"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


12 June 2012

Raag Darbari - राग दरबारी


इस जीवन-राग को लेकर कई अंतर्विरोध मेरे ज़ेहन में हैं. मैंने ख़ुद से रागदरबारी कभी नहीं गाया. संभव है इसमें निबद्ध कोई फिल्मी गीत मुँह से निकल गया हो. 
नौकरी के दौरान राजनीतिज्ञों या बड़े अफ़सरों के सामने कोई महत्वपूर्ण रागदरबारी 'जोगन बन जाऊँ रे.....' नहीं गाया (सम्राट अक़बर और मियाँ तानसेन इस पर हैरानगी प्रकट कर सकते हैं कि कमाल है भाई, अगर नहीं गाया!!). बैंक में नौकरी थी सो कभी-कभी सायं चार बजे चपरासियों, लिपिकों को यह राग सुनाना पड़ता था- 'महाराज जितना संभव हो, कार्य कर जाना, इख़्लाक़ बुलंद रहे, चलता रहे बैंक घराना'. यहाँ राग का गायन समय अत्यंत लोचशील है, प्रातः से सायं तक, कभी भी.
घर के दरबार में मेरी 'राजा-सी' हैसियत कभी नहीं रही सो 'रानी' (नारी) स्वर में रागदरबारी सुनने को नहीं मिला. लेकिन इस क्षेत्र में मेरी गायकी के कुछ व्यंगात्मक किस्से मुझ तक लौटे कि 'भई बीवी के सामने खूब गाते हो रागदरबारी, क्या बात है!!'  किस्सा सुनाने वालों की तान (दाँत) तोड़ने की तमन्ना दिल में ही रह गई.
दिल्ली के रास्ते में कई ढाबे आते हैं. चाचे का ढाबा, राणा ढाबा, पप्पू ढाबा, रॉकी वैष्णो ढाबा, पहलवान ढाबा. ये हिंसक नाम हैं. देसी पुलिस के लिए सीधा संदेश देते हैं- 'जब चाहे आओ, ठंडा-वंडा पीओ और 'मसाला भाषा' में 'देसी' गाने सुनो. बस, पंगा नहीं लेना'. जानने योग्य है कि हमारी नौकरशाही संगीत के नाम पर केवल इसी शास्त्रीय राग को आराम से गा पाती है. यह इस राग की विशेषता है.
सड़क किनारे 'महाराजा पान शॉप' पर अनजाने कलाकार की यह कलाकृति दिखी. फोटू खींच ली. इसमें एक तबलची, एक सारंगी मास्टर है और राजसी ठाठ में रागदरबारी है. कलात्मक वस्तुएँ महलों से निकल कर कहाँ-कहाँ पहुँचीं, भई वाह!! विश्वास हो गया कि राज घरानों, दरबारियों और पनवाड़ियों में कभी खूब छनती थी.
आप पूछ सकते हैं कि पुराने अंदाज़ के दरबार तो समाप्त हो गए, आजकल रागदरबारी कहाँ और कैसे गाया जाता है. येस-येस, इसकी प्रस्तुति का वेन्यू अब राजनीतिक पार्टियों की हाई कमान के यहाँ है लेकिन सुर वही हैं, शैली वही है और ठाठ वही है.
ऊपर की पेंटिंग से मिलता जुलता एक चित्र फेसबुक पर आज (09-01-2014 को) मिला है जिसे नीचे चिपका रहा हूँ-
  
MEGHnet

8 comments:

  1. aadarniy sir
    bahut hi rochak badhiya lekh padhne ko mila.ab raag darbaari ke baare
    me mujhe to kuchh nahi pata par aapke blog ko padh kat bahut hiachha laga
    hardik naman ke saath
    poonam

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  2. इन ढाबों का कुछ नहीं बि‍गाड़ सकता कोई

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  3. बहुत ही रोचकता से लिखा है आपने ... आभार ।

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  4. रोचक राग दरबारी ...!!

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  5. राजे रजवाड़े चले गए पर अभी भी तो राग आम जनता वही राग सुने जा रही है ... आपकी लिखने की शैली रोचक लगी !

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  6. आपकी तीक्ष्ण दृष्टि में आई कलाकृति रागदरबारी को सुन्दरता से बयान कर रही है.. आलेख तो सुहागा का काम कर रहा है..

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  7. सर जी आज कल बेसुरी रागदरबारी ज्यादा हो गए है !इसे कौन पहचाने !

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  8. "rag darbaari" heard b4, but never knew the meaning :)
    interesting read !!!

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