tag:blogger.com,1999:blog-7324833772250432260.post6712120480820722280..comments2024-03-23T13:05:25.067+05:30Comments on MEGHnet: Definition of epic- a democratic squabble - महाकाव्य की परिभाषा - एक लोकतांत्रिक रारBharat Bhushanhttp://www.blogger.com/profile/10407764714563263985noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-7324833772250432260.post-38993879885859164482012-02-11T18:02:19.816+05:302012-02-11T18:02:19.816+05:30बहुत सुन्दर. "अपने कर्मों को धर्म के अंतर्गत ...बहुत सुन्दर. "अपने कर्मों को धर्म के अंतर्गत लाने के तरीके जानता है, संक्षेप में धर्म पर शासन करता है और धनापेक्षी विद्वानों का लेखन अपने पक्ष में मोड़ता है" यह तो स्थापित सत्य है.पराकाष्टा तो तब दिखाई देती है जब वही दीन हीन अपने शोषकों की जयजयकार करते जुलूस का हिस्सा बना दिया जाता है.P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7324833772250432260.post-24394553673588664122012-02-11T15:08:24.860+05:302012-02-11T15:08:24.860+05:30भूषण सर ,
आम आदमी के दर्द को बहुत सही तरीके से परि...भूषण सर ,<br />आम आदमी के दर्द को बहुत सही तरीके से परिभाषित किया है आपने। नायक अपने आप में व्यस्त और त्रस्त दिखयी देते हैं। वे आम आदमी के जीवन द्वन्द, अंतर्द्वंद और व्यथा से पूर्णतया अनभिज्ञ हैं। निसंदेह अब काव्य को पुनः परिभाषित करने की ज़रुरत है।ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7324833772250432260.post-32318752145968198412012-02-10T12:29:49.525+05:302012-02-10T12:29:49.525+05:30मैं तो आने वाले समय की बात सोच कर परेशान हो जाती ह...मैं तो आने वाले समय की बात सोच कर परेशान हो जाती हूँ जब हमारी आने वाली पीढ़ी के हाथ ' लालू-चालीसा ' मायावती-चालीसा ' लगे और वो भी किसी काव्य के नायक की तरह स्थापित हो जाए . मतलब भाट-चारणों की जमात इनका गुणगान स्वर्णाक्षरों में लिख रखे हैं..वैसे आपके विश्लेषण का प्रत्येक दृष्टिकोण आकर्षित करता है..Amrita Tanmayhttps://www.blogger.com/profile/06785912345168519887noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7324833772250432260.post-90605617779706997132012-02-10T10:36:16.389+05:302012-02-10T10:36:16.389+05:30accha laga padhkar
ek vicharniya postaccha laga padhkar<br />ek vicharniya postAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7324833772250432260.post-55492734467526975002012-02-09T20:12:37.493+05:302012-02-09T20:12:37.493+05:30महाकाव्य पर सार्थक चिंतन. स्वागत.महाकाव्य पर सार्थक चिंतन. स्वागत.अभिषेक मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07811268886544203698noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7324833772250432260.post-39869432323604505272012-02-09T12:49:03.142+05:302012-02-09T12:49:03.142+05:30ऐसे मामलों को लोकतान्त्रिक रार की सही संज्ञा दी है...ऐसे मामलों को लोकतान्त्रिक रार की सही संज्ञा दी है आपने.<br />"ह" से प्रारंभ होने या न होने के बजाय महाकाव्य का समाजोपयोगी होना तथा सुगमता से ग्राह्य होना अधिक आवश्यक है और इसी में इसकी सार्थकता छिपी होती है.Kunwar Kusumeshhttps://www.blogger.com/profile/15923076883936293963noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7324833772250432260.post-1172728571530854512012-02-07T20:09:05.694+05:302012-02-07T20:09:05.694+05:30आपने जो तर्क और तथ्य प्रस्तुत किया है उससे तो सचमु...आपने जो तर्क और तथ्य प्रस्तुत किया है उससे तो सचमुच लगने लगा है कि महाकाव्यों को पुनर्परिभाषित करने की आवश्यकता है।महेन्द्र वर्माhttps://www.blogger.com/profile/03223817246093814433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7324833772250432260.post-11508983350065327572012-02-07T19:37:11.703+05:302012-02-07T19:37:11.703+05:30धन्यवाद, गिरिजेश जी.धन्यवाद, गिरिजेश जी.Bharat Bhushanhttps://www.blogger.com/profile/10407764714563263985noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7324833772250432260.post-87030658989368654612012-02-07T19:25:09.203+05:302012-02-07T19:25:09.203+05:30आपके बताए गाने के साथ मैंने दो लटके लगा लिए हैं :)...आपके बताए गाने के साथ मैंने दो लटके लगा लिए हैं :))Bharat Bhushanhttps://www.blogger.com/profile/10407764714563263985noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7324833772250432260.post-57163708246621472472012-02-07T19:00:50.251+05:302012-02-07T19:00:50.251+05:30अच्छा लगा आपको पढकर। धन्यवादअच्छा लगा आपको पढकर। धन्यवादNews And Insightshttps://www.blogger.com/profile/02530480097979739898noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7324833772250432260.post-29530103551834747212012-02-07T10:48:19.926+05:302012-02-07T10:48:19.926+05:30सत्य तो यही है सर जी ! पर रामायण और महाभारत से बेज...सत्य तो यही है सर जी ! पर रामायण और महाभारत से बेजोड़ - कोई ग्रन्थ.... आज तक आया ही नहीं ! हम काले है तो क्या हुआ दिल वाले है ! बधाई सर जी !G.N.SHAWhttps://www.blogger.com/profile/03835040561016332975noreply@blogger.com