श्रद्धाराम फिल्लौरी (चित्र विकिपीडिया के साभार) |
अगस्त, 2011 में दिल्ली में आयोजित एक हवन में शामिल होने का अवसर
मिला. हवन के अंत में आरती गाई गई- ‘ओम् जय जगदीश हरे.’ सब ने इसे बहुत भावपूर्वक गाया. मेरे लिए कई पंक्तियाँ नई
थीं. कुछ बहुत नई नहीं थीं जैसे इसका अंतिम भाग- ‘कहत शिवानंद स्वामी...’. आरती के बाद पंडित से पूछा कि क्या इस
आरती के लेखक का नाम जानते हो. उसने अनभिज्ञता प्रकट की.
यह वर्ष 1971 की बात
है जब मुझे डॉ. सरन दास भनोट से इस आरती के रचयिता की जानकारी मिली थी.
इस आरती को पंजाब के
विद्वान साहित्यकार श्रद्धाराम फिल्लौरी ने सन् 1870 में लिखा था. उस समय के एक
छोटे-से कस्बे फिल्लौर में जन्मे श्रद्धाराम की लिखी आरती आज पूरे भारत और विदेशों
में गाई जाती है. ये हरफ़नमौला रमल भी खेलते थे. फिल्म 'पूरब और पश्चिम' ने इस आरती
को सिनेमा का ग्लैमर दिया लेकिन इस आरती
की पंक्तियाँ- ‘....तेरा
तुझ को अर्पण क्या लागे मेरा’
मूल आरती में नहीं है. जहाँ तक दृष्टि जाती है इस फिल्म के बाद इस आरती के स्वरूप
को तेज़ी से बदलते देखा है. स्वामी शिवानंद जैसे अग्रणी वेदांती के साथ कब इस आरती
को जोड़ दिया गया पता ही नहीं चला लेकिन यह अज्ञान से उपजा प्रक्षिप्त अंश है.
ख़ैर ! कभी-कभी कोई भजन इतना लोकप्रिय हो जाता है कि विद्वानों की लापरवाही और जन-कीर्तन की बेपरवाही का शिकार हो जाता है. आप इसे जैसे पहले गाते रहे हैं उसे गाते रहिए. इस आरती का शुद्ध रूप केवल जानकारी के लिए यहाँ दे रहा हूँ.
ख़ैर ! कभी-कभी कोई भजन इतना लोकप्रिय हो जाता है कि विद्वानों की लापरवाही और जन-कीर्तन की बेपरवाही का शिकार हो जाता है. आप इसे जैसे पहले गाते रहे हैं उसे गाते रहिए. इस आरती का शुद्ध रूप केवल जानकारी के लिए यहाँ दे रहा हूँ.
आरती
ओम् जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे
जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का
सुख-सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ मैं जिसकी
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता
मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति
दीनबंधु दुःखहर्ता, तुम रक्षक मेरे.
करुणा हस्त बढ़ाओ, द्वार पडा तेरे
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा