"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


11 April 2012

When we became independent in 1947... - जब हम 1947 में आज़ाद हुए थे.....


.....उससे पहले एक कानून था कि यदि कोई शराब पीकर किसी की हत्या कर दे तो उसे कम सज़ा दी जाती थी क्योंकि माना जाता था कि नशे में होने के कारण उससे ग़लती हो गई.

यह कानून पीने के आदी अंग्रेज़ों ने बनाया था. ज़ाहिर है उन्होंने अपने भले के लिए बनाया था. हत्या या कई अन्य अपराध पियक्कड़ अंग्रेज़ों से हो जाते थे. उनके कारकुन भी इसी मर्ज़ के शिकार थे. लेकिन इस कानून के कारण वे दोनों काफी कम सज़ा के भागी होते थे. कानून की किताब ज़िंदाबाद जिसे अंग्रेज़ जाते-जाते हमें दे गए और हमने उसे अपने सिर पर रख लिया. चलो जी हम आज़ाद हो गए.

आज टीवी पर खबर थी कि एक बाप ने अपनी नन्हीं-सी बेटी को शराब के नशे में नीचे पटक दिया और फिर उसे मरा समझ नाले में डाल आया. अरे वाह!! क्या बात है सर जी!! उसे पक्की उम्मीद थी कि वह सस्ते में छूट जाएगा क्योंकि मेरे देश का प्रत्येक पियक्कड़ अंग्रेज़ों के उक्त कानून को जानता है.



21 comments:

  1. उसका बच्चा
    क्यों बोलेगा कोई सरकार- वरकार!

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    1. सच्ची बात है. अब इसका बच्चा 'माई-बाप' तो नहीं ही बोलेगा.

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  2. बेहतरीन प्रस्‍तुति।

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  3. बिलकुल सही सर जी ! आज भी कई क्षेत्रो में हम अंग्रेजो के बनाये कानून ही रट रहे है !

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  4. गंभीर विषय पर सार्थक पोस्ट .......

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  5. कई क्षेत्रों नहीं। भारतीय दंड संहिता 1860 से लागू है, वही चलती है यानी पूरा कानून ही समझिए।
    पुलिस की स्थापना भी उसी समय हुई।

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    1. आप सही कह रहे हैं. भारतीय पुलिस की ट्रेनिंग अंग्रेज़ों के कानून के अनुसार ही होती है :))

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  6. Vijai Mathur ✆ to me

    जिस प्रकार एडमंड बर्क के नेतृत्व मे ब्रिटेन मे कानून सुधार आंदोलन चला था और वहाँ क़ानूनों मे सुधार हुआ था। नकल करने के आदि हम भारतीयों को भी उसी तरह 'कानून सुधार आंदोलन' चला कर सभी कानूनों को इस प्रकार सुधार लेना चाहिए कि उनसे गुलामी की सारी बू समाप्त हो जाये।

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    1. आपसे पूरी तरह सहमत हूँ माथुर साहब. मुश्किल यह है हमारे सत्ताधारी इन गुलामियत स्थापित करने वाले कानूनों के साथ ही स्वयं को सुरक्षित महसूस करते हैं. पता नहीं स्वतंत्रता की पवित्र भावना के साथ ये देश की जनता को कब देखना चाहेंगे.

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  7. आपका धन्यवाद.

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  8. there r so many loop holes in our legal system and ppl never leave a chance to tyake advantage of it

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  9. आदरणीय भूषण जी कहाँ बदल पाए हम अपना कानून चोला नया है आत्मा वही पुरानी.सब वही एक्ट गुलामी के कारनामे भी तो वैसे ही --सार्थक लेख ..मन को छूता हुआ ..जय श्री राधे
    भ्रमर ५

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  10. तभी तो हम अभी तक मानसिक रूप से गुलाम ही हैं ...

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  11. भले ही आज हम आजाद है पर मानसिक रुप से तो गुलाम ही है..इसी लिए कुछ नहीं बदल पारहे है......सार्थक पोस्ट..

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  12. Rajesh Kumari ✆ to me

    भूषण जी आप सच कह रहे हैं हम आज भी अंग्रेजों के बनाए ढर्रों पर ही चल रहे हैं चाहे क़ानून की बात ले लो या रक्षा मंत्रालय की बात ले लो अंग्रेज चले तो गए पर अपने भूत यहीं छोड़ गए |

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  13. Pallavi ✆ to me

    गंभीर विषय पर बहुत ही आसान शब्दों में सार्थक पोस्ट....

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  14. यह सड़े गले कानून कब जायेंगे ??
    आभार जागरूक पोस्ट के लिए भाई जी !

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  15. सार्थक आलेख. आजकल तो कानून को लोग अपने पॉकेट में रखते हैं.

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  16. बिलकुल सही कह रहे है श्री भारत जी. हम आज भी केवल प्रत्यक्ष रूप से आजाद हुए है. मानसिक रूप से से तो आज भी गुलाम है. अंग्रेजो के तीन virus- चाय, क्रिकेट और अंग्रेजी हमारे देश को खोकला कर रहे है. आने वाले कुछ सालो में पुरुषो का पारंपरिक परिधान धोती तो फोटो में ही दिखाई देगी.

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