पाकिस्तान में हमारे गाँव के पास एक
ढल्लेवाली गाँव था. वहाँ के ब्राह्मणों, हिन्दु जाटों और महाजनों ने चमारों और हरिजनों या सफाई करने वालों
को तंग किया, और गाँव से निकल जाने के लिए कहा. उन्होंने स्यालकोट शहर में जाकर
जिला के डिप्टी कमिश्नर को निवेदन किया. उसने अंग्रेज़ एस. पी. और पुलिस भेजी. वे
गाँव से न निकले मगर अपना काम बन्द कर दिया. विवश होकर उन बड़ी जाति वालों को अपने
मरे हुए पशु स्वयं उठाने पड़े और अपने घरों की सफाई आप ही करनी पड़ीं. यह काम करने
पर भी वे बड़ी जातियों के बने रहे. कोई नीच या अछूत नहीं बन गए. ये सब स्वार्थ के
झगड़े हैं. दूसरों को, दूसरी जातियों को आर्थिक या सामाजिक दशा का संस्कार दे देना और
उनको दबाए रखना, अपने काम निकालना यह समय के मुताबिक रीति-रिवाज़ बना रहा. अब अपना
राज्य है, प्रजातन्त्र है. हर एक व्यक्ति
जाति, समाज या देशवासी को यथासम्भव
उन्नति करने का अधिकार है. रहने का अच्छा स्तर, रोटी, कपड़ा और मकान प्राप्त करना सब के लिए ज़रूरी है. अभिप्राय यह है
कि अपना जीवन अच्छा बनाने के लिए रोटी, कपड़े और मकान के लिए, आर्थिक दशा सुधारने के लिए, अनुसूचित जाति में आने के लिए कई जातियाँ मजबूर थीं. जो लोग उनको
नीच या अछूत कहते हैं यह उनकी अज्ञानता है. सबको प्रेमभाव से रहना चाहिए.
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