"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


25 March 2011

Maatang Rishi (मातंग ऋषि)




ऋषि मातंग के जन्म के बारे में मैंने संभवतः एक वेब साइट पर पढ़ा था कि बारमती पंथ के साहित्य के अनुसार उनका समय काल 800 ईसा बाद के आसपास का है. इन दिनों शेल्फ़ में रखे एक प्रकाशन को उलट-पलट रहा था तभी एक शब्द मेरी आँखों के सामने से ग़ुज़रा जिस पर मुझे लौटना पड़ा. बाणभट्ट की पुस्तक कादंबरी का उल्लेख था जिसमें मातंग जाति की एक कन्या के अलौकिक रूप का बहुत ही सुंदर वर्णन था. पुनः पीछे से पढ़ना शुरू किया और हैरानगी हुई कि उसी प्रसंग में मातंग का उल्लेख दो बार हुआ था. आगे चल कर बाण के जीवन काल का उल्लेख 600 ईसा बाद के आसपास का होना लिखा था. 

तुरत नवीन भोइया जी को फोन किया और इसके बारे में बताया. यह भी बताया कि इसके बारे में स्वयं डॉ अंबेडकर ने अपनी एक पुस्तक में लिखा है. उसी प्रकाशन के संदर्भित पृष्ठों को स्कैन कर के यहाँ दे रहा हूँ. गुजरात में रहने वाले मेघ (जिन्हें मेघवार या माहेश्वरी मेघवार कहा जाता है) अपने साहित्य में तदनुसार विवेचनात्मक शोध कर सकते हैं. 

यह लिख देना भी प्रासंगिक होगा कि मातंग का अर्थ मेघ या मेघ श्याम ही है. संभव है उन दिनों बिहार या मध्य भारतीय क्षेत्रों में मेघ के बजाय मातंग शब्द का प्रचलन हुआ हो. यह भी देखने योग्य है कि इन पृष्ठों में मातंग जातिशब्द का प्रयोग किया गया है. इससे स्पष्ट है कि मातंग का जीवन काल इससे काफी पूर्व रहा होगा क्योंकि कोई जाति एक दिन में नहीं बनती. (हालाँकि भारत में यह भी हुआ है. किसी बात पर एक राजा ने तीस हज़ार शूद्रों को एकत्रित करके उन्हें ब्राह्मण घोषित कर दिया था. वे तीस हज़ारी ब्राह्मण कहलाए.)

Matang Caste

Origins of Meghwar and Megh Rikh









21 March 2011

Religion of SCs and STs

Following lines have been contributed by our brother Mr. Navin from Gujrat:-

A study of religions practiced by Scheduled Caste communities in India suggests that all of them have preserved their ancient religion in one form or the other. Small panths in the states of Rajasthan, Madhya Pradesh, Gujarat, Punjab, etc. still exists in different sects. Hitherto, they have not congregated with each other due to lack of universal appeal. All these small sects have one thing in common that their religion possesses the strong base of Buddhism in their teachings. It is a matter of regret that despite our preservation of ancient religious beliefs, although in the smaller forms, we have not taken any effort to unite all these sects into a sole religion.

Dr. Ambedkar’s vision of selecting Buddhism is based on the firm belief that it is a religion of India as Gautam Buddha was born in India and preached his Dhamma for the common masses. Secondly, since Buddhism is practiced in China, Japan, Korea, Burma and other South-East Asian countries, Dr. Ambedkar thought of taking support from these countries for revival of Buddhism in India. However, untimely death of Dr. Ambedkar in the year 1956 was a major setback in this direction. Dr. Ambedkar’s dream was to unite entire lower caste communities into one class on a religious footing. Present day Buddhism in India has just mere become a new branch of Buddhism to be called as ‘Bhimyaan’.

In this scenario, it is inevitable for us to find a solution to this great vision of Dr. Ambedkar for which indepth religious study is required to be attended on war footing. Presently, we have Kabir Panth, Dadu Panth, Barmati Panth and various other sects. As said above, all these Panths have buddhist impact in their religions, we must select a new religion of depressed classes of India taking either selecting one near to Buddhism or to assimilate all religions into one.

Thanks & Regards,

Yours
Navin K. Bhoiya



17 March 2011

Scheduled Caste’s as a Separate Religious Identity

This post was very big in size and needed to be shifted. It has been archived at the link given below:-

Scheduled Castes' as a Separate Religious Identity Part-1


Sdheduled Castes as a Separate Religious Identity Part-2



Comments can be given on the link given above. Sorry for the inconvenience.


08 March 2011

Aboriginals (tribes) of Hadappan Civilization - History Distorted in computer labs



At Meghnet and many more sites and blogs Indus Valley Civilization, most popularly known as Hadappan Civilization,  has been mentioned very frequently. It is about aboriginals of this great civilization presently rotting in interior of India. They are identified as scheduled castes, scheduled tribes and other backward castes (SCs, STs and OBCs) living in India. They call themselves 'Mulnivasis or Moolnivasis' of India. They have many things put on stake over such a great civilization which is said to have disappeared suddenly whereas disappearing theory was not the truth.  Much of their literature, history, religion etc. have been destroyed systematically. It includes distortions in manuscripts, defacement of inscriptions and figures on rocks. People strongly feel that many studies have been sponsored to prove that Aryan invasion never occurred. Now computer labs are being used for the purpose and there are very serious (brahmanical) efforts to make distortions in the images pertaining to Hadappan Civilization. See this link to believe it. It will help you understand the truth. May be there are many more efforts of this kind still going on.


Search for 'Horseplay in Harappa' on google
Hindi translation
मेघनेट (Meghnet) और कई अन्य साइटों और ब्लॉगों पर सिंधु घाटी सभ्यता, जिसे अब अधिकतर हडप्पन (Hadappan) सभ्यता कहा जाता है, का बहुत बार उल्लेख किया जाता है. इस महान सभ्यता का संबंध वर्तमान में भारत के भीतरी इलाकों में मानवाधिकारों से दूर रह रहे मूलनिवासियों से है. इन्हें भारत में रहने वाली अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ी जातियों के रूप में पहचाना जाता है. ये भारत के 'मूलनिवासी' हैं. उक्त महान सभ्यता के बहाने से इनका बहुत कुछ दाँव पर है. कहा जाता है कि वह सभ्यता अचानक गायब या नष्ट हो गई थी जबकि वह सिद्धांत सच के सामने कहीं टिकता नहीं दिखता. मूलनिवासियों के साहित्य, इतिहास, धर्म आदि को क्रमिक तरीके से नष्ट किया गया, संबंधित पांडुलिपियों में प्रक्षिप्त अंश डाले गए  और शिलालेखों को विकृत किया गया. ऐसे कई अध्ययन प्रायोजित किए गए हैं जिनसे साबित किया जा सके कि आर्य आक्रमण कभी हुआ ही नहीं. कंप्यूटर लैब का प्रयोग इस प्रयोजन से किया गया और हडप्पन सभ्यता से संबंधित चित्रों को विकृत करने के लिए बहुत गंभीर (ब्राह्मणवादी) प्रयास किए गए. विश्वास न हो तो नीचे दिए लिंक पर देखें. यह सच्चाई को समझने में आपकी मदद करेगा. हो सकता है ऐसे और भी कई प्रयास किए गए हों/किए जा रहे हों.



This image is becoming new symbol of aboriginals
(Mulnivasis) of Indus Valley Civilization


See this link. Horses were brought by Aryans to Indus Valley region: 




02 March 2011

Kabir Gyan Divas - Give people a pleasent climate - कबीर ज्ञान दिवस - लोगों को सुहावना मौसम दें – एक सुझाव




The birth anniversary of Satguru Kabir Saheb will be falling on 15 June. Preparations are on. Last year I saw those celebrations in Jammu
जून 15 को सत्गुरु कबीर साहेब का जन्मदिन आने वाला है. तैयारियाँ चल रही हैं. पिछले वर्ष मैंने जम्मू में यह उत्सव देखा था.
It was scorching sun on the head - hands held banners of 'Jai Kabir'
सिर पर थी धूप - और हाथों में जय कबीर के झंडे
These little girls took the sun on their cheeks
इन्होंने तो धूप को गालों पर लिया
Children remembered to smile in front of camera.
कड़ी धूप मे ये बच्चे कैमरा के सामने मुस्कराना नहीं भूले
 

ऐसे बड़े समागम के लिए जून का मौसम बहुत गर्म था. 43 डिग्री तापमान में सुबह 9 से सायं 4 बजे तक लगभग पाँच हजार लोगों ने सहभागिता की. लगभग तीन हज़ार लोग लगातार बैठे रहे. वे म्युनिसपैलिटी का पानी पी रहे थे या पानी की बोतलें 10-12 बारह रुपए में खरीद-खरीद कर पी रहे थे. उनकी श्रद्धा और सहनशीलता की प्रशंसा करनी होगी. (हालाँकि उसकी परीक्षा नहीं ली जानी चाहिए.) ज़ाहिर है कई लोग मौसम के कारण घर से नहीं निकले. जितनी शिरक़त संभव थी उससे कम रही. तपिश के मौसम में शिरकत के बाद कितनों की सेहत पर बुरा असर हुआ इसका कोई सर्वे तो होता नहीं.

कई महापुरुषों के जन्मदिन मई-जून में डाल दिए गए हैं. गर्मी हतोत्साहित करने वाला फैक्टर है. उस दिन सिर्फ़ छबीलें सूट कर सकती हैं.

मुख्य समारोह अक्तूबर में पूर्णमासी से पाँच-छः दिन पहले या पाँच-छः दिन बाद में आ रहे रविवार को मनाना बेहतर होता है. यह समारोह कबीर ज्ञान दिवस के रूप में मनाया जा सकता है. पूर्णिमा से तीन दिन पहले से लेकर पूर्णिमा तक का समय रखें.

मौसमी त्यौहारों को छोड़ शेष सभी समारोहों को सुहावना मौसम देने का प्रयास करें. इससे जनता में उत्साह बढ़ेगा.

कृपया लोगों की श्रद्धा की परीक्षा न लें. यह हानिकारक है.