सदियों से वैदिक पौराणिक इतिहास को चुनौतियां नहीं मिली, एक तरफा इतिहास लिखा जाता रहा, लेकिन शिक्षा के प्रचार-प्रसार को धन्यवाद देना पड़ेगा कि कई परंपरागत अवधारणाओं और स्थापनाओं को चुनौती देने के लिए कई विद्वानों ने सप्रमाण अपनी बात कही है जिसकी एक समृद्ध परंपरा इन दिनों दिखने लगी है. इसका एक सशक्त उदाहरण फार्वर्ड प्रेस में छपा एक आलेख है जिसमें डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद सिंह के शोध के बारे में कुमार बिंदु का एक आलेख है जो पढ़ने लायक है. उसका लिंक नीचे दिया गया है.
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नवीन विचार के साथ अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करती एक अच्छी किताब ...
ReplyDeleteइतिहास को बार बार और पुनः देखने पे कई नए दृष्टिकोण सामने आते हैं ... आने भी चाहियें ... यही सनातन है ...
आपका आभार दिगम्बर जी.
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