तो भाई साहब, 'मेघों में एकता क्यों नहीं होती' वाला सवाल सदियों पुराना है लेकिन इस सवाल की अहमियत आजकल चुनावों के दौरान कुछ ज़्यादा है. अब टिकट न मिलने के कारण कुछ राजनीतिक कार्यकर्ताओं में निराशा और हताशा है और वे इस मुद्दे को यह कह कर समाज पर डाल रहे हैं कि 'समाज में एकता नहीं होती'.
मेघ समाज में एकता न होने का कारण ढूंढने निकलो तो बताते हैं कि एकता कैसे हो जब मेघ समाज के नाम ही चार हों. मेघ, भगत, कबीरपंथी, जुलाहा (हाल ही में ‘आर्यसमाजी’ नाम भी बताया गया है लेकिन इसमें अपेक्षानुसार गंभीरता नहीं थी). मतलब यह कि चार नामों में बँट चुके समाज में एकता कैसी? रूप-रंग की बात यदि छोड़ दी गई है तो यह नाम का सवाल भी कम महत्व का नहीं है.
राजनीतिक नज़रिए से धर्म बांट देने वाला तत्त्व है. उधर राजनीति और धर्म के बाज़ार में एकता नहीं बेची जाती, एकता का नारा ज़रूर बेचा जाता है, यह दुनियावी सच्चाई है. राजनीतिक दलों के बंधुआ लोग आमतौर पर दूसरों से एका करते नहीं दिखते चाहे राजनीतिक दलों के टॉप के नेता शाम को एक टेबल पर बैठकर व्हिस्की लेते हों और मुर्गे-शुर्गे खाते हों. उनमें एक ख़ास तरह की एकता होती है वहाँ धर्म-शर्म किसी कोने में रखे रहते हैं और राजनीति में यह सही होता होगा. एडवर्ड गिब्बन ने कहा है, "आम लोग धर्म को सच मानते हैं, समझदार उसे झूठ मानते हैं और शासक उसे उपयोगी मानते हैं."
राजनीतिक नज़रिए से धर्म बांट देने वाला तत्त्व है. उधर राजनीति और धर्म के बाज़ार में एकता नहीं बेची जाती, एकता का नारा ज़रूर बेचा जाता है, यह दुनियावी सच्चाई है. राजनीतिक दलों के बंधुआ लोग आमतौर पर दूसरों से एका करते नहीं दिखते चाहे राजनीतिक दलों के टॉप के नेता शाम को एक टेबल पर बैठकर व्हिस्की लेते हों और मुर्गे-शुर्गे खाते हों. उनमें एक ख़ास तरह की एकता होती है वहाँ धर्म-शर्म किसी कोने में रखे रहते हैं और राजनीति में यह सही होता होगा. एडवर्ड गिब्बन ने कहा है, "आम लोग धर्म को सच मानते हैं, समझदार उसे झूठ मानते हैं और शासक उसे उपयोगी मानते हैं."
एकता के सिद्धांत
एकता के कुछ सिद्धांत ढूंढे गए हैं. पहला सिद्धांत यह है कि उन समूहों में एकता होती है जो दिखने में समरूप (similar) हों यानी शारीरिक रूप से उनमें कुछ समानताएं ज़रूर हों. साथ ही इनमें आर्थिक समरूपता (similarity), भावनात्मक समरूपता, पहचान की समरूपता, सांस्कृतिक (सभ्याचारक) समरूपता होती है जिसमें आप उनके विचारों, पसंद, नापसंद, नायकों, कहानियों, परंपराओं, पहनावे, खान-पान, इतिहास, संगीत, सिद्धांतों, कार्य करने के तरीकों, विश्वासों आदि को जोड़ सकते हैं. जोड़ लिया? तो अब आप उनकी शिक्षा के स्तर के हिसाब से उनकी समरूपता को परख लें. इस सूची को अधिक न फैलाया जाए. इतने मानकों पर ध्यान देना पर्याप्त है.
एकता के कुछ सिद्धांत ढूंढे गए हैं. पहला सिद्धांत यह है कि उन समूहों में एकता होती है जो दिखने में समरूप (similar) हों यानी शारीरिक रूप से उनमें कुछ समानताएं ज़रूर हों. साथ ही इनमें आर्थिक समरूपता (similarity), भावनात्मक समरूपता, पहचान की समरूपता, सांस्कृतिक (सभ्याचारक) समरूपता होती है जिसमें आप उनके विचारों, पसंद, नापसंद, नायकों, कहानियों, परंपराओं, पहनावे, खान-पान, इतिहास, संगीत, सिद्धांतों, कार्य करने के तरीकों, विश्वासों आदि को जोड़ सकते हैं. जोड़ लिया? तो अब आप उनकी शिक्षा के स्तर के हिसाब से उनकी समरूपता को परख लें. इस सूची को अधिक न फैलाया जाए. इतने मानकों पर ध्यान देना पर्याप्त है.
इन मानकों के आधार पर व्यक्तियों में जितनी अधिक समानता होगी उनमें एकता की गुंजाइश उतनी ही अधिक होगी. वे बेहतर तरीके से एक दूसरे को 'अपने आदमी' के तौर पर पहचानेंगे और मानेंगे. उनका आपसी बंधन जितना प्रगाढ़ होगा वे एक दूसरे के उतना ही करीब होंगे. जितनी अधिक निकटता उतनी अधिक सामाजिक एकता. एकता जितनी अधिक होगी उनका परस्पर संघर्ष उतना ही कम होगा और वे संयुक्त रूप से बेहतर काम कर सकेंगे. समाज के दूसरे सदस्यों के भले के लिए उनके दिल में फ़िक़्र की मात्रा ज़्यादा होगी. ऐसे सभी लोग सारे समाज के लिए फ़िक़्रमंद होंते हैं. वे अपेक्षाकृत रूप से अधिक खुश होते हैं ऐसा देखा गया है.
तो कहा जा सकता है कि जहाँ कहीं सामाजिक ईकाई (व्यक्ति) के दिल में ख़ुशी है वहाँ सामाजिक एकता का तत्त्व ज़रूर ही अधिक पाया जाता है.
अन्य लिंक:-
Unity of Meghs - मेघों की एकता-1
Unity
of Meghs and Khaps - मेघों की
खापें और एकता
Why there is no unity in Megh
community-1
Why Megh community does not unite-2 - मेघ समुदाय में एकता क्यों नहीं होती-2
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