"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


Megh Rishi

मेघ ऋषि - मिथक से इतिहास तक

बचपन से सुन रखा था कि हमारा मेघ भगत समुदाय किसी ''मेघ ऋषि'' के वंश का माना जाता है. मैंने भी अपने पिता जी से यही सुना था. मेघवंश के इतिहासकार श्री ताराराम ने लिखा है कि भारत भर के मेघवंशी अपने वंशकर्ता का नाम ''मेघ ऋषि'' बताते हैं. आर.एल. गोत्रा जी ने अपने अध्ययन में मेघ ऋषि या वृत्र को सप्तसिंधु का पुरोहित नरेश पाया है जिसकी प्रभुता का प्रभाव झेलम से यमुना और दक्षिण में नर्बदा तक फैला थावे लिखते हैं :-

"The Pre-Aryan people followed or supported the ‘Megh Rishi’, called as 'Vritra' in the Rig-Veda hymns. Vritra became the emperor of 'Sapta Sindhu', as the minor kings in that geographical region stretching from Kabul (Afghanistan) in the North to Narbada River in the South appeared to have accepted his suzerainty. From East to the West, this region extended mostly over the area commanded by seven rivers viz. the Sindh, Satluj, Beas, Ravi, Chenab, Jhelum, and Yamuna."



गोत्रा जी ने इस कथा के सूत्र ऋग्वेद में बताए हैं जिसके पक्ष में उन्होंने वेद मंत्रों का हवाला भी दिया है. मेघों के इतिहास का यह महत्वपूर्ण पृष्ठ बहुत देर से खाली पड़ा था जो अब धीरे-धीरे भरने लगा है.

मेघ वंश के लोगों का शिक्षा का अधिकार सदियों तक छिना रहा. उनके बारे में जो लिखा वह आर्यों (ब्राह्मणों) ने लिखा. मेघ ऋषि या प्रथम मेघ (राजा, अधिपति) यानि वृत्र या (नाग) मेघ के बारे में जो भी लिखा वह मेघ वंश के लोगों ने नहीं बल्कि आर्य ब्राह्मणों ने लिखा और चूँकि उनकी लिखी कथा-कहानियों में मेघ ऋषि को आर्य ब्राह्मणों का शत्रु दिखाया गया है इस लिए मेघ ऋषि के बारे में जो लिखा गया उतना ही लिखा गया और वैसा ही लिखा गया जैसा आर्य ब्राह्मण अपने गौरव के हित में चाहते थेमेघ ऋषि के नाम पर मेघों के पास केवल इतनी ही पूँजी बची कि मेघ ऋषि उनके अग्रणी माने जाते थे जो युद्ध में इंद्र (आर्यों के सेना नायक) से हार गए थे.

सदियों तक शिक्षा से वंचित रहने के बाद अब शिक्षित हो रहे मेघ वंश के लोग अपने पूर्वज मेघ ऋषि की सुध लेने की हालत में आ गए हैं. वैदिक कथा के कुछ अर्थ खोद-खोद कर निकाले गए हैं. नई जानकारियाँ, नए विचार सामने आए हैं. जिस प्रकार यादवों ने अपने पूर्वज महिषासुर को पहचाना और उसकी कथा नए सिरे से लिख कर उसका सम्मान करना शुरू किया है वैसे ही कुछ मेघों ने अपने पूर्वज मेघ ऋषि को पहचान कर उसके नए बिंब (images) खड़े किए हैं जो चमकदार हैं.

मेघ ऋषि को अपना आदि पुरुष मानने वाले मेघ उसकी कल्पना अपने-अपने तरीके से करते रहे हैं. कोई स्पष्ट तस्वीर तो नहीं थी लेकिन कल्पना की जाती रही है कि वह कोई जटाधारी, भगवा कपड़े पहने एक ऋषि रहा होगा जो पालथी लगा कर जंगल में तपस्या करता होगा. हमारी इस प्रकार की कल्पना का आधार विभिन्न धार्मिक पुस्तकें, कॉमिक्स, या अन्य पुस्तकें, सुनी-सुनाई बातें ही होती हैं. आमतौर पर मेघ ऋषि की कल्पना 'मेघ' यानि बादल, या किसी ऋषि के बारे में पढ़ी-सुनी बातों के आधार पर की जाती है या डिक्शनरी में अर्थ देख कर उसकी कल्पना होती रहेगी क्योंकि उसे देखा तो किसी ने है नहीं. ऐसी ही देखी-दिखाई या काल्पनिक छवियों और इमेजिज़ के आधार पर गढ़ा, जालंधर में एक मेघ सज्जन श्री सुदागर मल 'कोमल' ने अपने देवी के मंदिर में मेघ ऋषि की मूर्ति स्थापित की है. उन्होंने बताया है कि उन्होंने एक पौराणिक कथा से प्रेरित हो कर और उसके आधार पर वह मूर्ति बनवा कर लगवाई है. यह मूर्ति एक सिद्ध ऋषि, सिद्ध संन्यासी के रूप में है. संभव है इस कथा की जड़ें महाभारत में हों.
Megh Rishi मेघ ऋषि
जयपुर, राजस्थान के गोपाल डेनवाल जी ने बिना भगवा वाली मेघ ऋषि की मूर्ति के साथ जयपुर में मेघ ऋषि मंदिर स्थापित किया है जिस पर कुछ वर्ष पूर्व तक कार्य चल रहा है. डेनवाल जी ने बताया था कि तीन-चार अन्य स्थानों पर ऐसे मंदिरों पर काम हो रहा था. हरबंस लाल लीलड़ जी ने अबोहर में एक चौक पर मेघ ऋषि की मूर्ति स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जहाँ हर साल 16 दिसंबर को एक कार्यक्रम आयोजित किया जाता है.

यह जान लेना बेहतर होगा कि मेलुक्ख (मुअन जो दाड़ो, मोहंजो दाड़ो) सभ्यता में मिली सिन्धी अज्रुक पहने हुए एक पुरोहित-नरेश (King Preist) की 2500 .पू. (कुछ विद्वानों ने इसे 1700 वर्ष ई.पू. की बताया है) की एक प्रतिमा जो पाकिस्तान के नेशनल म्यूज़ियम, कराची, में रखी है उसकी इमेज या छवि का प्रयोग गोपाल डेनवाल ने जयपुर स्थित मेघ मंदिर में किया है. उसी इमेज में मामूली परिवर्तन करके उसे मेघसेना (जो उनका ही संगठन है) के सुप्रीम कमांडर की छवि तैयार की है. चूँकि आधुनिक इतिहासकारों ने मोहंजो दाड़ो सभ्यता और मेघवंश से संबंधित तथ्यों को स्थापित कर दिया है इसलिए मंदिर में स्थापित हो कर मेघ ऋषि की पावन, ऐतिहासिक और मानव सुलभ पवित्र छवि उभर कर आई है. मेघ ऋषि और मेघ भगवान की आरतियाँ, मेघ-चालीसा, मेघ-स्तुतियाँ तैयार करके CDs बनाई गई हैं. इस बारे में अग्रणी भूमिका निभाने का श्रेय विशेष तौर पर गोपाल डेनवाल जी और आर.पी. सिंह जी को जाता है.

मेघ रिख पर शोध करके डॉक्टरेट की डिग्री पा चुके कराची के डॉ. मोहन देवराज थोंट्या ने अपनी खोज पर लिखते हुए इस तथ्य का ज़िक्र किया है कि भारतीय उपमहाद्वीप के मध्ययुगीन इतिहास के महान मेघवार व्यक्तित्वों के वास्तविक होने पर भी सवालिया निशान लगाए गए हैं. सामान्यतः लोग आस्था रखते हैं कि मेघ रिख (मेघ ऋषि) सभी मेघवारों में एक पूजनीय व्यक्तित्व है. मेघवार ख़ुद को उसी महान संत/ऋषि का वंशज मानते हैं. डॉ. थोंट्या एक आलेख में लिखते हैं:-

"Several aspects of Meghwar history and history of its literature are so shrouded into mist that we cannot differentiate the porous border of the historical events and the mythological beliefs where the Pauranic references have been diffused into the historical facts. So is the case with the great Meghwar personalities who lived historical lives in the medieval history of Indian Subcontinent. We encounter difficulties when the identity of Megh Rikh, Megh Dharu, Megh Mahya or Meghwar itself is questioned. In this article we will try to understand the historical identity of Megh Rikh and Megh Dharu. There is a common belief that Megh Rikh was the prime ancestor of Meghwar. In the Meghwar traditional literature and oral stories, he is considered as the most revered personality among all the Meghwars alike. Meghwar consider themselves as the descendants of this great saint."

हालाँकि ऐसा देखा नहीं गया कि उत्तर-पश्चिम भारत में आमतौर पर कहीं मेघ ऋषि की पूजा होती हो लेकिन गुजरात के मेघवारों के बारमतिपंथ में मेघ रिख (ऋषि) एक पूजित विभूति के रूप में सदियों से मौजूद रहे हैं. वहाँ की मान्यता के अनुसार मेघ रिख का अस्तित्वकाल चाहे विवादित हो लेकिन मेघ रिख उनकी पूजा पद्धतियों में है इसमें संदेह नहीं. बावजूद इसके परंपरा मान्य इतिहास पुरुष मेघ रिख, मेघ धारु यहाँ तक कि मेघवार पर भी सवाल उठाए जाते हैं सिर्फ इसलिए कि उसके बारे में कहीं न कहीं कोई एक धुँधली (शायद शरारती-सी भी) पौराणिक कथा विद्यमान है. उस पर कुछ इतिहासकारों ने पौराणिक कथा और इतिहास का ऐसा घाल-मेल कर दिया है कि मेघ रिख की साफ़-साफ़ निशानदेही मुश्किल हो गई है. इसलिए सवाल तो रहेंगे. लेकिन अपने पूर्वजों का सम्मान करने का हक सभी को है. इस बात से कौन इंकार कर सकता है.

(विशेष नोट :- मेघ वंश एक व्यापक अर्थ वाला और अनेकार्थी शब्द है. मेघ वंश में कई अलग-अलग जातियाँ हैं. उन जातियों में मेघ ऋषि एक लोक-स्मृति (पब्लिक मेमोरी) के रूप में विद्यमान एक साझा पूर्वज है. मेघ ऋषि की पहचान करने में डॉ. ध्यान सिंह, श्री नवीन भोइया (गुजरात) कर्नल तिलक राज ने सहायता की, उनका आभार.)


(इस पेज/ब्लॉग का मक़सद किसी धार्मिक विचारधारा का मंडन या खंडन करना नहीं है.)

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