The Unknowing Sage

23 December 2016

Research v/s bickering - शोध बनाम कलह

राजनीति को लेकर सभी समुदायों में झिकझिक होती है. मेरे मेघ भगत समुदाय में भी होती है. पिछले दिनों एक सज्जन ने सोशल मीडिया पर मेघ समुदाय को किसी पार्टी का टिकट न मिलने की वजह डॉ. ध्यान सिंह के शोधग्रंथ को बताया. हँसी भी आई और हैरानगी भी हुई. बस एक विवाद पैदा किया जा रहा था. 

असल में उक्त शोधग्रंथ (थीसिस) मेघ भगत समुदाय के पिछले 200 वर्ष के इतिहास और मेघ जाति (जो कबीरपंथी के नाम से भी जानी जाती है) के उद्भव (मूल) की खोजबीन करता है

राजनीतिक दलों की नीति है कि वे टिकटों का आबंटन जाति के आधार पर करते हैं. उसकी वजह से किसी जाति या समुदाय को टिकट नहीं मिलता है तो उसका समाधान राजनीतिक स्तर पर होना चाहिए. यदि किसी राज्य में मेघवंश से निकली कई जातियाँ बसी हैं और राजनीतिक पार्टी सभी को एक ही जाति मान कर एक ही टिकट देती है तो दोष उसका दोष किसी शोधग्रंथ को कैसे कैसे दिया जा सकता है, ख़ास कर तब जब उस शोधग्रंथ में उन अलग-अलग जातियों को कहीं भी 'एक जाति' न बताया गया हो.

इस सच्चाई को खास तौर पर देखना ज़रूरी है कि उक्त शोधग्रंथ पर डॉक्टरेट की डिग्री सन् 2008 में दी गई थी. अब देखना यह चाहिए कि 2008 से पहले जालंधर के आसपास बसी मेघ भगत जाति के प्रति राजनीतिक दलों का रवैया क्या था? देखना यह भी चाहिए कि मेघ भगत जाति का क्या अपना कोई कद्दावर नेता है जो समुदाय की जातिगत स्थिति और उनकी विभिन्न लोकल समस्याओं को असरदार तरीके से ऊपर तक पहुँचा सके, समुदाय की राजनीतिक और सामाजिक लड़ाई लड़ सके? यदि पूरा समुदाय एक मज़बूत राजनीतिक वोट बैंक है तो कमज़ोरी कहाँ है? मेघ भगत समुदाय की असल समस्या है कि उसके पास बढ़िया क्वालिटी के सामाजिक, राजनीतिक कार्यकर्ताओं और राजनेताओं की कमी है. आज के समय में यह कमी मामूली नहीं है.  


06 December 2016

Sir Chhoturam and Dr. Ambedker - सर छोटूराम और डॉ. अंबेडकर

फेसबुक पर जो चिंतक मेरी मित्र सूची में हैं उनमें से श्री राकेश सांगवान को मैं बहुत महत्व देता हूँ. आज डॉ. अंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर उन्होंने यूनियनिस्ट मिशन के नज़रिए से सर छोटूराम और डॉ. अंबेडकर का एक मूल्यांकन किया है जो उनके 'यूनियनिस्ट मिशन' के नज़रिए को प्रतिपादित करता है और हिंदुत्व को छूता है. (एक बात मैं अपनी ओर से साफ करता चलता हूँ कि मैं हिंदुत्व को संघ का राजनीतिक एजेंडा समझता हूँ.) यह राकेश सांगवान का दूसरा आलेख है जिसे मैंने मेघनेट में शामिल किया है. राकेश सांगवान जी का पहला आलेख यहाँ है.    


"बाबा साहब ने 1935 में यह कह कर कि ‘हमें हिन्दू नहीं रहना चाहिए। मैं हिन्दू धर्म में पैदा हुआ यह मेरे बस की बात नहीं थी लेकिन मैं हिन्दू रहते हुए नहीं मरूंगा, यह मेरे बस की बात है।’ धर्मान्तरण की घोषणा कर दी।

संघ जोकि हिंदुत्व का हिमायती है, हिंदुत्व ही जिनके लिए देश निर्माण है, आज वो संगठन भी बीसवीं सदी के उनके हिंदू धर्म के सबसे बड़े बाग़ी की जयंती मनाने को मजबूर है। मतलब साफ़ है उनके हिंदुत्व के अजेंडा पर अंबेडरवाद भारी है।

कई साथी सवाल करते है कि तुम सर छोटूराम के संघर्ष को बड़ा मानते हो या डॉक्टर अम्बेडकर के संघर्ष को? मैं डॉक्टर अम्बेडकर के संघर्ष को सर छोटूराम के संघर्ष से कहीं बड़ा मानता हूँ। यह सही है कि सर छोटूराम ने मजलूम किसान-कमेरी कौमों के लिए संघर्ष किया, उन्हें आर्थिक आज़ादी दिलाई, उनका मानना था कि सामाजिक भेदभाव का सबसे बड़ा कारण ग़रीबी है। पर सर छोटूराम की लड़ाई मुख्यतः जिस किसान क़ौम के लिए थी उसके लिए सामाजिक ग़ुलामी ज़्यादा बड़ी समस्या नहीं थी क्योंकि उनके पास जोतने के लिए ख़ुद की ज़मीन थी जिस कारण वो अपने साथ हो रहे सामाजिक भेदभाव की ज़्यादा परवाह नहीं करते थे, पर दुश्मन जिस प्रकार से किसान पर आर्थिक मार मार रहा था जिस प्रकार धीरे-धीरे आर्थिक तौर पर ग़ुलाम बना रहा था उसे समझने में सर छोटूराम को देर नहीं लगी कि ये आर्थिक ग़ुलामी धीरे-धीरे किसान को सामाजिक ग़ुलाम बनाने की क़वायद है। सर छोटूराम की लड़ाई सिर्फ़ एक फ़्रंट पर थी पर डॉक्टर अम्बेडकर की लड़ाई तो तीन फ़्रंट पर थी। डॉक्टर अम्बेडकर जिस वर्ग की लड़ाई लड़ रहे थे उसका शोषण तो सामाजिक, धार्मिक व आर्थिक हर स्तर पर हो रहा था। सर छोटूराम जिनकी लड़ाई लड़ रहे थे उनके हाथ में कम से कम लठ तो था पर डॉक्टर अम्बेडकर जिनकी लड़ाई लड़ रहे थे वो तो मुर्दे समान थे जिनके मुँह में कोई ज़ुबान नहीं थी। डॉक्टर अम्बेडकर ने मुर्दों में जान फूँकी, उन्हें आवाज़ दी और ये उस आवाज़ की ही गूँज है कि आज हिंदुत्ववादी संगठन भी डॉक्टर अम्बेडकर को याद करने को मजबूर है। पर डॉक्टर अम्बेडकर की लड़ाई अभी अधूरी है क्योंकि दुश्मन का बिछाया जाल बहुत गहरा है। अभी उस जाल को कटने में वक़्त लगेगा और यह जाल सिर्फ़ शिक्षा से ही कटेगा इसलिए डॉक्टर अम्बेडकर कहते थे कि शिक्षा शेरनी के दूध समान है, जो इसे पिएगा वही दहाड़ेगा।

आज डॉक्टर साहब के महापरिनिर्वाण दिवस पर यूनियनिस्ट मिशन सजदा करता है उनके संघर्ष को सैल्यूट करता है।

-यूनियनिस्ट राकेश सांगवान
#JaiYoddhey"