"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


28 March 2021

Thirst for history - इतिहास की प्यास -2

प्राचीन ‘इतिहास’ की एक मुख्य बात यह थी कि मंत्रोच्चार के साथ राजा का विस्तृत गुणगान करने के बाद जल्दी से यह बोल कर ‘स्वाहा...’ कह दिया जाता था कि - ‘उसके राज्य में जनता बहुत सुखी थी’. कैसे सुखी थी या कैसे सुखी नहीं थी, इसका उल्लेख कम ही मिलता है. उस समय के इतिहासकारों ने राजा से ज़मीन और उपहार लेने होते थे सो प्रजा के बारे में एक वाक्य काफ़ी था. अधिक बताने की ज़रूरत नहीं समझी गई. मेहनती देश की श्रम-संस्कृति का वर्णन जब यज्ञ-संस्कृति करती है तो बहुत कुछ अनकहा रह जाता है. हिरणों की कथा अगर शिकारी लिखे तो यही लिखेगा कि देश का राजा बहुत दयालु था (जिसने उसे बड़ी शिकारगाह दे दी थी)....और कि शिकारी की नज़र जहां तक जाती थी वहां हिरण खुशी से छलांगें मारते थे. बाकी शिकारी जाने या फिर हिरणों को पता होगा.

इंसानों के संबंध में जब इतिहासकार शासन व्यवस्था, अर्थव्यवस्था, शिक्षा, सामाजिक व्यवस्था, धर्म और जनसाधारण के जीवन पर व्यापक टिप्पणियाँ दें तब वह आज के अर्थ में ‘इतिहास’ कहलाता है.

किसी मानव समूह (समाज) का इतिहास तब रूप ग्रहण करने लगता है जब अपने परिवेश से मिले संस्कार समाज के सदस्यों को ऐसा बना दें कि वे दूसरों के जीवन को सकारात्मक रूप से निखारने लगें. अपने अस्तित्व और जीवन-मूल्यों के लिए संघर्ष समाज के जीवन में दिखने लगे और उसका शैक्षिक, बौद्धिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास होने लगे. 

आधुनिक इतिहासकारों ने वह समझदारी विकसित की है जिसमें आम पब्लिक का दुख-सुख जगह पा गया. इसके अलावा प्रमुख घटनाक्रम की पृष्ठभूमि में सक्रिय विचारधारा, साहित्य, भाषा आदि के महत्व को इतिहास के अन्वेषकों और टिप्पणीकारों ने समझा. इतिहास को लेकर ख़ास तरह के संदर्भ साहित्य में क्या गुण-दोष हैं, किसी विचारधारा की स्थापना किसने और किन परिस्थितियों में की यह बताया जाने लगा है. इसलिए यदि आपके समाज पर किसी दूसरे ने कमेंट्री की है तो उसका इस्तेमाल करते हुए सावधानी बरतें. किसी दूसरे ने गूढ़ भाषा में जो मंत्र लिखा उसका इस्तेमाल करने से पहले अच्छी तरह परख लें कि कहीं वह मंत्र आपको ही बर्बाद करने के लिए तो नहीं लिखा गया.

इतिहास के उल्लेखनीय पात्रों में अपने समाज (परिवार) की परंपराओं के प्रति ‘स्वाभिमान’ जैसे प्रबल और आक्रामक गुणों का उल्लेख होता आया है जिनके बल पर किसी ने अपने समाज को उच्चतर स्थिति, उच्चतर मानकों (स्टैंडर्ड्स) पर बनाए रखने के लिए कार्य किया. कई मेघों की प्रेरक जीवनियाँ बताती हैं कि उन्होंने किस तरह अशिक्षा और कम संसाधनों के बावजूद संतानों का चारित्रिक निर्माण किया, संतानों को शिक्षा दिलाने और आगे बढ़ाने के लिए लंबा संघर्ष किया और उनमें उच्चतर जीवन-मूल्यों का बीज रोंपा. ऐसी सच्ची कथाओं वाला साहित्य समाज में जान फूंकता है. उनका योद्धाओं वाला इतिहास तो है ही.

इतिहास लेखन का छोटा-सा तजुर्बा तब हो जाता है जब हम परिवार की तरक्की के लिए अपने माता-पिता की जद्दोजहद पर निबंध लिखते हैं. माता-पिता के किन गुणों के कारण आप, मैं और गली-मोहल्ले या शहर के लोग उन्हें याद करते हैं. ‘शहर के लोग याद करते हैं’ जैसा वाक्य शहर में सस्ता नहीं मिलता. इसका मूल्य आपके पास रखे संदर्भों, दस्तावेज़ों और मीडिया की ताकत से तय होता है. समाचार पत्र की कतरनें, फोटो, वीडियो, पत्रिकाएं, फिल्में आदि समाज का इतिहास लिखने में मददगार होती हैं.

अपना इतिहास स्थापित करने के लिए बुद्धिजीवियों की मदद ज़रूरी है. उसे छापना और जन-पुस्तकालयों तक पहुंचाना चाहिए. समाज को पुस्तकें मुहैय्या कराइए. मेघ समाज तूफ़ानों का मुकाबला करते हुए वर्तमान तक पहुंचा है. ज़रूरी है कि उसकी गौरवपूर्ण कथा लिखी जाए.


2 comments:

  1. इतिहास लेखन के प्रति सुस्पष्ट एवं सरल भाषा में दिया गया दिशानिर्देश कई सूक्ष्म बिंदुओं को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत कर रहा है । रोचक ।

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  2. इतिहास लेखन सच में एक दुर्गम कार्य है ...
    इमानदारी बहुत ज़रूरी है एक इतिहासकार के लिए ... और बदलाव भी जरूरी है नए तथ्यों अनुसार इतिहास में ...

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