"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


30 June 2020

Why disinterested in history - इतिहास में अरुचि क्यों


इतिहास में हमारे छात्रों की रुचि क्यों नहीं बैठती इस बारे में पहले भी पोस्ट की है. जब कोई इतिहास के आइने में ख़ुद को  देख ही नहीं पाता तो वो आइना खरीदे ही क्यों.

यह बात भारतीय छात्रों के संदर्भ में सटीक है जबकि कई देशों के छात्र समाजशास्त्र से लेकर इतिहास और धर्म तक में बहुत रुचि रखते हैं. मैंने लिखा था कि हमें पढ़ाए जाने वाला इतिहास तारीखों से भारी है जिसे रटना मजबूरी सी लगती है. दो तारीखों के बीच राजा-महाराजा तो दिखते हैं लेकिन विस्तृत समाज नहीं दिखता. रुचि का तो फिर सवाल ही नहीं. ज़ाहिर है कि हमारा इतिहास समाज की यात्रा के दृश्य दिखाते हुए नहीं चलता. उससे तारीखें जानने के अलावा कुछ सीख पाना संभव नहीं होता.

समय-समय पर समाजों में हलचल हुई है और उस पर बातचीत भी ज़रूर हुई होगी. इतिहास ने उसका दस्तावेज़ीकरण क्यों नहीं किया. क्यो उस विमर्श को दरकिनार किया गया. ऐसा न करने के पीछे तथाकथित इतिहास लिखने वालों की क्या मंशा रही होगी. क्या वे किसी के किए पर तारीखों के पत्थर डाल कर तेज़ी से आगे बढ़ जाना चाहते थे.

पुरातत्व ने और आधुनिक इतिहासकारों ने मिल कर मुअनजो दाड़ो (जिसे सिंधुघाटी सभ्यता कहने का रिवाज़ अधिक था) को बौध सभ्यता प्रमाणित किया है और उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर उसे विकसित नगरीय या नागरी सभ्यता पाया है. फिर क्या वजह हो सकती है उसके बाद हमारा यहाँ का समाज जातियों में बँटा, अंधविश्वासों से भर गया. समाज की यह धारा यदि विकास कही गई तो उस धारा का स्रोत कहाँ है. आज के समाज के स्वरूप को लेकर हर पढ़ा-लिखा व्यक्ति सोच में पड़ जाता है. इस विषय पर संजय श्रमण जी की निम्नलिखित टिप्पणी फेसबुक पर पढ़ने को मिली :   

"अगर अपराधियों के हाथ मे शिक्षा और धर्म संस्कृति की कमान हो तो वे अपने अपराध का इतिहास मिटा देते हैं. साथ ही वो ऐसा बहुत कुछ भी मिटा देते हैं जिससे किसी समाज या राष्ट्र को आगे बढ़ने में मदद मिलती है. जिन मुल्कों ने तरक्की की है उनका इतिहासबोध साफ रहा है. साफ इतिहासबोध से ही साफ भविष्यबोध जन्म लेता है. भारत के पास अपने क्रम विकास का व्यवस्थित इतिहास नहीं है. और भारत इसीलिए एक सभ्य समाज या एक राष्ट्र नहीं बन पाया है. अपने इतिहास से वंचित भारत अपने भविष्य से भी वंचित हो गया है. इन दो बातों में सीधा संबन्ध है। इसे देखिये, समझिये. - संजय श्रमण"

विकास की प्रक्रिया में कई बातें इस तरह गुँथ चुकी होती हैं कि विकास के सकारात्मक या नकारात्मक होने का निर्णय करना मुश्किल हो जाता है. यह ठीक उसी तरह है जैसे हम विज्ञान के लाभ-हानियाँ गिनवाने लगते हैं और तभी हमें कारखानों और प्रदूषण के विचार एक साथ आने लगते हैं.

भारत अब एक राष्ट्र बनने की प्रक्रिया में तेज़ी से चल रहा है. अब इसके इतिहास को विवेकपूर्ण और वैज्ञानिक पद्धति से पुनः लिखने की ज़रूरत है.

06 June 2020

Megh War Veterans - मेघ वीर योद्धा

कई वर्षों से यह विचार मन में उमड़-घुमड़ रहा था कि हमारे मेघ समुदाय से जो लोग सेना में गए हैं और युद्ध क्षेत्र में अपनी शूरवीरता के लिए कई पदक आदि भी प्राप्त किए हैं उनका कोई एक समेकित रिकॉर्ड होना चाहिए. इस बारे में मैंने एक-दो मंचों पर बात रखी थी कि किसी व्यक्ति को इस बारे में पहल कदमी करते हुए मेघ योद्धाओं से संबंधित डाटा और उनके जीवन से संबंधित जानकारी इकट्ठी करनी चाहिए. लेकिन बात बनी नहीं.

इसे संयोग कह लीजिए कि श्री गोपीचंद भगत के बारे में उनके सुपुत्र श्री महेंद्र पॉल ने लिखा. फिर अख़नूर के डॉ के. सी. भगत के ज़रिए मुझे वीर चक्र प्राप्त कैप्टेन तुलसीराम जी के बारे में जानने को मिला. यह भी मालूम हुआ कि जालंधर के ब्रिगेडियर आत्माराम जी को भी वीर चक्र प्राप्त हुआ था. उन्होंने पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में दुश्मन को उसके घर में घुस कर मारा था और उस युद्ध में उनकी एक आँख चली गई थी लेकिन उनके उत्साह और वीरता के जज़्बे का गर्म खून धमनियों में हमेशा धड़कता रहा. 1966-67 के आसपास वे चंडीगढ़ में हमारे घर आए थे तब उन्होंने अपने बारे में कुछ वाक्यों में अपने अनुभव की जानकारी दी थी. तब मेरी आयु 16-17 वर्ष रही होगी. उनकी बातें सुन कर गर्व महसूस होता था. संभवतः वे जाट रेजीमेंट में थे. उनके बारे में इससे अधिक जानकारी नहीं मिल पा रही.

पिछले दिनों ताराराम जी ने एक प्रोजेक्ट अपने हाथ में लिया है जिसमें वे मेघ योद्धाओं का डाटा और जानकारी एकत्रित कर रहे है. उन्होंने मुझसे भी जानकारी चाही. मेरे चाचा सूबेदार हरबंस लाल आर्मी में रहे थे और उन्होंने दूसरे विश्वयुद्ध में बरमा की लड़ाई में हिस्सा लिया था लेकिन उनके बारे में मेरे पास नाममात्र की ही जानकारी थी. उनके सुपुत्र और मेरे चचेरे भाई डॉ अशोक भगत के ज़रिए कुछ और जानकारी मिली जो मैंने ताराराम जी को भेज दी हैं. श्रीमती विजय रूजम ने अपने पिता कैप्टेन बेलीराम और श्री अशोक भगत ने अपने पिता सूबेदार गुलज़ारी लाल जी के बारे में जानकारी दी है जो ताराराम तक पहुँचा दी गई है. अन्य वीरों के नाम सामने आ रहे हैं. देखते हैं उनके बारे में कितनी जानकारी मिल पाती है. ताराराम जी के प्रयत्न से वह जानकारी और डाटा एक सुंदर और सुदृढ़ आकार ग्रहण कर रहा है और ये जानकारियाँ जल्दी ही पुस्तक रूप में प्राप्त हो जाएँगी.

जम्मू से बहुत से मेघ आर्मी आदि में गए हैं. किसी को उनके बारे में जानकारी इकट्ठी करनी चाहिए. वे जाँबाज़ हमारे समुदाय की शान हैं.

फिलहाल जो जानकारियाँ मिली हैं उसके दो लिंक इस ब्लॉग पर “वीर योद्धा” और “W.W.II के मेघ योद्धा” नाम से लगा दिए हैं. उसका संकेत नीचे दे दिया है.