बचपन से एक प्रश्न मन में था कि लंका में बनी अशोक वाटिका में
क्या कभी सम्राट अशोक रहते थे या यह वाटिका अशोक ने बनवाई थी? सीता-माता जिसमें रह रही थी उस वाटिका को हनुमान ने क्यों नष्ट कर दिया?
खैर ये बच्चे के मन में उठे छोटे-छोटे बेकार प्रश्न हो सकते हैं.
फेसबुक पर एक प्रकरण पढ़ा जिसमें तार्किक दृष्टि से मुझे एक नई बात का पता चला. इसमें
बड़ा प्रश्न निहित है कि ‘रामायण’ (जिसे इतिहास से भी पहले का अतिप्राचीन ग्रंथ कहा जाता है) पहले लिखी गई या इतिहास में लिखे बुद्ध पहले हुए.
इस बारे में फेसबुक पर अशोक दुसाध ने रामायण में से ही एक उद्धरण दिया है जो इस
प्रकार है-
यथा
हि चोरः स तथा ही बुद्ध स्तथागतं
नास्तीक मंत्र विद्धि तस्माद्धि
यः शक्यतमः प्रजानाम् स नास्तीके
नाभि मुखो बुद्धः स्यातम्
-अयोध्याकांड
सर्ग 110
श्लोक
34
“जैसे चोर दंडनीय होता है इसी प्रकार बुद्ध भी दंडनीय है तथागत
और नास्तिक (चार्वाक) को भी यहाँ इसी कोटि में समझना चाहिए. इसलिए नास्तिक को दंड
दिलाया जा सके तो उसे चोर के समान दंड दिलाया ही जाय. परन्तु जो वश के बाहर हो उस नास्तिक से ब्राह्मण कभी वार्तालाप
ना करे! (श्लोक 34, सर्ग 109, वाल्मीकि
रामायण, अयोध्या कांड.)”
इस श्लोक में बुद्ध-तथागत का उल्लेख होना हैरान करता है और इसके आधार पर मैं इस तर्क को अकाट्य मानता हूँ कि बुद्ध पहले हुए और रामायण की रचना बाद में की गई.
इसी संदर्भ में फेसबुक पर क्षेत्रीय शक्यपुत्र की एक अन्य पोस्ट देखी जो इस कहानी को अन्य तरीके से कहती है. फिर भी इस बात का ध्यान रखना होगा कि पुरानी कथा-कहानियाँ कई तरीके सुनी-सुनाई जाती रही हैं अतः लिखी बात का अर्थ भी हर व्यक्ति को अलग तरीके से संप्रेषित होता है. (हालाँकि शक्य पुत्र की यह पोस्ट रामायण की कथा में खोज-खुदाई करती है और अशोक के संदर्भ में कुछ समानताओं और विसंगतियों को ढूँढ लाती है, लेकिन इस पोस्ट में अपनी भी कुछ विसंगतियाँ हो सकती हैं.) ब्लॉग की दृष्टि से इसका थोड़ा सा संपादन मैंने किया है.
इसी संदर्भ में फेसबुक पर क्षेत्रीय शक्यपुत्र की एक अन्य पोस्ट देखी जो इस कहानी को अन्य तरीके से कहती है. फिर भी इस बात का ध्यान रखना होगा कि पुरानी कथा-कहानियाँ कई तरीके सुनी-सुनाई जाती रही हैं अतः लिखी बात का अर्थ भी हर व्यक्ति को अलग तरीके से संप्रेषित होता है. (हालाँकि शक्य पुत्र की यह पोस्ट रामायण की कथा में खोज-खुदाई करती है और अशोक के संदर्भ में कुछ समानताओं और विसंगतियों को ढूँढ लाती है, लेकिन इस पोस्ट में अपनी भी कुछ विसंगतियाँ हो सकती हैं.) ब्लॉग की दृष्टि से इसका थोड़ा सा संपादन मैंने किया है.
"1-रावण के कार्यकाल में अशोक वाटिका कहाँ से आती है? कहीं साहित्यकारों ने चक्रवर्ती सम्राट अशोक को रावण के रूप में
प्रदर्शित तो नहीं किया? क्योंकि, रावण की कुछ विशेषताएँ थीं जो कि सम्राट अशोक से मिलती जुलती हैं, महान विद्वान, वीर योद्धा, शूर सिपाही, बहुत बड़ा संत, अपने संबंधियों व प्रजा का दयालुता पूर्वक पालनकर्ता, शक्तिशाली पुरुष, वरदानी पुरुष, इतना ही नहीं बल्कि रावण एक बौद्ध राजा था
ऐसा श्रीलंका स्थित कुछ विद्वान भिख्खुओं का कहना है. आज भी रावण को श्रीलंका में पूजनीय माना जाता है. श्रीलंका में रावण के विहारों में कुछ मूर्तियाँ
और कुछ शिल्पकलाएँ पाई जाती हैं जिनमें रावण धम्म का प्रचार करते हुए स्पष्ट नजर
आते हैं. इतिहास को एक बार देखा जाए तो श्रीलंका में बौद्ध धम्म को
फैलाने वाले और कोई नहीं वे सम्राट अशोक ही थे. रावण ऋषियों से घृणा करते थे. क्यों? क्योंकि वे यज्ञ के नाम पर छल-कपट पूर्ण स्वधर्म नियमानुसार गूँगे
पशुओं को आग में बलि दे कर हृदय विदारक अपराध करते थे. तो इसी से यह साफ होता है
कि रामायण एक काल्पनिक एवं बम्मनों द्वारा
रची हुई नकली कथा है. अगर रावण यज्ञ में चल रहे पशुओं की बलि सह नहीं सकते थे तो क्या वे जटायु नामक पशु को मार सकते हैं? रामायण में एक और कथा कही गयी है कि रावण ने सभी देवी-देवताओं को बंदी किया
था. यह कथा भी सम्राट अशोक की कथा से मिलती जुलती है. क्योंकि सम्राट अशोक ने भी
धम्म में घुसे हुए कुछ नकली लोगों को बंदी बनाकर उन्हें धम्म से हटा दिया था. अगर आप
एक बार रामायण पढ़ें तो उसमें आपको दिखाई देगा कि इस नकली एवं काल्पनिक ग्रंथ के
लेखक ने खुद रावण की प्रशंसा की है. वह लिखता है कि रावण एक सज्जन पुरुष था. वह सुंदर और उत्साही था. किंतु जब रावण
ब्राह्मणों को यज्ञ करते हुए और सोमरस पीते हुए देखते थे तो उन्हें कड़ा दंड देते
थे. इसलिए मुझे तो लगता है कि सम्राट अशोक का विद्रूपीकरण करके ही पाखंडियों ने रावण को ऐसा प्रदर्शित
किया है. क्योंकि इतिहास तो यही कहता है कि धर्मांध लोगों द्वारा दशहरा माना जाता है. दशहरा का और दस पारमिता का कही कोई संबंध तो नहीं? क्योंकि इसी दिन सम्राट अशोक ने शस्त्र का
त्याग कर बुद्ध का धम्म अपनाया था. जिसे आज हम धम्मचक्र प्रवर्तन दिन और अशोक
विजयादशमी कहते हैं. आपने रामायण पढ़ी है? उसमें एक श्लोक आता है जो खुद रामायण की रचना करने वाले वाल्मीकि राम के मुख
से कहलवाते हैं कि-
तस्माद्धि यः
शक्यतमः प्रजानाम् स नास्तीके नाभि मुखो बुद्धः स्यातम् -
(अयोध्याकांड, सर्ग
110, श्लोक 34)
एक और कथा फेसबुक से सामने आई है. उसे भी देखते हैं. रुचिकर है-
“जैसे चोर दंडनीय होता है इसी प्रकार बुद्ध भी दंडनीय है तथागत
और नास्तिक (चार्वाक) को भी यहाँ इसी कोटि में समझना चाहिए. इसलिए नास्तिक को दंड
दिलाया जा सके तो उसे चोर के समान दंड दिलाया ही जाय. परन्तु जो वश के बाहर हो उस नास्तिक से ब्राह्मण कभी वार्तालाप
ना करे!”
उपर्युक्त श्लोक अपने आप में यह सिद्ध करने में पर्याप्त है कि
रामायण की रचना बुद्ध के काल के बाद की है. यही कारण है कि रामायण के रचनाकार ने बुद्ध और
नास्तिकों के प्रति अपना आक्रोश प्रकट करने का अवसर भी खोना नहीं चाहा. चाहे राम और रामायण काल्पनिक हो सकते हैं पर अनजाने में लेखक ने जो बुद्ध का उल्लेख किया है उसका क्या? क्या बुद्ध काल्पनिक है? इसलिए दोस्तो बम्मनों द्वारा क्या ऐसी कथाएँ
सिर्फ बौद्धों के प्रति अपनी घृणा व्यक्त करने के लिए रची जाती
हैं? क्योंकि संपूर्ण रामायण में रावण को
नास्तिक कहा है और पाखंडियों के मतानुसार तो नास्तिक सिर्फ बौद्ध धम्मीय होते
हैं. रावण को भी नास्तिक
कहा है. क्या रावण बौद्ध था? क्या सम्राट अशोक को ही रावण के रूप में प्रदर्शित किया है?
2-सम्राट अशोक के पुत्र भदंत महेन्द्र की
रामायण में नक़ल!! मोग्लिपुत्त तिष्य की आज्ञा
से सम्राट अशोक ने पहले अपने प्रिय पुत्र महेन्द्र को, इत्तीय, शम्बल, उक्तिय और भादशाल इन चार भिक्षुओं सहित श्रीलंका भेजा. बाद में पुत्री
संघमित्रा को भी भेजा. विदिशागिरी में पहुँचने पर महेन्द्र ने अपने माता के भतीजे के पुत्र
'भंदु' को बुद्ध धम्म में दीक्षित कर भिक्षु बनाया और भंदु को साथ लेकर
महेन्द्र अपने चार साथियों सहित श्रीलंका में मिस्सक (मिश्रक) पर्वत के समीप पहुँचा.
इसी समय श्रीलंका का राजा देवानुप्रिया त्तिष्य अपने 40,000 अनुयायियों के साथ एक
हरिण का शिकार करने में लगा था. एक हरिण भागता हुआ मिस्सक (मिश्रक) पर्वत पहुँचा जहाँ
महेन्द्र अपने साथियों सहित ठहरा हुआ था. देवानुप्रिया त्तिष्य अपने 40,000 अनुयायियों
के साथ हरिण के पीछे-पीछे हो लिया और हरिण महेन्द्र के पास पहुँच कर लुप्त हो गया
और इस प्रकार देवानुप्रिया त्तिष्य का भदंत महेन्द्र के साथियों से परिचय हुआ और श्रीलंका
का राजा देवानुप्रिया त्तिष्य महेन्द्र और उनके साथियों को लंका लेकर चला
गया.
रामायण में इसकी नक़ल इस प्रकार की गई है-
वनवास के समय, एक रावण (देवानुप्रिया त्तिष्य लंका के राजा को रावण बना दिया) ने सीता का हरण किया था (सही घटना का अर्थ "श्रीलंका का राजा देवानुप्रिया त्तिष्य महेन्द्र और उनके साथियों को लंका लेकर चला गया"). रामायण के अनुसार, सीता और लक्ष्मण कुटिया में अकेले थे तब एक हिरण की वाणी सुन कर सीता परेशान हो गयी और श्रीराम अपनी भार्या की इच्छा पूरी करने हरिण के पीछे-पीछे हो लिए (सही घटना का अर्थ "हरिण की आवाज सुन कर श्रीलंका का राजा देवानुप्रिया त्तिष्य हरिण के पीछे-पीछे हो लिया"). राम को बहुत दूर ले गया. मौका पा कर राम ने तीर चलाया और हिरन बने मारीच का वध कर दिया. मरते-मरते मारीच ने ज़ोर से "हे सीता! कहा (सही घटना का अर्थ "हरिण ने राजा देवानुप्रिया त्तिष्य को मारीच (मिस्सक) पर्वत ले गया जहाँ सम्राट अशोक का बेटा भदंत महेन्द्र अपने साथियों के साथ रुके थे"). रामायण में मारीच नामक इस पर्वत को रावण का मामा 'मारीच' कह कर नाम की नक़ल की गई. वास्तव में मारीच यह पर्वत है जहाँ श्रीलंका का राजा देवानुप्रिया त्तिष्य और सम्राट अशोक के पुत्र महेन्द्र और उनके साथियों में पहली भेंट हुई थी.......देवानुप्रिया त्तिष्य का भदंत महेन्द्र के साथियों के परिचय को काल्पनिक कथा का स्वरूप देकर रामायण के पाखंडी रचनाकार ने "सीता हरण" के नाम से जनमानस के मन-मष्तिक में ठूँस दिया.”
रामायण में इसकी नक़ल इस प्रकार की गई है-
वनवास के समय, एक रावण (देवानुप्रिया त्तिष्य लंका के राजा को रावण बना दिया) ने सीता का हरण किया था (सही घटना का अर्थ "श्रीलंका का राजा देवानुप्रिया त्तिष्य महेन्द्र और उनके साथियों को लंका लेकर चला गया"). रामायण के अनुसार, सीता और लक्ष्मण कुटिया में अकेले थे तब एक हिरण की वाणी सुन कर सीता परेशान हो गयी और श्रीराम अपनी भार्या की इच्छा पूरी करने हरिण के पीछे-पीछे हो लिए (सही घटना का अर्थ "हरिण की आवाज सुन कर श्रीलंका का राजा देवानुप्रिया त्तिष्य हरिण के पीछे-पीछे हो लिया"). राम को बहुत दूर ले गया. मौका पा कर राम ने तीर चलाया और हिरन बने मारीच का वध कर दिया. मरते-मरते मारीच ने ज़ोर से "हे सीता! कहा (सही घटना का अर्थ "हरिण ने राजा देवानुप्रिया त्तिष्य को मारीच (मिस्सक) पर्वत ले गया जहाँ सम्राट अशोक का बेटा भदंत महेन्द्र अपने साथियों के साथ रुके थे"). रामायण में मारीच नामक इस पर्वत को रावण का मामा 'मारीच' कह कर नाम की नक़ल की गई. वास्तव में मारीच यह पर्वत है जहाँ श्रीलंका का राजा देवानुप्रिया त्तिष्य और सम्राट अशोक के पुत्र महेन्द्र और उनके साथियों में पहली भेंट हुई थी.......देवानुप्रिया त्तिष्य का भदंत महेन्द्र के साथियों के परिचय को काल्पनिक कथा का स्वरूप देकर रामायण के पाखंडी रचनाकार ने "सीता हरण" के नाम से जनमानस के मन-मष्तिक में ठूँस दिया.”
"श्रीलंका"
यह
रावण की लंका नही ।-
अनेक
विद्वान इतिहासकारों ने रावण
की लंका नर्मदा और सोनभद्र
नदि के संगम के पास अमरकंठक
पर्बत के उपर होने का दावा
किया है। लंका मतलब ऊँचा टीला।
लंका शब्द गौंडी भाषा का शब्द
है। इसीलिए गौंड (द्रविड)
राजा
रावण कि लंका मध्य प्रदेश के
अमरकंठक पर्बत पर थी ऐसा विद्वान
मानते हैं। अमरकंठक पर्बत के
पास ही बडा दलदली इलाका है,
जिसे
पार करना असंभव है,
वही
वाल्मीकि का समुंद्र है।
आज
भी अमरकंठक पर्बत के पास "रावण
ग्राम"
नामक
गौंड जाती के लोगों का गांव है।
वहाॅ रावण की जमीन के उपर सोती
हुई पत्थर कि मूर्ती है,
और
वहाॅ के लोग विजया दशमी के दिन
"रावण
बाबा"
कहकर
उसकी पूजा करते हैं। रावण बाबा
उन्हें सुखी रखता है,
ऐसी
उनकी श्रध्दा है। (ज्यादा
जानकारी के लिए पढीए दिवाकर
डांगे लिखित मराठी ग्रंथ
"रहस्य
विश्वोत्पतीचे आणि इश्वराचे।".)
ध्यान देने की बात है कि यहाँ रावण को आदिवासियों का आराध्य दिखाया गया है.
18-10-2018
आज प्रसिद्ध भाषा विज्ञानी और इतिहास के अन्वेषक डॉ. राजेंद्र प्रसाद सिंह ने फेसबुक पर एक नई बात बताई जिसे ज्यों का त्यों कापी पेस्ट कर रहा हूँ-
18-10-2018
आज प्रसिद्ध भाषा विज्ञानी और इतिहास के अन्वेषक डॉ. राजेंद्र प्रसाद सिंह ने फेसबुक पर एक नई बात बताई जिसे ज्यों का त्यों कापी पेस्ट कर रहा हूँ-
1953 की खुदाई से पता चला कि पाटलिपुत्र स्थित मौर्य राजप्रासाद अग्निकांड उर्फ लंकाकांड से नष्ट हुआ था।
खुदाई में मौर्य महल में जड़ी सोने की बेलें मिली हैं।
पाटलिपुत्र में लंका की भाँति चैत्यों को नष्ट किया गया और अशोकाराम उर्फ अशोक- वाटिका उजाड़ी गई।