मेघ जाति, मेघ रेस या अपने मूल को जानने के इच्छुक मेघों को - मेदे (Mede), मद्र (Madra), मेग (Meg), मेघ (Megh) - ये शब्द हमेशा आकर्षित और कुछ परेशान करते रहे हैं. वे सोचते रहे हैं कि क्या ये शब्द वास्तव में एक ही रेस, जाति समूह, जाति की ओर इशारा करते हैं? यहाँ स्पष्ट करना बेहतर होगा कि Ethnology जिसे हिंदी में 'मानव जाति विज्ञान' कहा जाता है उसी के आधार पर कई जातियों को 'जाति' शब्द के तहत कवर कर लिया जाता है. लेकिन वह 'जाति समूह' को प्रकट करता है. यह इसलिए यहाँ प्रासंगिक है क्योंकि एथनेलॉजी को इस प्रकार से परिभाषित किया जाता है- ‘विभिन्न लोगों की विशेषताओं और उनके बीच के अंतर और संबंधों का अध्ययन.’ इस दृष्टि से यहाँ हिंदी के 'जाति' शब्द का अर्थ 'जाति समूह' या भारतीय संदर्भ में 'रेस' से भी लेना चाहिए जिसके भीतर कई-कई जातियाँ बना ली गई हैं.
मेदे, मेदी, मेग, मेघ आदि शब्दों के बारे में श्री आर. एल. गोत्रा, डॉक्टर ध्यान सिंह और श्री ताराराम जी से कई बार बातचीत हुई. यहां-वहां से जो पढ़ा-जाना उसमें एक ही स्रोत पर कोई आलेख नहीं मिला था जो इस पहेली का समाधान करता हो. सारा पढ़ने का तो कोई दावा भी नहीं है. हालांकि यह महसूस होता रहा कि इन शब्दों के मौलिक अर्थ और सभी अर्थ छटाएँ इतिहास की पुस्तकों में नहीं हैं और उन्हें शास्त्रीय साहित्य जैसे- रामायण, महाभारत, पौराणिक कहानियों आदि के साथ मिलान करके देखना होगा. इस बारे में कर्नल तिलकराज जी से महत्वपूर्ण संकेत मिले कि इसे भाषा-विज्ञान की दृष्टि से भी परखना पड़ेगा ताकि इन शब्दों की यात्राओं को भली प्रकार से जाना जा सके. यह इतना सरल भी नहीं है कि जहाँ कहीं किसी जाति या जाति समूह के नाम में ‘म या M’ देखा तो उस पर टूट पड़े. इस प्रवृत्ति पर अंकुश के साथ एक गंभीर शोध सहित प्रामाणिक संदर्भों की ज़रूरत होती है. इतिहासकार की नज़र का होना तो ज़रूरी है ही.
तारा राम जी ने अभी हाल ही में लिखे अपने एक शोध-पत्र (Research Paper) की पीडीएफ भेजी है. यह आलेख इस बात की गवाही दे रहा है कि ये सभी शब्द (मेदे, मद्र , मेग , मेघ) मेघ प्रजाति (रेस) की ओर इंगित कर रहे हैं जो भारत के अलग-अलग भू-भागों में बसी हुई है. यह रेस कई जातियों में बँटी हुई है और ये जातियाँ एक दूसरे को पहचानती भी नहीं हैं. वे एक दूसरे को ज़रूर ही पहचाने, यह जरूरी नहीं क्योंकि भौगोलिक कारण अपनी जगह महत्वपूर्ण हैं. लेकिन ज्यों-ज्यों दुनिया सिमट रही है त्यों-त्यों आपसी पहचान बढ़ेगी, ऐसा लगता है. अस्तु, ताराराम जी ने जो अपना शोध-पत्र भेजा है उसमें विभिन्न इतिहासकारों और विद्वानों को संदर्भित किया है जो आलेख को विश्वसनीयता प्रदान करता है.
(इस आलेख में मेघों के राजनीतिक-सांस्कृतिक तंत्र पर चाणक्य (कौटिल्य) की टिप्पणी का उल्लेख है. इन दिनों इतिहास के जानकारों ने कौटिल्य यानि चाणक्य के ऐतिहासिक पात्र होने पर सवालिया निशान लगाए हैं. उसे ध्यान में रखते हुए यह कहना कठिन है कि चाणक्य की वो टिप्पणी कब की है).
ताराराम जी के आलेख का सार यहाँ है. मूल शोध-पत्र का पीडीएफ़ आप यहाँ इस लिंक → मेद, मद्र, मेग, मेघ - पर पढ़ सकते हैं.
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