"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


09 September 2011

अध्यात्म और अनुभव ज्ञान - बाबा फकीर चंद




(कल बहुत दिनों के बाद अपनी गढ़त करने वाली पुस्तकों को छुआ. और बाबा फकीर चंद जी की एक पुस्तक 'अगम-वाणी' से यह मिला. यह इसलिए भी अच्छा लगा कि यह MEGHnet पर 200वीं पोस्ट है.) 
"वाणी कहती है कि राधास्वामी अनामीअरंग अरूप की आदि अवस्था में थे जिसे अचरज रूप कहते हैंकेवल इस ख्याल से कि मैं किसी के अन्तर नहीं जातामेरे अन्तर जो रूपरंगदृश्य पैदा होते थे उनको तथा सहसदल कंवलत्रिकुटी आदि को छोड़ने के लिये मैं विवश हुआ क्योंकि वह मुझे मायावी और कल्पित सिद्ध हुएवे दृश्य आदि हमारे मन पर बाह्य प्रभावों से या अपनी प्रकृति के कारण आते हैंशब्द और प्रकाश से गुज़रता हुआ जब इनसे आगे चलता हूँ तो फिर उस मालिक को समझनेदेखने की शक्ति नहीं हैसिवाय अचरज के और कुछ नहीं हैजब वहाँ से उत्थान होता हैशब्द और प्रकाश की चेतनता आती हैवह अगम हैइसी प्रकार मेरी ही नहीं हर एक जीव की या हर एक मनुष्य की यही दशा है. 
तो फिर मेरे जीवन की रिसर्च यह सिद्ध करती है कि उस परमतत्त्वअनामीअकाल पुरुष की अवस्था से यह चेतन का बुलबुला प्रगट हुआ और उसी में समा गया. ‘लब खुले और बन्द हुयेयह राज़े ज़िन्दगानी है’.

अब संसार वालोसोचोमैंने जो खोज की हैक्या वह सत्य नहीं हैआज 80 वर्ष के बाद अपना अनुभव कहता हूँ कि जो कुछ वाणी में लिखा है वह ठीक हैइसकी सचाई का ज्ञान केवल गुरुपद पर आने से हुआजो लोग मेरा रूप अपने मन से या अपनी आत्मा से अपने अन्तर में बनाते है और मैं नहीं होता तो सिद्ध हुआ कि प्रत्येक व्यक्ति के अन्तर जो वह हैवह और है और जो शक्ति उसकी रचना करती हैउसकी अंश हैवह उसकी सत्ता है इसलिये वह जो उस अनामी धामहैरतअकाल पुरुष की सत्ता है वह रचना करती हैतमाम धर्म पंथहर प्रकार के योगीहर प्रकार के विचारवानकिससे काम लेते हैंवह है अपने आपकी सत्ताजो मनरूपी उनके साथ रहती है और उससे काम लेते हैंमनुष्य के अन्तर में उसका मन रचना करता है और ब्रह्मंडब्रह्मंडीय मन उस अकाल पुरुष, परमतत्त्वअनामीआश्यर्चरूप की सत्ता है
प्रत्येक धर्म सम्प्रदाय तथा पंथ वाले उस मालिक को अपने मन से अलग समझकर उसको पूजते हैंकोई कहता है अन्तर में राम मिलता है कोई कहता है उसका अलग मंडल हैअलग लोक हैमैं भी ऐसा ही समझा करता था मगर जब सत्संगियों के कहने से ज्ञान हुआ कि वह अपने अन्तर सूर्यचन्द्रमादेवीदेवताओं के रूप देखते हैं और मेरा रूप भी देखते हैं मगर मैं नहीं होता तो मुझे निश्चय हो गया कि यह सब खेल इनके अपने ही काल रूपी मन का हैइसी प्रकार इस बाहरी रचना में ब्रह्माविष्णुमहेशदेवी देवतालोक-लोकान्तर सब ब्रह्मंडी मन काल ने बनाये हैंजिस तरह मनुष्य का मन अपने अन्तर अपनी रचना करता है और वह रचना हमारी सुरत को भरमाती रहती हैइसी प्रकार यह बाहर की रचना हमको भरमाती रहती हैवास्तव में यह रचना उस असल अकाल पुरुषदयाल पुरुष का प्रतिबिम्ब है और हम उस अकाल पुरुष या दयाल पुरुष की अंश हैयहाँ आकर अपनी रचना में और बाहरी रचना में इसे भूल गयेउस भूल को मिटाने के लिये यह परम संत सत्गुरु का रूप धारण करके जीवों को अपने घर का पता देता है."बाबा फकीर चंद, अगम वाणी से

Wikipedia : बाबा फकीर चंद

18 comments:

  1. इन विचारों से लाभान्वित हुआ

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  2. Thanx for this post. There's very little info available on Baba Fakir Chand.

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  3. पढ़कर अच्छा लगा.

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  4. @ निशांत मिश्र
    Now I have given few links for Faqir Chand. Now you can get more info.

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  5. Thanx Bhushan ji.
    Long back I read about some controversy between Baba Fakir Chand and various sects of Radhasoami Satsang (Agra, Beas, etc.). I don't remember anything of it. Do you know about it?

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  6. @ निशांत मिश्र जी,
    उस विवाद के बारे में मैं जानता हूँ. बाबा फकीर चंद को महर्षि शिब्रतलाल जी ने गुरुआई का काम दिया था. महर्षि जी के जीवन काल में और उनके बाद फकीर का 'दैवी रूप' हज़ारों लोगों में प्रकट हुआ. फकीर चंद जी का यह कहना था कि मेरा रूप लोगों में प्रकट होता है और मुझे पता नहीं होता तो मैं कैसे मान लूँ मैं वहाँ प्रकट हुआ था. फकीर ने सारा जीवन यह सच्चाई बताने में लगा दिया कि कोई गुरु, कोई ईश्वर, कोई पीर-पैग़ंबर या देवी-देवता बाहर से मदद करने नहीं आता. बल्कि यह व्यक्ति के मन पर बैठे संस्कार और उसका विश्वास है जिसके कारण कोई रूप प्रकट होता है और अपने मन की क्लिष्ट कार्यप्रणाली ही उसकी मदद करती है जिसके पीछे उसकी अपनी इच्छा होती है. अब निशांत जी, फकीर की यह स्वीकारोक्ति डेरे-मंदिर चलाने में सहायता तो नहीं करती न. विवाद का कारण भी यही है. यदि लोगों को इस सच्चाई का ज्ञान हो जाए तो वे चढ़ावा क्यों चढ़ाएँगे?

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  7. पढ़कर काफी कुछ जानने को मिला ........आभार

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  8. पढ़ कर बहुत अच्छा लगा। मन को बहुत शांति प्राप्त हुई । आभार

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  9. मन में शांति का संचार करने वाला लेख...

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  10. भूषण जी , बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने।

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  11. congratulations on completing 200 successful posts.

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  12. @ तो मुझे निश्चय हो गया कि यह सब खेल इनके अपने ही काल रूपी मन का है। इसी प्रकार इस बाहरी रचना में ब्रह्मा, विष्णु, महेश, देवी देवता, लोक-लोकान्तर सब ब्रह्मंडी मन काल ने बनाये हैं।

    बाबा फकीरचंद का यह चिंतन वैज्ञानिक और तार्किक धरातल पर पूरी तरह खरा है। कबीर साहेब का दर्शन भी यही कहता है।

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  13. सुन्दर ज्ञानवर्धक लेख| धन्यवाद|

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  14. बहुत ही अच्‍छी ज्ञानवर्धक प्रस्‍तुति ।

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  15. इस लेख मे बहुत अच्छी जानकारी मिली!

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  16. बहुत ही सार्थक और सारगर्भित पोस्ट...
    MEGHnet पर 200वीं पोस्ट के लिए हार्दिक बधाई.

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  17. ......बहुत ही ज्ञानवर्धक प्रस्‍तुति
    200वीं पोस्ट के लिए हार्दिक बधाई

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