराम बी ए जी एक अखण्ड, अविचल, निर्लेप, निष्कपट व राष्ट्रप्रेमी समाजसुधारक एवं साहित्य सृजक थे। उन्होंने देश में नासूर की तरह जीवन को सड़ा रही जाति व्यवस्था को नेस्तनाबूद करने हेतु अपना समस्त प्राण व जीवन लगा दिया। 101 एक साल का सुदीर्घ, सम्मानित व संघर्षी जीवन व लगभग उतनी ही संख्या में पुस्तकों की रचना का महा-कर्म इन्होंने कर दिखाया, जो केवल इन्ही के बूते की बात थी।<br /><br />वो मेघ थे या कुम्हार ये चिंतन का विषय नहीं है अपितु मेरे विचार में तो हर्ष का विषय है जो इस देश के दो बड़े व संघर्षी समाजों इसे अपना माना है। और चिन्तन का विषय है तो ये की इतने बड़े समाजसुधारक व साहित्यकार को इनके बराबर का सम्मान इस देश मे क्यों नहीं मिला।<br /><br />अंततः आपके इस उत्त्तम लेखन के लिए साधुवाद।<br /><br />कंवल किशोर प्रजापति, रोहतक, हरियाणा।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7324833772250432260.post-77412721159128380162019-09-28T09:19:43.680+05:302019-09-28T09:19:43.680+05:30जातिवाद की विकट समस्या हमारी कुंठा हुई मानसिकता के...जातिवाद की विकट समस्या हमारी कुंठा हुई मानसिकता के कारण पैदा हुई है<br />साहित्य केवल साहित्य होता है फिर ये "बहुजन साहित्य" क्या बला है।<br />संतराम जी एक लेखक व एक समाज सुधारक है बस... इसके बाद अन्य प्रकार की कोई भी पहचान इनकी जाति से नहीं बनती है।<br />ना ही कोई अन्य मुद्दा बनना चाहिए।<br />पधारें - <a href="https://rohitasghorela.blogspot.com/2019/09/blog-post_27.html" rel="nofollow">शून्य पार </a>Rohitas Ghorelahttps://www.blogger.com/profile/02550123629120698541noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7324833772250432260.post-21169278205286079272019-09-28T05:33:08.740+05:302019-09-28T05:33:08.740+05:30सच कहा आपने. अपनी बेड़ियों की आवाज़ संगीत लगने लगत...सच कहा आपने. अपनी बेड़ियों की आवाज़ संगीत लगने लगती है.Bharat Bhushanhttps://www.blogger.com/profile/10407764714563263985noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7324833772250432260.post-116087773261556062019-09-27T15:11:06.146+05:302019-09-27T15:11:06.146+05:30कोई मुक्त होना नहीं चाहता है जब अवचेतन से ही जातिग...कोई मुक्त होना नहीं चाहता है जब अवचेतन से ही जातिगत संस्कार बन कर आता है । जब इसके विरुद्ध आंदोलन होता है तो व्यापक विरोध बताता है कि बेड़ियाँ कितनी सशक्त है । चाहे वो बेड़ियाँ लोहे की हो या सोने की । Amrita Tanmayhttps://www.blogger.com/profile/06785912345168519887noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7324833772250432260.post-6135416346928252152019-09-25T08:44:39.025+05:302019-09-25T08:44:39.025+05:30सही कहा आपने. हर व्यक्ति का अपना नेरेटिव होता है औ...सही कहा आपने. हर व्यक्ति का अपना नेरेटिव होता है और होना भी चाहिए. इंसानियत इसी रास्ते से गुज़र कर आई है.Bharat Bhushanhttps://www.blogger.com/profile/10407764714563263985noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7324833772250432260.post-88692805052090802372019-09-23T19:42:46.705+05:302019-09-23T19:42:46.705+05:30जाती की ले के चलना न चलना ...
लाभ है या हानि ... ...जाती की ले के चलना न चलना ... <br />लाभ है या हानि ... शायद जिनके बारे में हम सोचते हैं उनका दर्शन ही कुछ और रहा हो ... पर ये भी एक सच है की हम अपनी दृष्टि से देखते हैं ... रोचक आलेख ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.com