पिछले 65 वर्षों से मेघ कांग्रेस की दरियों पर बैठते रहे हैं.
अंग्रेज़ों से सत्ता हस्तांतरित होकर कांग्रेसियों के पास आई उस समय कांग्रेस का कोई सशक्त विकल्प नहीं था. लेकिन कांग्रेस ने इन्हें कभी ढंग से अपने साथ बिठाया भी नहीं. इनके पास पैसा और पार्टी फंड नहीं था. केवल वोट था जिसे सस्ते
में लेकर कांग्रेस ने आराम से बैठी रही.
जम्मू-कश्मीर में मेघ समुदाय के सामाजिक स्तर को बेहतर बनाने में राजा
हरि सिंह और शेख़ अब्दुल्ला की बहुत बड़ी भूमिका रही.
भारत विभाजन के बाद स्यालकोट से जालंधर और पंजाब के अन्य शहरों में आकर बसे मेघों
को दोहरी मार पड़ी. वहाँ अंग्रेज़ों के राज में इनके लिए जो रोज़गार के अवसर बने
थे वे अचानक समाप्त हो गए. भारत में आकर फिर से इन्हें न केवल प्रतिदिन की रोटी के
लिए जूझना पड़ा बल्कि जात-पात को नई जगह और नए माहौल में झेलना पड़ा. यह मानना
इनकी नियति थी कि जिस कांग्रेस को सत्ता दी गई है शायद वही इनकी नैया को पार
लगाएगी. अंग्रेज़ों द्वारा शुरू की गई नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था का श्रेय कांग्रेस को ट्रांसफर हो गया.
इस बीच भारत की राजनीति का चेहरा बदल गया है. जनसंघ और भाजपा हिंदूवादी विचारधारा के साथ प्रस्तुत थीं जिसे लेकर कई जातियाँ संशय में रही हैं.
मुझे याद है कि 1977 में आपातकाल के बाद जो चुनाव हुए थे उसमें श्री मनमोहन कालिया के प्रयासों से जालंधर
के भार्गव कैंप के एक सामाजिक कार्यकर्ता श्री रोशन लाल भगत को जनता पार्टी का टिकट
मिला. देश भर में जनता पार्टी को अभूतपूर्व समर्थन मिला लेकिन श्री रोशन लाल मेघों के गढ़ भार्गव कैंप से चुनाव
हार गए.
अब तक के समय में काफी परिवर्तन हुआ है. अपने सेवा क्षेत्र
के छोटे-छोटे उद्योग धंधों और लघु उद्योगों के बल पर कई मेघों ने आर्थिक विकास किया है. भाजपा ने व्यापारियों और छोटे दूकानदारों की पार्टी होने की छवि अर्जित की है. इसी
सिलसिले में इसने मेघ समुदाय के उद्यमियों को चिह्नित किया है.
वर्ष 1997, 2007 और 2012 के चुनाव में जालंधर वेस्ट से भाजपा ने आरएसएस काडर से आए
श्री चूनी लाल भगत को चुना और भाजपा का टिकट दिया. वे अजेय समझे जाने वाले
कांग्रेसी उम्मीदवार को हरा कर चुनाव जीत गए. वे तीन बार चुनाव जीते.
2011 में शिरोमणी अकाली दल और भाजपा गठबंधन के समर्थन से वे पंजाब विधान सभा के डिप्टी
स्पीकर बने. वर्ष 2012 के पंजाब चुनावों में वे विजयी हुए और पंजाब विधान सभा में उन्हें
भाजपा के विधायक दल का नेता बनाया गया. केबिनेट मंत्री के तौर पर उन्हें लोकल बॉडीज़ और मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च मंत्रालय
दिया गया. भाजपा और शिरोमणी अकाली दल गठबंधन की यह पहल ध्यान खींचती है.
उधर राजस्थान से श्री कैलाश मेघवाल को भाजपा का
समर्थन मिला और केंद्र में भाजपा शासन के दौरान वे सन् 2003 से 2004 तक सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय के राज्यमंत्री रहे. वे 1975 से 1977 तक आपातकाल के दौरान जेल काट चुके हैं. श्री अर्जुन मेघवाल (जो
पूर्व में आईएएस अधिकारी थे) आरएसएस काडर से भाजपा में आए और लोकसभा के बहुत सक्रिय सदस्य हैं. राजस्थान में तीन बार विधायक रह चुके और एक बार राज्य मंत्री,
आयुर्वेद,
रह चुके श्री अचलाराम मेघवाल को भारतीय जनता मजदूर महासंघ, पाली जिला के
अध्यक्ष की जिम्मेवारी सौंपी गई है. श्री मेघवाल पाली जिले में भारतीय जनता पार्टी
के संस्थापक रहे हैं. पंजाब में श्री कीमती भगत, जो आरएसएस काडर से आए हैं, को भाजपा
ने गोरक्षा समिति का चेयरमैन बनाया है. ऐसे ही कई मेघों के नाम हैं जो
अब भाजपा से जुड़े हैं.
मेघों के लिए इन बातों से यह
समझना आसान हो सकता है कि भाजपा ने भारत के मेघों (वृहद्तर रूप में अनुसूचित जातियों और
जनजातियों) में अपनी पैठ बनाई है जिसने भाजपा की छवि को बदला है और भाजपा के ज़रिए राजनीति में इन समुदायों
की सहभागिता बढ़ी है.
इतना होने के बावजूद अति पिछड़े मेघ समुदायों के
लिए यह एक मुद्दा बना रहेगा कि उनके पास देने के लिए पार्टी फंड कितना है. राजनीति पैसे के
बिना नहीं चलती. समुदायों के भीतर ऐसे फंड बनाने पड़ेंगे.
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Arjun Meghwal, BJP, Raj. |
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Kailash Meghwal, BJP, Raj. |
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Chuni Lal Bhagat, BJP, Punjab |
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Achalaram Meghwal, BJP, Raj. |
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Kimti Bhagat, BJP, Punjab |