"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


20 February 2021

Anniversary of Santram BA - संतराम बीए की जयंती

    

मानव इतिहास की हर तारीख को कुछ न कुछ घटित हुआ होता है. 14 फरवरी 2021 को मेघ समुदाय के श्री संतराम बी.ए. (14-02-1887 से 31-05-1988) की जयंती थी. फेसबुक पर बहुत पोस्ट उनके बारे में आईं. दो का उल्लेख कर रहा हूँ जो उनके बारे में लेखकों की भावनाओं और संतराम जी के जीवन और कार्य पर प्रकाश डालती हैं.

डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह ने लिखा ने लिखा:    

संतराम, बी. ए. -जाति - पाँति का खूब विरोध किए.....खूब जिए....खूब लिखे.....छोटी - बड़ी 100 किताबें लिखीं ....101 साल जिए....प्रेमचंद ने खुद जिनकी पुस्तक "काम-कुंज" का संपादन किया.....राहुल सांकृत्यायन ने खुद जिनका संस्मरण "जिनका मैं कृतज्ञ" में लिखा.....बाबा साहब अंबेडकर ने खुद जिनकी चिट्ठियों को "एनिहिलेशन ऑफ कास्ट" में शामिल किया.....

    विलक्षण व्यक्तित्व संतराम, बी. ए. - अल बेरुनी के भारत को हिंदी में पहली बार परिचय कराने का श्रेय इन्हें है....तीन खंडों में अनुवाद प्रस्तुत किए....वो भी तब, जब अभी छायावाद जन्म ले रहा था....मातृभाषा पंजाबी....फारसी में ग्रेजुएट थे.....अरबी पढ़ते थे.....अंग्रेजी पढ़ते थे .....हिंदी पर मजबूत पकड़ थी....1925 तक चीनी बौद्ध यात्री इत्सिंग की भारत - यात्रा का किसी भी भारतीय भाषाओं में अनुवाद नहीं हुआ था....इसे पहली बार हिंदी में अनूदित करने का श्रेय इन्हें है.....

    संतराम, बी. ए. - खूब जिए, खूब लिखे, जाति - पाँति का खूब विरोध किए, खुद जाति - पाँति का शिकार हुए, साहित्य में, इतिहास में वो जगह नहीं मिली जिसके हकदार थे….इसीलिए कि कुम्हार थे...... (जब डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह ने फेसबुक पर संतराम बी.ए. के बारे में यह पोस्ट लिखी थी तभी इतिहासकार ताराराम जी ने उस पर एक टिप्पणी कर के कहा था कि संतराम जी मेघ थे.) 

दिलीप मंडल की पोस्ट थी थी:

    'जात-पात तोड़क मंडल' के संस्थापक, प्रखर विद्वान, पंजाब विधान परिषद के पूर्व सदस्य, संपादक एवं प्रसिद्ध समाजसुधारक संतराम बी.ए. की 135वीं जयंती पर उन्हें नमन।

    "मैं ऐसा समाज देखना चाहता हूं जिसमें न कोई इतना निर्धन हो कि उसे किसी से मांगने की आवश्यकता हो और न ही कोई इतना धनाढ्य हो कि लोगों को धन लुटा सके "- संतराम बी.ए.

    "मैं न किसी को अपने से नीचा मानता हूं और न किसी को अपने से ऊंचा"  - संतराम बी.ए.

    "मैं न तो हिन्दू धर्म, ईसाई धर्म या मुस्लिम धर्म नाम के कोई अलग-अलग धर्म मानता हूं और न भारतीय संस्कृति या पाश्चात्य संस्कृति नाम की कोई अलग-अलग संस्कृतियां। मैं केवल मानव धर्म और केवल एक मानव संस्कृति मानता हूं। मेरी सम्मति में धर्म उन विषयों का नाम है जो मानव समाज में सुख शांति बनाए रखने में सहायता देते हैं। संस्कृति भी मानवी व्यवहार को सुखद बनाने वाली बातें ही हैं। - संतराम बी.ए.

            चला जाऊंगा छोड़कर जब इस आशियाने को,

            वफाएं तब याद आएंगी मेरी इस जमाने को। - संतराम बी.ए.

    संतराम बी.ए. के नेतृत्व में चल रहे जाति-पाति तोड़क मंडल के निमंत्रण पर ही बाबा साहब लाहौर में भाषण देने जाने वाले थे। वही भाषण बाद में Annihilation of Caste नाम से छपा। - संकलन - Shiv Das


2 comments:

  1. Most of the good information about such personalities is not known to our community, because they rarely develop reading habits.

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  2. ऐसे दुर्लभ और महान व्यक्तित्व को हार्दिक नमन । उनके कृतित्व को भी नमन ।

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