"इतिहास - दृष्टि बदल चुकी है...इसलिए इतिहास भी बदल रहा है...दृश्य बदल रहे हैं ....स्वागत कीजिए ...जो नहीं दिख रहा था...वो दिखने लगा है...भारी उथल - पुथल है...मानों इतिहास में भूकंप आ गया हो...धूल के आवरण हट रहे हैं...स्वर्णिम इतिहास सामने आ रहा है...इतिहास की दबी - कुचली जनता अपना स्वर्णिम इतिहास पाकर गौरवान्वित है। इतिहास के इस नए नज़रिए को बधाई!" - डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह


04 October 2011

Original Aarti- Om Jai Jagdish Hare – ओम जय जगदीश हरे- आरती का मूल रूप


श्रद्धाराम फिल्लौरी
(चित्र विकिपीडिया के साभार)
अगस्त, 2011 में दिल्ली में आयोजित एक हवन में शामिल होने का अवसर मिला. हवन के अंत में आरती गाई गई- ओम् जय जगदीश हरे. सब ने इसे बहुत भावपूर्वक गाया. मेरे लिए कई पंक्तियाँ नई थीं. कुछ बहुत नई नहीं थीं जैसे इसका अंतिम भाग- कहत शिवानंद स्वामी.... आरती के बाद पंडित से पूछा कि क्या इस आरती के लेखक का नाम जानते हो. उसने अनभिज्ञता प्रकट की.  

यह वर्ष 1971 की बात है जब मुझे डॉ. सरन दास भनोट से इस आरती के रचयिता की जानकारी मिली थी.

इस आरती को पंजाब के विद्वान साहित्यकार श्रद्धाराम फिल्लौरी ने सन् 1870 में लिखा था. उस समय के एक छोटे-से कस्बे फिल्लौर में जन्मे श्रद्धाराम की लिखी आरती आज पूरे भारत और विदेशों में गाई जाती है. ये हरफ़नमौला रमल भी खेलते थे. फिल्म 'पूरब और पश्चिम' ने इस आरती को सिनेमा का ग्लैमर दिया लेकिन इस आरती की पंक्तियाँ- ....तेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा मूल आरती में नहीं है. जहाँ तक दृष्टि जाती है इस फिल्म के बाद इस आरती के स्वरूप को तेज़ी से बदलते देखा है. स्वामी शिवानंद जैसे अग्रणी वेदांती के साथ कब इस आरती को जोड़ दिया गया पता ही नहीं चला लेकिन यह अज्ञान से उपजा प्रक्षिप्त अंश है. 

ख़ैर ! कभी-कभी कोई भजन इतना लोकप्रिय हो जाता है कि विद्वानों की लापरवाही और जन-कीर्तन की बेपरवाही का शिकार हो जाता है. आप इसे जैसे पहले गाते रहे हैं उसे गाते रहिए. इस आरती का शुद्ध रूप केवल जानकारी के लिए यहाँ दे रहा हूँ.


आरती

ओम् जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे

जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का
सुख-सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ मैं जिसकी

तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता
मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति

दीनबंधु दुःखहर्ता, तुम रक्षक मेरे.
करुणा हस्त बढ़ाओ, द्वार पडा तेरे

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा

01 October 2011

Dr. Dhian Singh - Known history of Megh Bhagats - मेघ भगतों का इतिहास


Emergence and Evolution of Kabir Panth in Punjab
पंजाब में कबीर पंथ का उद्भव और विकास

Are you searching for history/known history of Megh Bhagats? 
Yes, this thesis of Dr Dhian Singh can
guide you through

An enthusiastic young man Mr. Dhian Singh from Kapurthala (Punjab), pioneered research on history of Megh Bhagat community in the backdrop of emergence and evolution of Kabir Panth in Punjab. This was very important from the point of view that his work helps in reconstruction of history of Dalit communities which has been destroyed and corrupted. Researcher Dr. Dhian Singh and director of this research work Dr. Seva Singh have, within the limitations, put in tireless efforts using research methodologies while pursuing intensive study, visits and interviews. Use of libraries for research work is a common thing. Dr. Dhian Singh undertook intensive touring of Jammu-Kashmir, Punjab, Haryana and Rajasthan at his own expense. His hard work together with diligence of his Director helped his thesis through for Ph.D degree in the year 2008.

For the past two years I had been requesting Dr. Singh to help  make his thesis on line for the benefit of others. Now on 08-02-2011 he gave me his thesis which was scanned and blogged. It is in the form of PDF file. To make it easy to read please press ‘ctrl’ and +.

I hope that, now, the desire of Meghs will be satiated with regard to their eternal questions as to who they are, who were their ancestors and what they used to do.

This thesis will help change the conventional thinking of Megh community which has been divided in so many names and religions that their social and political integration seems to be a distant dream. This thesis will help the community grow a sense of unity.

Finally big thanks to you Dr. Seva Singhji and Dr. Dhian Singhji. You have done a work of great importance. 
कपूरथला (पंजाब) के एक उत्साही युवक ध्यान सिंह ने पंजाब ने कबीर पंथ के उद्भव और विकास की पृष्ठभूमि में मेघ भगत समुदाय के इतिहास पर शोध करने का बीड़ा उठाया था. यह कार्य बहुत महत्वपूर्ण इसलिए था कि जिन दलित समुदायों का इतिहास नष्ट-भ्रष्ट किया जा चुका हो उनका इतिहास कैसे लिखा जाए. शोध के लिए पुस्तकालयों का उपयोग करना एक सामान्य बात है. शोधछात्र के तौर पर ध्यान सिंह ने और उनके निर्देशक डॉ सेवा सिंहडी.लिट्. ने शोध सामग्री को देखते हुए विचार-विमर्ष के बाद मान्य पद्धतियों (methodologies) की सीमाओं में रहते हुए गहन अध्ययन के अतिरिक्त यात्रा और साक्षात्कार का सहारा लेने का निर्णय लिया. ध्यान सिंह जी ने इसके लिए जम्मू-कश्मीर, पंजाबहरियाणा और राजस्थान के दौरे किए. उनके परिश्रम और निर्देशक के मार्गदर्शन से कार्य बखूबी हुआ और शोधग्रंथ वर्ष 2008 में पी.एच.डी. की डिग्री के लिए स्वीकार कर लिया गया. यह अपनी तरह का पहला कार्य है.

मैं दो-एक वर्ष से डॉ ध्यान सिंह से आग्रह कर रहा था कि वे अपने शोधग्रंथ को अन्य के लाभ के लिए ऑन-लाइन करें. अब 08-02-2011 को उन्होंने यह शोधग्रंथ मुझे सौंपा और मैंने उसकी स्कैनिंग कराने के बाद उसे एक ब्लॉग का रूप दे दिया.

मुझे आशा है कि अब हमारे मेघ भाइयों की यह जिज्ञासा शांत हो जाएगी कि हम कौन हैंकहाँ से आए हैं और हमारे पुरखे क्या करते थे.

सब से बढ़ कर यह शोधग्रंथ मेघ भगत समुदाय की पारंपरिक सोच को बदलने में सहायक होगा जिसे इतने नामों और धर्मों में बाँट दिया गया है कि उनमें सामाजिक और राजनीतिक एकता दूर का सपना लगती है. इसे पढ़ने के बाद इस समुदाय में एकता की भावना बढ़ेगी.

अंत में डॉ ध्यान सिंह और डॉ सेवा सिंह जी को कोटिशः धन्यवाद. आपने बहुत महत् कार्य को संपन्न किया है. यह शोधग्रंथ सात पीडीएफ फाइलों के रूप में नीचे दिया गया है. इन पर क्लिक करें और पढ़ें. फाइल खोलने के बाद स्क्रीन पर बड़ा पढ़ने के लिए ctrl और + को दबाएँ. पीडीएफ फाइल पर भी ऊपर दाएँ हाथ (+) और (-) के चिह्न हैं उनका भी प्रयोग किया जा सकता है. यह पीडीएफ़ फाइल एक बार खोलने से न खुले तो दूसरी बार क्लिक कर के खोलें. 

पंजाब में कबीरपंथ का उद्भव और विकास
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