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"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह
30 December 2013
28 December 2013
Bhagata Sadh - भगता साध
As revealed by the history of famines during the 19TH century, because of hunger and tormenting poverty, many people among the communities like Meghs had even started eating the flesh of animals, dead or otherwise. Hunger also compelled them to eat the left-over food of both the Muslims and Hindus. However, Basith and Dhian (sub-castes among Meghs in Jammu province) did not develop such habits. Because of this reason, they started keeping aloof from the other Meghs or Mihnghs.
However, the issue was resolved through the efforts of Baba Bhagata Sadh r/o Vill. Khairi, Dist. Jammu, who later on came to be known as ‘Guru of Keran’. Consequently, by a contract which was concluded and signed in 1879, through the influence of a ‘Guru of Keran’, the representatives of Meghs hailing from different areas pledged themselves to total abstinence from it. A breach of this agreement made a man liable to pay Rs. 25 to the Government, Rs. 5 to the headmen of village, and a sum, fixed according to the means of the offender, as a penalty was to be paid to the brotherhood (Biradari). In default of payment, he was liable to exclusion from the caste. This contract did have a good impact over the people and since then the Meghs have generally believed in vegetarian food habits.
(यह सूचना श्री रतन गोत्रा जी के एक आलेख Meghs of India से मिली है. यह भी सुनने में आया है कि भगता साध के अनुयायी आज उनकी जीवन-कथा के साथ कुछ चमत्कारों के जुड़ने की बातें भी बताते हैं.)
06 December 2013
Balli Singh Cheema - बल्ली सिंह चीमा
ग़ज़ल के क्षेत्र में यह एक सशक्त हस्ताक्षर दिखा है. शायद मैं ही इसे देखने में लेट हूँ. आप इसका आनंद लीजिए.
यूँ मिला आज वो मुझसे कि ख़फ़ा हो जैसे
मैंने महसूस किया मेरी ख़ता हो जैसे
तुम मिले हो तो ये दर-दर पे भटकना छूटा
एक बेकार को कुछ काम मिला हो जैसे
ज़िंदगी छोड़ के जायेगी न जीने देगी
मैंने इसका कोई नुकसान किया हो जैसे
वो तो आदेश पे आदेश दिये जाता है
सिर्फ़ मेरा नहीं दुनिया का ख़ुदा हो जैसे
तेरे होठों पे मेरा नाम ख़ुदा ख़ैर करे
एक मस्जिद पे श्रीराम लिखा हो जैसे
मेरे कानों में बजी प्यार भरी धुन बल्ली
उसने हौले से मेरा नाम लिया हो जैसे
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यूँ मिला आज वो मुझसे कि ख़फ़ा हो जैसे
मैंने महसूस किया मेरी ख़ता हो जैसे
तुम मिले हो तो ये दर-दर पे भटकना छूटा
एक बेकार को कुछ काम मिला हो जैसे
ज़िंदगी छोड़ के जायेगी न जीने देगी
मैंने इसका कोई नुकसान किया हो जैसे
वो तो आदेश पे आदेश दिये जाता है
सिर्फ़ मेरा नहीं दुनिया का ख़ुदा हो जैसे
तेरे होठों पे मेरा नाम ख़ुदा ख़ैर करे
एक मस्जिद पे श्रीराम लिखा हो जैसे
मेरे कानों में बजी प्यार भरी धुन बल्ली
उसने हौले से मेरा नाम लिया हो जैसे
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01 December 2013
The Koris - कोरी
कोरी जाति के बारे में विकिपीडिया पर एक आलेख उपलब्ध है जिसे मैंने हाल ही में (शायद दोबारा) देखा है. रुचिकर है. इस आलेख को और कोली तथा मेघवाल आलेख को मिला कर पढ़ें तो काफी स्पष्ट हो जाता है कि ये तीनों जातियों में कोई अंतर नहीं है. और भी जानकारी वहाँ मिलेगी.
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