"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


21 January 2014

Who created the creator - ब्रह्मा को किसने बनाया


बचपन में मेरे पूछने पर कि दुनिया किसने बनाई है पिता जी ने बताया था कि दुनिया को ब्रह्मा ने बनाया है. तो मैंने बालसुलभ बुद्धि से पूछा था कि तब ब्रह्मा को किसने बनाया था? फेसबुक पर गोत्रा जी की एक पोस्ट से उस सवाल का जवाब आया

ब्राह्मण ने पहले ब्रह्मा बना लिया फिर खुद को उसके मुँह से निकला बता दिया और शूद्र (देश के मूलनिवासी) को उसके पैरों से निकला बता दिया. ब्राह्मणीकल सोप ऑपेरा यहीं नहीं रुकता. जन्म से पुनर्जन्म निकाल लिया और मूलनिवासियों के दिमाग़ को पुनर्जन्म और कर्म सिद्धांत की कहानियों के गहरे भँवर में डाल दिया जिसमें वे आज तक असुर और राक्षस बन कर खुशी से डुबकियाँ लगा रहे हैं. वे इस भँवर को ही अपनी किस्मत और धर्म मान बैठे हैं. कबीर ने इन्हीं के लिए सारी आध्यात्मिक और धार्मिक शिक्षा को बदला जिससे ये सभी संतुष्ट होते हैं लेकिन भँवर से नहीं निकलना चाहते.

समय आ गया है कि वे ईश्वर, देवी, देवता, पुनर्जन्म और उस पर आधारित कर्म सिद्धांत के इस मकड़जाल को समझें और उससे मुक्ति पाएँ. देश के मूलनिवासियों की समृद्धि और विकास का रास्ता इसके आगे है.

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15 January 2014

Not 'downtrodden' but 'aborigines' - 'दलित' नहीं 'मूलनिवासी'

इस विषय में अपनी बात कह सकता हूँ कि शूद्र और दलित शब्द से पीछा छुड़ाना अजा, अजजा और अपिव के लिए कठिन हो गया है तब ये क्या करें?

फेसबुक पर एक सज्जन ने सुझाया है कि दलित जैसे शब्द का प्रयोग न करके ये जातियाँ अपने लिए मूलनिवासी शब्द का प्रयोग करें. मुझे यह सुझाव ठीक प्रतीत होता है क्योंकि यह ऐतिहासिक रूप से सार्थक है.

02 January 2014

Hindutva and Manusmriti - हिंदुत्व और मनुस्मृति

जहाँ तक 'हिंदू' शब्द का सवाल है यह शब्द दलितों के लिए जात-पात का बुरा संकेत है और ब्राह्मणों के लिए 'मनुस्मृति' को जारी रखने का खुशी भरा एक संकेत. एक मान्य-सी परिभाषा के अनुसार 'हिंदू वह है जो वेदों में आस्था रखता है' - यहाँ तक तो चलेगा (हालाँकि मैं इसे नहीं मानता) लेकिन मनुस्मृति को हिंदुओं का धर्मग्रंथ मानने में दलितों और शूद्रों को केवल आपत्ति ही हो सकती है. आजकल भारत में जिस 'हिंदूराष्ट्र' को बनाने की कवायद हो रही है उसमें 'मनुस्मृति' का अहि-नाग पहले ही कुंडली मारे बैठा है.

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