"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


20 March 2021

Thirst for history - इतिहास की प्यास -1

    कुछ दिन पहले मेघ चेतना के पूर्व मुख्य संपादक श्री एन.सी. भगत मेरे यहां पधारे थे. उन्होंने जिक्र किया कि किसी ने उन्हें फोन करके मेघों के इतिहास की जानकारी चाही है (भई यह चाहना तो हमें भी लगी है). 

    बातचीत लंबी थी. इस दौरान श्री एन.सी. भगत ने बताया कि उन्होंने फोन करने वाले को एक सुझाव दिया है कि चार-पांच लोग इकट्ठे बैठकर अपनी जानकारी के हिसाब से मेघ जाति का इतिहास लिखें.

    इस सुझाव में बहुत संभावनाएं हैं. दो या अधिक टीमें भी हो सकती हैं. ये टीमें इकट्ठे या अलग-अलग बैठ कर लिखें. उनके पास प्राधिकृत और पर्याप्त सामग्री हो तो अच्छा परिणाम निकलेगा. डॉ ध्यान सिंह, डॉ नवल वियोगी, श्री ताराराम और कुछ अन्य ने मेघों के बारे में बहुत कुछ लिखा है. इतिहासपूर्व मेघों के बारे में श्री आर.एल. गोत्रा का आलेख Meghs of India काफी कुछ कहता है. उनके आलेख के संदर्भ अन्य इतिहासकारों ने दिए हैं. इन सभी विद्वानों द्वारा एकत्रित जानकारी उपयोगी है. कोई कहना चाहे तो कह दे कि- ‘Blogging is not writing’, लेकिन MEGHnet ब्लॉग पर मेघों के बारे में बहुत-सी सकारात्मक जानकारियां मिल जाएंगी जो अन्यत्र नहीं मिलेंगी. नए प्रयास करने वालों के लिए हार्दिक शुभकामनाएं.

    इतिहास लेखन के गुणों के बारे में विद्वानों ने हमारे लिए बहुत कुछ लिख छोड़ा है. उसका एक सार यह है:-

    ‘अपने लेखन को पूरी तरह केंद्रित, सीमित रखें. स्पष्ट तर्क दें, अपने मूल विचार शामिल करें, अपनी भावना को अच्छी कहानी की तरह कहें, साथ में सबूत देते चलें, अपने स्रोतों के दस्तावेज़ बनाते चलें, निष्पक्षता से लिखें, पहला और आखिरी पैराग्राफ एक दूसरे का दर्पण हो, आपका लेखन भाषा की प्रचलित रीति में हो और आप जिसे कुछ कहना चाहते हैं उससे बात करता हो.’ (Richard Marius and Melvin E. Page की A Short Guide to Writing About History के साभार)

    इतिहास लेखन प्रोजेक्ट की तरह होता है: 

   अपनी परियोजना की योजना बनाएं. उसका प्रकाशन, उसका बजट प्रबंधन, किसी अन्य लेखक की सहायता कैसे और किन नियमों और शर्तों के तहत ली जाएगी, पुस्तक प्रकाशन की अन्य व्यवस्थाएँ, संपादन, डिज़ाइन और पुस्तक का समग्र रूप, ISBN संख्या और तैयार पुस्तक को बेचना. उसके बाद समय-समय पर अपडेशन या नए संशोधित संस्करण. कुल मिला कर यह एक भरी-पूरी कला है.  

    यदि मैं सिर्फ़ अपना मूल या अपने वंशकर्ता के बारे में जानकारी चाहता हूं, तो मुझे साइंस से इतना सबक़ ले लेना चाहिए कि धरती पर जीवन सूर्य से है और सभी मानव सूर्यवंशी हैं. 'मेघ-माला' पुस्तक यही कहती है. प्रथम मेघ-नारी या मेघ-पुरुष की तलाश है? तो बेहिसाब मग़ज़ फोड़ी कर के आख़िर कहना होगा कि जिस इंसान ने पहली बार धरती पर चैतन्य आंखें खोलीं वही हमारा वंश कर्ता था. वह मानवीय गुणों वाला प्राकृतिक मानव था. उसका नाम कहीं दर्ज नहीं है. 


2 comments:

  1. हार्दिक कामना है कि प्यास की तृप्ति शीघ्र एवं शुभ्र हो । अपने मूल को स्वीकार करते हुए ।

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  2. ये तो अच्छी बात है .... आपने इतन अध्यन किया है ... इतनी खोजी जानकारी आपके पास है ...
    ज़रूर इस काम की पहल करनी चाहिए आपको ... अच्छा सुझाव है ...

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