संभव है कि यह संयोग
मात्र हो कि स्यालकोट से आए मेघ भगतों को जालंधर (एक शूद्र ऋषि के नाम पर बने शहर)
में बसाया गया. फिर जहाँ उनके लिए कच्ची बैरकें बनीं उस स्थान का नाम भार्गव कैंप,
गाँधी कैंप आदि रखा गया. अब काफी वर्ष बीत चुके हैं और ये कैंप पूरी तरह से मेघों
के साथ जुड़ गए हैं. भार्गव कैंप में कभी एक स्कूल खुला था जिसे आर्य समाज के नाम
से खोला गया था. ज़ाहिर था कि इस स्कूल का नाम मेघ समुदाय के नाम से “मेघ हाई स्कूल” रखने
में किसी की कोई रुचि नहीं थी.
देश को आज़ाद हुए 64
वर्ष से ऊपर हो चुके हैं. पंजाब में इतनी जनसंख्या होने के बावजूद मेघ भगतों के
नाम से कोई स्थान नहीं है. ले दे के भगत बुड्डा मल के नाम से एक ग्राऊँड थी जहाँ
शनि मंदिर बना दिया गया है.
क्या अब यह संभव है
कि सभी वार्ड्स में हस्ताक्षर मुहिम चला कर भार्गव कैंप का नाम बदल कर “मेघ नगर” कराने के प्रयास
किए जाएँ? इससे समुदाय को ज़बरदस्त पहचान मिलती है.