The Unknowing Sage

30 October 2019

The King Priest of Mohanjodaro - मोहनजोदड़ो का राजपुरोहित


इसी साल 24 मार्च 2019 को और पिछले साल 17 नवंबर 2018 को आदरणीय डॉ. राजेंद्र प्रसाद सिंह ने एक ही विषय पर दो पोस्टें डाली थीं. विषय था मोहनजोदड़ो के तथाकथित राजपुरोहित (King priest) की वह विश्व प्रसिद्ध मूर्ति जो कराची के म्यूज़ियम में रखी है वह किसकी मूर्ति हो सकती है या है. मोहनजोदड़ो में इस मूर्ति के अतिरिक्त मिली अन्य मूर्तियों का आपस में मिलान और बुद्ध की मूर्ति से मिलान करने के बाद उनका मानना है कि यह मूर्ति बुद्ध की मूर्ति के स्टाइल की है. इस बारे में अंतिम निष्कर्ष क्या होगा पता नहीं लेकिन मूर्ति के माथे पर बना कुकुध और बैठने की मुद्रा भी बुद्ध की ओर संकेत करती है.

इस संदर्भ में मुझे एक मेघ ऋषि मंदिर में स्थापित फोटो का ध्यान हो आया जो मोहनजोदड़ो की उक्त मूर्ति का रूपांतरण (adaptation) प्रतीत होता था. उसकी अन्य छवियाँ भी तैयार की गई थीं. ऐसा भी होता है कि हम कभी किसी छवि को प्रतीक बना कर एक अर्थ विशेष में उसका प्रयोग करते हैं लेकिन बाद में होने वाला शोध उसे अलग अर्थ दे सकता है हालाँकि आस्था का तत्त्व उसमें स्थाई रह सकता है. इस निगाह से देखें तो प्रतीकात्मकता (symbolism) में अर्थ विस्तार की संभावनाएँ बरकरार रहती हैं. ऋषियों-मुनियों की प्रतीकात्मक छवियों (images) में भी परिवर्तन होता रहता है. कहीं कुछ जोड़-दिया जाता है और कहीं कुछ घटा दिया जाता है ताकि वो समय के अनुसार नया अर्थ दे सके.

फेसबुक पर कभी एक सज्जन ने पूछा था कि तुलसी दास के चित्र में कलम, दवात और पुस्तक भी रखी रहती है तो कबीर के चित्र में बीजक नामक ग्रंथ और कलम-दवात क्यों नहीं रखी जा सकती? रखी जा सकती है. कौन रोकता है? कबीर का चित्र उनके ज्ञान के अनुरूप होना ही चाहिए. 







18 October 2019

A memorable day - एक यादगार दिन

14 अक्तूबर, 2019 का दिन मेरे लिए खास था. इस दिन जालंधर में अंबेडकर भवन में धम्म प्रवर्तन दिवस का आयोजन किया गया जिसमें इतिहासकार ताराराम जी को मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित किया गया था. मैंने उत्सुक श्रोता और दर्शक के तौर पर इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया और कुछ फोटोग्राफ़ लिए. इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री लाहौरी राम बाली थे जिनसे मेरा पुराना परिचय रहा है हालांकि इस बीच कई वर्ष तक उनसे कोई भेंट या बातचीत नहीं हुई. लेकिन देखा कि 90 से अधिक वर्ष की उम्र में उनकी वाणी वैसी ही ओजमयी है.

ताराराम जी इस अवसर पर बौधमत पर और धम्मचक्र परिवर्तन पर बोले. उन्होंने बाली जी और अपने द्वारा राजस्थान में किए कार्य का ब्यौरा दिया. अपने पिता श्री धर्माराम जी के जीवन संघर्ष पर उन्होंने प्रकाश डाला और उपस्थितों को बौधमत की सुंदरता बताते हुए इस मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी. कार्यक्रम के बाद वहाँ लगी पुस्तक प्रदर्शनी से हमें नवल वियोगी की पुस्तक ‘प्राचीन भारत के शासक नागउनकी उत्पत्ति और इतिहास’ मिली जिस पर हम दोनों की नज़र गड़ी थी. पुस्तक खरीद कर हम एक अन्य कार्यक्रम की ओर निकल पड़े जहाँ शाम को ताराराम जी ने कबीर पर व्याख्यान दिया. फिर हमने चंडीगढ़ की ओर प्रस्थान किया.

अगले दिन हम दोनों ने ऑस्ट्रेलिया में बैठे श्री आर. एल. गोत्रा जी से फोन पर लंबी बातचीत की. श्री रतन लाल गोत्रा बहुत उत्साहित थे. उन्होंने बताया कि मेघों के इतिहास की जानकारी ईरानइराक और उसके आसपास के क्षेत्रों से मिलने की संभावनाएं अधिक हैं. विषय ऐसा था कि बातचीत काफी लंबी चली. उसके बाद मैंने ताराराम जी से पूछा कि क्या उनके पास नवल वियोगी जी का मोबाइल नंबर हैअदम्य इतिहासकार श्री नवल वियोगी जी दो-तीन वर्ष पहले पूरे हो चुके हैं. इस बीच ताराराम जी का मोबाइल भी बदल चुका है. इसलिए वियोगी जी का मोबाइल नंबर मिल जाना अपने ही झोले से निकले सरप्राइज़ गिफ्ट से कम नहीं था. कुछ ही देर में हम वियोगी जी के परिवार के संपर्क में थे. यह सब जैसे 15 अक्तूबर 2019 को ताराराम जी की इस एक दिवसीय यात्रा के दौरान ही होना था. उनके परिवार से बातचीत के बाद हमारी जानकारी में आया कि वियोगी जी की कुछ पुस्तकें अभी प्रकाशनाधीन हैं और उनमें मेघों के संबंध में जानकारी देने वाली वो पुस्तक भी शामिल है जिसका उल्लेख श्री गिरधारी लाल भगत जी ने कभी मुझ से किया था. इसके बारे में डॉ. ध्यान सिंह को सूचित कर दिया है जिनका डॉ. नवल वियोगी के यहाँ काफी आना-जाना रहा है.

ज़ाहिर है नई जानकारियाँ मिलने को हैं और हम सभी उत्सुक हैं और आतुर भी.