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1947 में भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान से विस्थापित होकर भारत आए लोग एक रेलगाड़ी का नाम बहुत लेते हैं- ‘जस्सड़ां वाली गड्डी.’ इस गाड़ी में सवार लगभग सभी लोगों को मार डाला गया था. इसकी प्रतिक्रिया में लाशों से भरी दो गाड़ियाँ भारत से पाकिस्तान भेजी गईं. इनमें से एक गाड़ी की पृष्ठभूमि में खुशवंत सिंह (Khushwant Singh) का उपन्यास Train to Pakistan लिखा गया. जस्सड़ां वाली गाड़ी को Train from Pakistan कह सकते हैं. मैंने एक दिन यों ही अपनी सासु माँ से पूछा कि आपको जस्सड़ां वाली गाड़ी के बारे में कुछ जानकारी है तो बोली, “हाँ, है. हम उसी में आए थे”. इसके बाद जो कुछ उन्होंने बताया वह मैंने समेकित किया है. जब यह घटना घटी तब वे लगभग सोलह वर्ष की थीं.
मेरी सासु माँ का नाम ध्यान देवी है और वे स्यालकोट के मोहल्ला प्रकाशनगर, गाँव लुट्टर की रहने
वाली हैं. पिता का नाम हाड़ी राम और माता का नाम वीरो देई था.
भारत विभाजन के समय जब यह परिवार स्यालकोट से चला तो पहले स्यालकोट छावनी में नौ दिन रुका. इस परिवार में ध्यान देवी के माता-पिता के अतिरिक्त देसराज (भाई), ज्ञान देवी (बहन), आज्ञावंती (भाभी), प्रकाश (भाई), महेश कुमार (भाई, आयु 3 वर्ष), एक नवजात बहन कांता (आयु 20 दिन) और दादी थीं. स्यालकोट छावनी से गाड़ी पकड़ी. गाड़ी ठसाठस भरी हुई थी. दरवाज़ों-खिड़कियों और छतों पर भी लोग लटके हुए थे. वहाँ के अच्छे इंसानों ने सभी यात्रियों को रास्ते के लिए संतरे दे कर विदा किया. ध्यान देवी ने भी दो-तीन संतरे खीसे में डाल लिए. जस्सड़ स्टेशन नारोवाल और डेरा बाबा नानक के बीच पड़ता था और डेरा बाबा नानक से पहले रावी नदी पर एक पुल था जिसे पैदल पार करना था. जस्सड़ में मुसलमानों का एक समूह आया और आऊटर सिग्नल पर गाड़ी रोक दी गई और उसे चलने नहीं दिया. ध्यान देवी बताती हैं कि यह समूह गाड़ी में सवार एक महिला शीलू (शीला) को भारत नहीं आने दे रहा था क्यों कि शादी से पूर्व उसका एक मुसलमान लड़के से प्रेम रह चुका था. शीलू के सिख पति और अन्य संबंधियों द्वारा ज़ोर ज़बरदस्ती का विरोध करना मारकाट की वजह बन गया. हत्याओं का दौर शुरू हुआ और लूटपाट भी मची. इंसानियत कोने में दुबकी रही. धर्म-मज़हब हमेशा की तरह अप्रभावी हो गए. पुल आने से पहले ही लोगों को मारने का सिलसिला शुरू कर दिया गया. मारने की एक रणनीति थी. युवाओं को काट कर मारा गया, बूढ़ों और बच्चों को दरिया में फेंका गया. युवतियों को हाँक कर ले जाया गया. एक-एक युवती और 15-15 हाँकने वाले. उनकी दिशा छीन ली गई. ध्यान देवी उन्हें और तब के वातावरण को याद करती हैं....भगदड़ ही भगदड़....
ये जो थोड़े से लोग बच गए ये जैसे-तैसे पुल पार कर
गए. दादी पुल पार करके नहीं आई. शायद मार डाली गई. अपनाई गई रणनीति के अनुसार युवा भाई प्रकाश को काट कर
दरिया में फेंका गया. तीन साल के भाई महेश को जीवित दरिया में फेंका गया. माँ वीरो
पर गंडासे से हमला हुआ. वह मुँह और सिर पर चोट खा कर गिर गई. लेकिन वह समय पीछे
मुड़ कर मदद करने का नहीं था. जो पीछे छूट गया उसके मरा होने या ज़िंदा होने की
सुध लेने की सुध किसी को नहीं थी. केवल एक दिशा का पता था कि उधर जाना है.
पुल पार करके सुरक्षित जगह पहुँचे
लोगों को अब इंतज़ार करने का कुछ समय मिला. वे पीछे देखने लगे कि शायद कोई बचा हुआ
संबंधी पुल पर आता दिख जाए. जो ज़िंदा बच गए थे उन बेघरों को अपनी आने वाली समस्याएँ दिखने
और सताने लगीं.
16 वर्षीय ध्यान देवी ने अपनी 20 दिन की बहन को उठाया हुआ था और बीच-बीच में उसे संतरे का रस दे कर चुप
कराती रही. उसकी माँ के ज़िंदा होने का पता नहीं था. पिता की चिंता थी कि इतनी
छोटी बच्ची को कहाँ लिए फिरेंगे. कौन पालेगा. नन्हें शिशु को ध्यान देवी से
ले कर दरिया में फेंकने की तैयारी कई बार की गई. परंतु ध्यान देवी सब समझती थी. हर बार वह बहन को किसी बहाने वापस ले लेती और संतरे का
रस देती रही. शाम होते-होते पुल से कुछ लोग आते दिखे. ध्यान देवी को अपनी माँ घायल
अवस्था में आती दिखाई दी. फिर दरिया में फेंका गया छोटा भाई महेश भी आता दिखा. तीन
वर्षीय महेश अपने गाँव की दो अन्य बच्चियों को अपनी छोटी-छोटी उँगलियाँ
थमा कर साथ ला रहा था. घटना के तौर पर इतना काफी था. लेकिन नहीं.....
सासु माँ की कहानी तीन घंटे चली. शीलू कौन थी जिसका नितांत निजी जीवन हज़ारों लोगों के मारे जाने का बहाना बन गया. शीलू इनके घर से तीसरे घर में रहती थी. शीलू बहुत सुंदर थी. उसकी पहली माँ का नाम भागवंती और दूसरी माँ का नाम सुमित्रा था. पिता संतराम बढ़ई थे. शीलू एक मुसलमान लड़के से प्रेम करती थी. उसके माता-पिता किसी मुसलमान से उसकी शादी के खिलाफ थे. उसकी शादी एक सिख परिवार में कर दी गई. वह सारा सिख परिवार, शीलू सहित, जस्सड़ां वाली गाड़ी काँड में मारा गया. उस माहौल में भी शीलू के माता-पिता ने पाकिस्तान में रहना बेहतर समझा और आगे चल कर मुसलमान हो गए.