ऋषि मातंग के जन्म के बारे में मैंने संभवतः एक वेब साइट पर पढ़ा था कि बारमती पंथ के साहित्य के अनुसार उनका समय काल 800 ईसा बाद के आसपास का है. इन दिनों शेल्फ़ में रखे एक प्रकाशन को उलट-पलट रहा था तभी एक शब्द मेरी आँखों के सामने से ग़ुज़रा जिस पर मुझे लौटना पड़ा. बाणभट्ट की पुस्तक ‘कादंबरी’ का उल्लेख था जिसमें मातंग जाति की एक कन्या के अलौकिक रूप का बहुत ही सुंदर वर्णन था. पुनः पीछे से पढ़ना शुरू किया और हैरानगी हुई कि उसी प्रसंग में मातंग का उल्लेख दो बार हुआ था. आगे चल कर बाण के जीवन काल का उल्लेख 600 ईसा बाद के आसपास का होना लिखा था.
तुरत नवीन भोइया जी को फोन किया और इसके बारे में बताया. यह भी बताया कि इसके बारे में स्वयं डॉ अंबेडकर ने अपनी एक पुस्तक में लिखा है. उसी प्रकाशन के संदर्भित पृष्ठों को स्कैन कर के यहाँ दे रहा हूँ. गुजरात में रहने वाले मेघ (जिन्हें मेघवार या माहेश्वरी मेघवार कहा जाता है) अपने साहित्य में तदनुसार विवेचनात्मक शोध कर सकते हैं.
यह लिख देना भी प्रासंगिक होगा कि ‘मातंग’ का अर्थ ‘मेघ’ या ‘मेघ श्याम’ ही है. संभव है उन दिनों बिहार या मध्य भारतीय क्षेत्रों में ‘मेघ’ के बजाय ‘मातंग’ शब्द का प्रचलन हुआ हो. यह भी देखने योग्य है कि इन पृष्ठों में ‘मातंग जाति’ शब्द का प्रयोग किया गया है. इससे स्पष्ट है कि मातंग का जीवन काल इससे काफी पूर्व रहा होगा क्योंकि कोई जाति एक दिन में नहीं बनती. (हालाँकि भारत में यह भी हुआ है. किसी बात पर एक राजा ने तीस हज़ार शूद्रों को एकत्रित करके उन्हें ब्राह्मण घोषित कर दिया था. वे तीस हज़ारी ब्राह्मण कहलाए.)
Matang Caste
Origins of Meghwar and Megh Rikh
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