The Unknowing Sage

18 April 2012

We exist in songs - गीतों में हम हैं.


कई वर्ष पहले मैंने मेघ शब्द इंटरनेट पर ढूँढा. मंशा थी कि बिरादरी के बारे में शायद कुछ जानकारी मिले. मगर कुछ नहीं मिला. मेघ सरनेम वाले एक अमरीकन की वेबसाइट मिली. वह उद्योगपति था. लेकिन वह काफी गोरा था. हो सकता है वह हमारा ही बंदा आदमी हो :))  एक इटेलियन एक्ट्रेस मिली जिसके नाम के साथ मेघ(नेट) लगा था. शायद वह हमारी ही बंदी हो. भगत ढूँढा तो कबीर और अन्य संतों के अलावा जालंधर के एक सज्जन श्री राजकुमार का एक ब्लॉग मिला जिसका नाम था भगत शादी डॉट कॉम’. उनसे बात हुई और फिर.....आज आप ढूँढ कर देखिए दोनों शब्द, 'मेघ-भगत' बहुतायत से आपको इंटरनेट पर मिल जाएँगे.

कुछ वर्ष पहले तक इस बात की भी तकलीफ़ होती थी कि हम साहित्य में कहीं नही थे. एक दिन खोज करते हुए अचानक एक कहानी मिली ज़ख़्मों के रास्ते से जिसे एक कथाकार देसराज काली ने लिखा था. इसमें मेघ भगत और भार्गव कैंप का स्पष्ट उल्लेख था. रूह को बहुत आराम आया कि चलो भई हम साहित्य में कहीं तो मिले.

इस बीच वियेना में हुई चमार समुदाय के गुरु की हत्या और जालंधर के पास गाँव तलहण की घटनाओं ने चमार समुदाय के स्वाभिमान को जगा दिया और वे कई सुंदर गीतों के साथ संगीत की धमक लेकर आ गए. 'रविदासिया धर्म' की स्थापना हो गई और ये गर्वीले सड़कों पर उतर कर कहने लगे – गर्व से कहो हम चमार हैं. इस बात से दिल पूछने लगा कि भई हम मेघ भगत गीत-संगीत की धमक में कहाँ हैं.

तभी एक गीत सुनाई दिया- मेघो कर लो एका, भगतो कर लो एका. मज़ा आ गया. (लेकिन अब वो यूट्यूब से हटाया जा चुका है, शायद व्यावसायिक मजबूरियों के कारण, इसे रमेश कासिम ने गाया था).......और अभी हाल ही में एक गीत सुनने को मिला- असीं भगताँ दे मुंडे, साडी वखरी ए टौर (हम भगतों के बेटे, हमारा अलग है स्टाइल)जिसे अमित देव ने गाया है. वाह क्या बात है !!

तो भई हम साहित्य और संगीत में आ गए हैं. ये दोनों लिंक मैंने सहेज लिए हैं.


श्री देसराज काली
 




11 April 2012

When we became independent in 1947... - जब हम 1947 में आज़ाद हुए थे.....


.....उससे पहले एक कानून था कि यदि कोई शराब पीकर किसी की हत्या कर दे तो उसे कम सज़ा दी जाती थी क्योंकि माना जाता था कि नशे में होने के कारण उससे ग़लती हो गई.

यह कानून पीने के आदी अंग्रेज़ों ने बनाया था. ज़ाहिर है उन्होंने अपने भले के लिए बनाया था. हत्या या कई अन्य अपराध पियक्कड़ अंग्रेज़ों से हो जाते थे. उनके कारकुन भी इसी मर्ज़ के शिकार थे. लेकिन इस कानून के कारण वे दोनों काफी कम सज़ा के भागी होते थे. कानून की किताब ज़िंदाबाद जिसे अंग्रेज़ जाते-जाते हमें दे गए और हमने उसे अपने सिर पर रख लिया. चलो जी हम आज़ाद हो गए.

आज टीवी पर खबर थी कि एक बाप ने अपनी नन्हीं-सी बेटी को शराब के नशे में नीचे पटक दिया और फिर उसे मरा समझ नाले में डाल आया. अरे वाह!! क्या बात है सर जी!! उसे पक्की उम्मीद थी कि वह सस्ते में छूट जाएगा क्योंकि मेरे देश का प्रत्येक पियक्कड़ अंग्रेज़ों के उक्त कानून को जानता है.