The Unknowing Sage

17 October 2013

Slavery of Meghs - मेघों की ग़ुलामी


इस बारे में उन्होंने (आर्यों/ब्राह्मणों ने) बहुत चतुराई बरती. तथापि जानकार लोग इस इक्कसवीं शताब्दी में धीरे-धीरे उन्हें बेनकाब कर रहे हैं. मेघों के पूर्वज उनके खेल को इन कारणों से नहीं समझ सके :

1. आर्य/ब्राह्मणों के लिखे धर्मग्रंथों को कानून की तरह लागू कर के हमारे पूर्वजों की शिक्षा पर रोक लगा दी गई थी.

2. कई पीढ़ियों तक हमारे पूर्वज पूर्ण अधीनता और मानसिक ग़ुलामी में रहे जिससे वे यह सोचने के मौके भी गँवा बैठे कि वास्तव में वे क्या थे, उन्हें असल में क्या होना चाहिए, तार्किक/नैतिक रूप से क्या अच्छा है और क्या बुरा और कि अंतःकरण की आज़ादी क्या है. संक्षेप में उनकी सोच को पूरी तरह पंगु बना दिया गया. उन हालात के अवशेष अभी भी दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यक समुदायों में पाए जाते हैं.

3. अपने चुनिंदा व्यवसाय को अपनाने का अधिकार समाप्त कर दिया गया.

4. संपत्ति का अधिकार पूरी तरह ख़त्म कर दिया. उन्हें अपने स्वामियों/शासकों की मर्ज़ी पर ज़िंदा रहने के लिए छोड़ दिया गया.

5. उनके विद्रोह करने के अधिकार और उससे भी महत्वपूर्ण यह कि आत्मरक्षा के लिए हथियार रखने के अधिकार को भी पूर्णतः समाप्त कर दिया गया.

6. ऐसे कानून लागू किए जो पूरी तरह भेदभावपूर्ण थे जैसा कि 'पवित्र ग्रंथों' से स्पष्ट है और आज हम शिक्षित हो जाने के बाद जिन्हें 'अपवित्र' (अपावन) मानते हैं. इसी लिए 'मानव धर्म शास्त्र', जिसे बाद में 'मनुस्मृति' के नाम से जाना गया, को डॉ. अंबेडकर ने सार्वजनिक रूप से जलाया था.

7. 'साम, दाम, दंड और भेद' की नीति और सभी संदिग्ध तरीके अपनाए गए जिससे आर्यों से पहले यहाँ बसे लोगों के मनों से समानता, स्वाधीनता, भाईचारे और न्याय भावना के अधिकार को समाप्त किया जा सके.

8. लोगों के 'रहन-सहन' ('way of life') के क्षेत्र में आत्मसातीकरण (assimilation) या संस्कृतीकरण (Sanskritization) की नीति अपना कर पूरे भारत पर आधिपत्य (suzerainty) का दावा कर दिया.

(फेसबुक पर श्री रतन गोत्रा की टिप्पणी पर आधारित)

Govt. of India's data on slavery 

MEGHnet

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