"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


20 August 2013

Meghvansh - Itihas Aur Sankriti - मेघवंश - इतिहास और संस्कृति



अगर कनिष्क वासुदेव, मिनांडर, भद्र मेघ, शिव मेघ, वासिठ मेघ आदि पुरातात्विक अभिलेखांकन व मुद्राएँ न मिलतीं, तो इतनी अत्यल्प जानकारी भी हम प्राप्त नहीं कर सकते थे. चूँकि बौध धर्म ही उस समय भारत का धर्म था और संपूर्ण राजन्य वर्ग व आम जनता इस धर्म के प्रति श्रद्धावनत थी, तो निश्चित है कि ये राजवंश बौद्ध धर्म की पक्ष ग्राह्ता के कारण ही पुराणादि साहित्य में समुचित स्थान नहीं पा सके......

...इस प्रकार मेघवंश क्षत्रिय वंश रहा है न कि क्षत्रियोत्पन्न हिंदू धर्म की एक जाति. उनकी हीनता की जड़ें उनकी हिंदू धर्म में विलीनीकरण की प्रक्रिया में सन्निहित हैं......

....कई समाज सुधारकों ने इस जाति के उत्थान व 'गौरव बोध' हेतु इस जाति की सामाजिक रीति, रिवाज़ों व व्यवस्थाओं को वैदिक आधार प्रदान करने की सफल चेष्टा भी की, परंतु वे इस जाति का 'गौरव बोध' ऊपर नहीं उठा पाए.......

(श्री ताराराम कृत "मेघवंश - इतिहास और संस्कृति से")

(पुस्तक प्रकाशक- सम्यक प्रकाशन, 32/3, पश्चिमपुरी, नई दिल्ली-110063 दूरभाष- 9810249452)


(नीचे दिया गया पंजाबी अनुवाद मशीनी अनुवाद है)

ਜੇਕਰ ਕਨਿਸ਼ਕ ਵਾਸੁਦੇਵ, ਮਿਨਾਂਡਰ, ਸੁੱਖ-ਸਾਂਦ ਮੇਘ, ਸ਼ਿਵ ਮੇਘ, ਵਾਸਿਠ ਮੇਘ ਆਦਿ ਪੁਰਾਸਾਰੀ ਅਭਿਲੇਖਾਂਕਨ ਅਤੇ ਮੁਦਰਾਵਾਂ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦੀ, ਤਾਂ ਇੰਨੀ ਬਹੁਤ ਥੋੜਾ ਜਾਣਕਾਰੀ ਵੀ ਅਸੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸੱਕਦੇ ਸਨ. ਹਾਲਾਂਕਿ ਬੋਧ ਧਰਮ ਹੀ ਉਸ ਸਮੇਂ ਭਾਰਤ ਦਾ ਧਰਮ ਸੀ ਅਤੇ ਸੰਪੂਰਣ ਰਾਜੰਨਿ ਵਰਗ ਅਤੇ ਆਮ ਜਨਤਾ ਇਸ ਧਰਮ  ਦੇ ਪ੍ਰਤੀ ਸ਼ਰੱਧਾਵਨਤ ਸੀ, ਤਾਂ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਰਾਜਵੰਸ਼ ਬੋਧੀ ਧਰਮ ਦੀ ਪੱਖ ਗਰਾਹਤਾ ਦੇ ਕਾਰਨ ਹੀ ਪੁਰਾਣਾਦਿ ਸਾਹਿਤ ਵਿੱਚ ਸਮੁਚਿਤ ਸਥਾਨ ਨਹੀਂ ਪਾ ਸਕੇ......

.........ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਮੇਘਵੰਸ਼ ਕਸ਼ਤਰਿਅ ਖ਼ਾਨਦਾਨ ਰਿਹਾ ਹੈ ਨਹੀਂ ਕਿ ਕਸ਼ਤਰਯੋਤਪੰਨ ਹਿੰਦੂ ਧਰਮ ਦੀ ਇੱਕ ਜਾਤੀ. ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਛੁਟਿਤਣ ਦੀਆਂ ਜੜੇਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਹਿੰਦੂ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਵਿਲੀਨੀਕਰਣ ਦੀ ਪਰਿਕ੍ਰੀਆ ਵਿੱਚ ਤਿਆਰ-ਬਰਤਿਆਰ ਹਨ.........

.........ਕਈ ਸਮਾਜ ਸੁਧਾਰਕਾਂ ਨੇ ਇਸ ਜਾਤੀ ਦੇ ਉੱਨਤੀ ਅਤੇ ਗੌਰਵ ਬੋਧ ਹੇਤੁ ਇਸ ਜਾਤੀ ਦੀ ਸਾਮਾਜਕ ਰੀਤੀ, ਰਿਵਾਜਾਂ ਅਤੇ ਵਿਅਵਸਥਾਵਾਂ ਨੂੰ ਵੈਦਿਕ ਆਧਾਰ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਣ ਦੀ ਸਫਲ ਕੋਸ਼ਸ਼ ਵੀ ਕੀਤੀ, ਪਰ ਉਹ ਇਸ ਜਾਤੀ ਦਾ ਗੌਰਵ ਬੋਧ ਉੱਤੇ ਨਹੀਂ ਉਠਾ ਪਾਏ.......

 (ਸ਼੍ਰੀ ਤਾਰਾਰਾਮ ਕ੍ਰਿਤ ਮੇਘਵੰਸ਼  -  'ਇਤਹਾਸ ਅਤੇ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ' विच्चों) 
 

Megh Bhagat
MEGHnet

5 comments:

  1. समय अपने चक्र पे चलता है ... ओर जरूर वापस आता है आपने बिंदु पर ...
    अभी न सही आने वाले समय में पुनः गौरव लौटेगा ...

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  2. A conversation via Face Book-

    Jiwan Singh Bhagat to me- bharat bhusn ji ye sike aur abilekh kaha hai aur kin sthano se mie hai

    Jiwan Singh Bhagat to me- bharat bhusan ji ye sike aur abilekh kaha hai aur kin sthano se mile hai. ye kis metal ke bane hai ya chamde ke bane hai.

    Jiwan Singh to me- Bhagat kanisk chini jati ka raja tha aur basudev mhabarat ka pater hai ye kya hai

    Bharat Bhushan to Jiwan Singh Bhagat, सन् 1940 में जर्नल ऑफ़ द न्यूमिस्मेटिक सोसाइटी ऑफ़ इंडिया में डॉ. मोतीचंद्र ने उत्तरप्रदेश के फतेहपुर ज़िले के हस्वा या सतोन गाँव से प्राप्त होने वाले मेघवंश के सिक्कों का प्रथम बार प्रकाशन किया था. मेघवंश से संबंधित सिक्के बहुतायत से कौशांबी व उसके आसपास से मिले हैं.

    Bharat Bhushan to Jiwan Singh Bhagat, मेरा विचार है कि पुराणों और इतिहास में कनिष्क तथा वासुदेव नाम के कई पात्र हैं. ये सिक्के अंधकारयुग या Dark Ages के हैं जिन पर अभी भी शोध हो रहा है.

    Bharat Bhushan आपकी दूसरी टिप्पणी का व्यंग फिर देखा. आपकी जानकारी के लिए बता रहा हूँ कि सुंधुघाटी सभ्यता के मेघवंशी लोग धातु (ताँबे) का कार्य करते थे. ईसा पूर्व 300 वर्ष बाद उभरे उनके राजवंश धातुओं की मोहरें और सिक्के रखते थे. चमड़े के सिक्के चलाने का आइडिया इतिहास में बहुत बाद का है

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  3. अब तो दुनिया बहुत बदल गयी है इसका बोध भी आवश्यक है..

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  4. हर बार एक नयी जानकारी लिए हुये होती है आपकी पोस्ट।

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  5. आपने बहुत महत्वपूर्ण जानकारी साझा की है हमे आपकी पोस्ट बहुत पसंद आई

    Maurya Vansh

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