एक समय था जब हमारे समाज में तलाक़ जैसे मामले नाममात्र के ही थे. वैसे भी वे अदालतों में नहीं जाते थे. पत्नी संतान नहीं दे सकी, पति संतान नहीं दे सका, या जीवन-साथी किसी भयंकर बीमारी का शिकार हो गया - ऐसे-ऐसे कारणों से शादीशुदा महिलाएँ और पुरुष अलग होते रहे हैं. कभी-कभी ऐसे-वैसे कारणों से भी होता होगा. बुज़ुर्ग कहते रहे हैं कि अगर मियां-बीवी में नहीं ही बनती है तो बेहतर है अलग हो जाओ. समाज बहुत समझदार होता है.
लेकिन पिछले चार-पाँच दशकों से तलाक़ के मामले बढ़े हैं. 'हिंदू मैरिज एक्ट' ने लोगों मानसिकता को काफ़ी बदला है. तलाक़ के चल रहे मामले से परेशान पति से पूछा कि क्या उसकी पत्नी हिंदू मैरिज एक्ट का हवाला देती है? उसने हामी भरी. मेरे मुँह से निकल गया कि ‘देन विश यू ऑल द बेस्ट’. उनमें तलाक़ हो गया. यदि कोई पति या पत्नी या दोनों एक-दूसरे को हिंदू मैरिज एक्ट की कापी दिखाने लगें तो उसे ख़तरे की घंटी समझें 😜.
लेकिन पिछले चार-पाँच दशकों से तलाक़ के मामले बढ़े हैं. 'हिंदू मैरिज एक्ट' ने लोगों मानसिकता को काफ़ी बदला है. तलाक़ के चल रहे मामले से परेशान पति से पूछा कि क्या उसकी पत्नी हिंदू मैरिज एक्ट का हवाला देती है? उसने हामी भरी. मेरे मुँह से निकल गया कि ‘देन विश यू ऑल द बेस्ट’. उनमें तलाक़ हो गया. यदि कोई पति या पत्नी या दोनों एक-दूसरे को हिंदू मैरिज एक्ट की कापी दिखाने लगें तो उसे ख़तरे की घंटी समझें 😜.
अब बच्चे बहुत पढ़-लिख गए हैं. उन्हें किसी उपदेश की ज़रूरत नहीं. लेकिन कुछ संकेत कर देना ठीक होगा कि अधिकतर मन-मुटाव छोटी-छोटी बातों पर होते हैं जैसे किसी बात पर वाद-विवाद करना और अपने विचार एक-दूसरे पर थोपने की कोशिश करना, अपने ‘कहने का मतलब’ समझाना जैसे "मेरे कहने का मतलब यह था, यह नहीं था" वगैरा. ये गुस्से की वजह बन सकते हैं. लेकिन ज़रूरी नहीं कि वहाँ आपसी प्रेम की कमी ही हो. जयशंकर प्रसाद ने लिखा है :-
"जिसके हृदय सदा समीप है
वही दूर जाता है,
और क्रोध होता उस पर ही
जिससे कुछ नाता है."
झगड़े बढ़ भी सकते हैं. पत्नी मायके चली जाती है और बच्चे टुकुर-टुकुर पप्पा की ओर देखते हैं. प्यार की पप्पी, लाड़-दुलार की झप्पी काम नहीं करती. नाटककार भुवनेश्वर ने कहा है कि यदि शादी के एक वर्ष के अंदर पति-पत्नी का झगड़ा नहीं होता तो उन्हें मनोचिकित्सक (psychiatrist) से सलाह करनी चाहिए. उनके ऐसे अपसामान्य (abnormal) व्यवहार का इलाज ज़रूरी है. आपसी झगड़े और रार आमतौर पर नार्मल होती है. बस, उसे खींचना नहीं चाहिए. नेवर खींचोफ़ाई.
यदि आप दोनों मियाँ-बीवी आपस में बहसबाज़ी करते हैं, झगड़ते हैं तो बधाई ले लीजिए. मनोचिकित्सकों ने आपकी पीठ थपथपाई है. वे कहते हैं कि जो प्यार दिल (💓) और तितलियों (🦋) से शुरू होता है वो वाद-विवाद (😈) तक स्वभाविक ही पहुँच जाता है. दरअसल यह आपसी संप्रेषण (communication) विकसित होने की प्रक्रिया (process) है. इसमें कुछ चुनौतियाँ हैं. प्रेम और एक-दूसरे का सम्मान ज़रूरी शर्त है, वो बरकरार रहना चाहिए. मनोचिकित्सकों का कहना है कि जो जोड़े तर्क-वितर्क, बहस करते हैं वास्तव में वे एक-दूसरे से बहुत प्रेम करते हैं. एक आलेख का लिंक नीचे दिया है इसे पढ़ लीजिए और आपसी समझ बढ़ाइए.