(कल मेघ समाज का नाम रोशन करने वाली आईएएस अधिकारी स्नेह लता कुमार से काफी लंबी बातचीत हुई. काफी देर से जानता हूं कि अपने मेघ समाज के बारे में उनकी सोच में एक नया नज़रिया है जिस पर ध्यान दिया जाना बहुत जरूरी है. यह पोस्ट उनसे हुई बातचीत के बाद लिखी गई है.)
Sneh Lata Kumar |
पंजाब में बसे मेघों के लिए वह सवाल और भी अहम हो जाता है क्यों कि सियालककोट (पाकिस्तान) से आए हुए उन्हें अभी सत्तर बरस हुए हैं और वे अपने बुज़ुर्गों से देश के बंटवारे की दुख देने वाली बातें सुनते हैं. लेकिन उनकी उत्सुकता इस बात में भी रहती है कि उन्हें ऐसे हालात से कितनी बार गुज़रना पड़ा, उनके वंशकर्ता पुरखों की जड़े कहाँ थीं? धरती पर कहाँ उनके पाँव पड़े, कहाँ से उखड़े, कहाँ जमे आदि? यह सवाल इस नजरिए से ज़रूरी है क्योंकि हाल ही में किसी ने अनजाने मे या गलती से मेघ भगतों को रिफ़्यूजी (शरणार्थी) कहा था जो सिरे से गलत है.
भारत के अन्य कई समुदायों की तरह मेघ समुदाय के लोग भी समय-समय पर एक से दूसरी जगह गए हैं. मेघों के जम्मू से सियालकोट जाने की बात डॉक्टर ध्यान सिंह के शोधग्रंथ में उल्लिखित है. उन्होंने यह महत्वपूर्ण बात रिकार्ड की है कि मेघ समुदाय के बहुत से लोग रोजगार की तलाश में सियालकोट की ओर गए और वहाँ बस भी गए. वहाँ रोजगार के अधिक अवसर और नियमित आय के बेहतर साधन उपलब्ध थे. उनका वहाँ जाना एक मानवीय आवश्यकता थी और स्वभाविक भी. इक्का-दुक्का परिवारों ने अन्य कारणों से जम्मू रियासत से बाहर जा कर अंगरेज़ों द्वारा शासित सियालकोट के इलाके में पनाह ली.
Dr. Dhian Singh, Ph.D. |
1947 में भारत-पाकिस्तान का विभाजन हुआ. पाकिस्तान एक इस्लामिक राष्ट्र बन गया. सामान्य मेघ (जिनका इस्लाम से केवल पड़ोसी का रिश्ता था) भारत में आ गए और कई शहरों, क़सबों और गाँवों में बसे. अपनी ज़मीनों आदि के बदले भारत में उन्हें कुछ क्लेम या ज़मीन मिल गई. शुरुआती संघर्ष के बाद उनका सामान्य जीवन शुरू हुआ.
कुछ मेघों का मानना है कि उनका इतिहास भारत विभाजन के बाद पंजाब में आ बसने के बाद ही शुरू होता है या उसे उसके बाद शुरू हुआ माना जाना चाहिए. लेकिन इसका अर्थ यह होगा कि भारत विभाजन से पहले यह समुदाय कहीं था ही नहीं और अचानक पंजाब में उभर आया था. जैसा कि ऊपर कहा गया है मेघ रोज़गार की तलाश में जम्मू से सियालकोट गए थे. इस नज़रिए से नहीं कहा जा सकता कि इनका मूलस्थान सियालकोट था. आज भी इनकी अधिकतर जनसंख्या जम्मू में है. इतिहास के ज्ञात तथ्यों के अनुसार मेघों का मूलस्थान जम्मू-कश्मीर का क्षेत्र है जहाँ ये अधिक संख्या में बसे हैं. उसे डुग्गर का क्षेत्र कहा जाता है. बहुत से मेघ उसी क्षेत्र के नाम पर अपना सरनेम 'डोगरा' लिखते हैं. लॉर्ड कन्निंघम की मानें तो ‘त्रिगर्त’ शब्द के तहत डुग्गर क्षेत्र जालंधर तक फैला है. जालंधर में रहने वाले कुछ मेघ अपने नाम के साथ 'डोगरा' लगाते हैं. ‘सियालकोटी मेघ’ या ‘हम सियालकोट से आए थे’ जैसे शब्द अर्थहीन और तर्कहीन है.
मेघ भगत जम्मू-कश्मीर के हैं और वही उनका तथ्यात्मक मूलस्थान है. क्षेत्र के आधार पर वे डोगरे तो हैं ही.
मेघ भगत जम्मू-कश्मीर के हैं और वही उनका तथ्यात्मक मूलस्थान है. क्षेत्र के आधार पर वे डोगरे तो हैं ही.