.....उससे
पहले एक कानून था कि यदि कोई शराब पीकर किसी की हत्या कर दे तो उसे कम सज़ा दी
जाती थी क्योंकि माना जाता था कि नशे में होने के कारण उससे ग़लती हो गई.
यह
कानून पीने के आदी अंग्रेज़ों ने बनाया था. ज़ाहिर है उन्होंने अपने भले के लिए बनाया था.
हत्या या कई अन्य अपराध पियक्कड़ अंग्रेज़ों से ‘हो’ जाते थे. उनके कारकुन भी इसी मर्ज़
के शिकार थे. लेकिन इस कानून के कारण वे दोनों काफी कम सज़ा के भागी होते थे. कानून की किताब ज़िंदाबाद जिसे अंग्रेज़ जाते-जाते हमें दे गए और हमने उसे अपने सिर पर रख लिया. चलो जी हम आज़ाद हो गए.
आज टीवी पर खबर थी कि एक बाप ने अपनी नन्हीं-सी बेटी को शराब के नशे में नीचे
पटक दिया और फिर उसे मरा समझ नाले में डाल आया. अरे वाह!! क्या बात है सर जी!! उसे पक्की उम्मीद थी कि वह सस्ते में छूट जाएगा
क्योंकि मेरे देश का प्रत्येक पियक्कड़ अंग्रेज़ों के उक्त कानून को जानता है.
उसका बच्चा
ReplyDeleteक्यों बोलेगा कोई सरकार- वरकार!
सच्ची बात है. अब इसका बच्चा 'माई-बाप' तो नहीं ही बोलेगा.
Deletenice post.
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteबिलकुल सही सर जी ! आज भी कई क्षेत्रो में हम अंग्रेजो के बनाये कानून ही रट रहे है !
ReplyDeleteगंभीर विषय पर सार्थक पोस्ट .......
ReplyDeleteकई क्षेत्रों नहीं। भारतीय दंड संहिता 1860 से लागू है, वही चलती है यानी पूरा कानून ही समझिए।
ReplyDeleteपुलिस की स्थापना भी उसी समय हुई।
आप सही कह रहे हैं. भारतीय पुलिस की ट्रेनिंग अंग्रेज़ों के कानून के अनुसार ही होती है :))
Deleteकल 13/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
Vijai Mathur ✆ to me
ReplyDeleteजिस प्रकार एडमंड बर्क के नेतृत्व मे ब्रिटेन मे कानून सुधार आंदोलन चला था और वहाँ क़ानूनों मे सुधार हुआ था। नकल करने के आदि हम भारतीयों को भी उसी तरह 'कानून सुधार आंदोलन' चला कर सभी कानूनों को इस प्रकार सुधार लेना चाहिए कि उनसे गुलामी की सारी बू समाप्त हो जाये।
आपसे पूरी तरह सहमत हूँ माथुर साहब. मुश्किल यह है हमारे सत्ताधारी इन गुलामियत स्थापित करने वाले कानूनों के साथ ही स्वयं को सुरक्षित महसूस करते हैं. पता नहीं स्वतंत्रता की पवित्र भावना के साथ ये देश की जनता को कब देखना चाहेंगे.
DeleteA very well-written post. I read and liked the post and have also bookmarked you. All the best for future endeavors
ReplyDeleteIT Company India
आपका धन्यवाद.
Deletethere r so many loop holes in our legal system and ppl never leave a chance to tyake advantage of it
ReplyDeleteIn north we celebrate after defying law. :))
Deleteआदरणीय भूषण जी कहाँ बदल पाए हम अपना कानून चोला नया है आत्मा वही पुरानी.सब वही एक्ट गुलामी के कारनामे भी तो वैसे ही --सार्थक लेख ..मन को छूता हुआ ..जय श्री राधे
ReplyDeleteभ्रमर ५
आभार.
Deleteतभी तो हम अभी तक मानसिक रूप से गुलाम ही हैं ...
ReplyDeleteभले ही आज हम आजाद है पर मानसिक रुप से तो गुलाम ही है..इसी लिए कुछ नहीं बदल पारहे है......सार्थक पोस्ट..
ReplyDeleteRajesh Kumari ✆ to me
ReplyDeleteभूषण जी आप सच कह रहे हैं हम आज भी अंग्रेजों के बनाए ढर्रों पर ही चल रहे हैं चाहे क़ानून की बात ले लो या रक्षा मंत्रालय की बात ले लो अंग्रेज चले तो गए पर अपने भूत यहीं छोड़ गए |
Pallavi ✆ to me
ReplyDeleteगंभीर विषय पर बहुत ही आसान शब्दों में सार्थक पोस्ट....
यह सड़े गले कानून कब जायेंगे ??
ReplyDeleteआभार जागरूक पोस्ट के लिए भाई जी !
सार्थक आलेख. आजकल तो कानून को लोग अपने पॉकेट में रखते हैं.
ReplyDeleteबिलकुल सही कह रहे है श्री भारत जी. हम आज भी केवल प्रत्यक्ष रूप से आजाद हुए है. मानसिक रूप से से तो आज भी गुलाम है. अंग्रेजो के तीन virus- चाय, क्रिकेट और अंग्रेजी हमारे देश को खोकला कर रहे है. आने वाले कुछ सालो में पुरुषो का पारंपरिक परिधान धोती तो फोटो में ही दिखाई देगी.
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